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केंद्र सरकार और भारतीय स्टेट बैंक द्वारा दिए गए आरटीआई के जवाब से पता चलता है कि 2018 में अपनी पहली बिक्री के बाद से अब तक बेचे गए सभी चुनावी बॉन्ड्स (Electoral Bond) में से 85 प्रतिशत 10 लाख रुपये या 1 करोड़ रुपये की कीमत में हैं.
सिर्फ 15 प्रतिशत चुनावी बॉन्ड्स 1000 रुपये, 10,000 रुपये या 1 लाख रुपये की छोटी कीमत में बेचे गए.
आइए देखते हैं, चुनावी बांड के आधिकारिक आंकड़ों से क्या डेटा निकलता है.
ये डेटा केंद्र सरकार के आर्थिक मामलों के विभाग और भारतीय स्टेट बैंक (जिसे चुनावी बांड बेचने के लिए अधिकृत किया गया है) द्वारा आरटीआई के जवाब में दिए गए डेटा के बाद सामने आया.
ये आरटीआई आवेदन ट्रांसपेरेंसी कैंपेनर और भारतीय नौसेना के अनुभवी कमोडोर लोकेश बत्रा द्वारा दायर किए गए थे और उनके जवाबों को द क्विंट ने एक्सेस किया है.
चुनावी बांड गुमनाम रूप से चंदा बटोरने का ब्याज मुक्त साधन है जिसका उपयोग राजनीतिक चुनावों में करते है. चुनावी बांड के प्रस्ताव के समय से ही विरोध करने वाले ट्रांसपेरेंसी कैंपेनर्स का तर्क है कि बांड का ट्रांसफर वास्तव में गुमनाम नहीं है.
उदाहरण के लिए, एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस तर्क के साथ इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था कि "गुमनामी उस समय की सरकार पर लागू नहीं होती है, क्योंकि सरकार SBI से डेटा मांग कर डोनेशन देने वाले तक आसानी से पहुंच सकती है."
आइए देखते हैं, 2018 के बाद से बेचे गए चुनावी बांड की कुल राशि और राजनीतिक दलों द्वारा भुनाई गई कुल राशि...
यदि आप सोच रहे हैं कि बचे हुए पैसों का क्या हुआ, तो प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष को वो पैसा मिलता है जो गैर-नकद चुनावी बांड से जमा होता है. अब तक ये राशि करीब 20 करोड़ रुपये है.
भले ही सबसे ज्यादा इलेक्टोरल बॉन्ड मुंबई में बेचे गए (कुल बिकी हुई राशि का 27 प्रतिशत), लेकिन इलेक्टोरल बॉन्ड की कुल राशि का बड़ा हिस्सा दिल्ली में भुनाया गया.
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