मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Politics Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019EVM डेटा में अंतर: 362 लोकसभा सीटों पर 5,54,598 वोट 'खारिज' किए गए

EVM डेटा में अंतर: 362 लोकसभा सीटों पर 5,54,598 वोट 'खारिज' किए गए

कई लोकसभा सीटों पर ईवीएम में चुनाव के दिन डाले गए वोट और परिणाम को गिनती किए गए वोट में अंतर देखने को मिला.

हिमांशी दहिया
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>EVM डेटा में गड़बड़ी: 362 लोकसभा सीटों पर 5,54,598 वोट 'खारिज' किए गए</p></div>
i

EVM डेटा में गड़बड़ी: 362 लोकसभा सीटों पर 5,54,598 वोट 'खारिज' किए गए

(फोटो: क्विंट हिंदी)

advertisement

EVM Data Mismatch: 4 जून को 2024 के लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Election 2024) के रिजल्ट घोषित होने के बाद राज्यों के 362 निर्वाचन क्षेत्रों में EVM द्वारा डाले गए 5,54,598 वोटों को भारतीय चुनाव आयोग ने खारिज कर दिया. इसके अतिरिक्त, ECI ने 176 निर्वाचन क्षेत्रों में जितने EVM में वोट डाले गए, उससे 35,093 वोट अधिक दर्ज किए हैं.

द क्विंट ने चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के दो सेटों की जांच की गई - पहला, मतदान प्रतिशत या ईवीएम द्वारा डाले गए वोटों की पूर्ण संख्या और दूसरा रिजल्ट के दिन प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में गिने गए ईवीएम वोटों की संख्या, जिसमें 542 लोकसभा क्षेत्रों में से 538 में गड़बड़ी पाई गई.

इसका मतलब यह है कि इन संसदीय क्षेत्रों में, ईवीएम से डाले गए वोटों की संख्या, रिजल्ट के दिन गिने गए ईवीएम वोटों की नंबर से मेल नहीं खाती हैं. (इसमें पोस्टल बैलेट शामिल नहीं हैं, क्योंकि वोटर टर्नआउट का आधार केवल ईवीएम द्वारा डाले गए वोट हैं)

कम से कम 267 निर्वाचन क्षेत्रों में यह अंतर 500 वोटों से अधिक था.

हम इसे उदाहरण के जरिए समझते हैं...

  • तमिलनाडु के तिरुवल्लूर में 19 अप्रैल को पहले चरण के दौरान मतदान हुए, यहां 25 मई को ECI द्वारा जारी किए गए मतदान आंकड़ों के अनुसार 14,30,738 ईवीएम वोट डाले गए थे. जिस दिन वोटों की गिनती हुई यानी चुनाव परिणाम वाले दिन (4 जून) 14,13,947 वोट ही गिने गए यानी 16,791 वोट कम.

  • असम के करीमगंज निर्वाचन क्षेत्र में 26 अप्रैल को दूसरे चरण के दौरान वोट डाले गए थे. ईसीआई डेटा के अनुसार यहां 11,36,538 वोट पड़े और फिर, चुनाव परिणाम जिस दिन घोषित हुए, उस दिन (4 जून) 11,40,349 वोट गिने गए यानी 3,811 वोट अधिक.

ECI ने फेज वार वोटिंग का डेटा जो जारी किए हैं, उनकी कॉपियां यहां से देख सकते हैं.

हालांकि, डेटा एक-दूसरे से बेमेल क्यों हैं, इसको लेकर चुनाव आयोग ने कोई विशेष स्पष्टीकरण नहीं दिया है, उत्तर प्रदेश (यूपी) के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने यूपी में डेटा मिसमैच का कारण सोशल मीडिया 'X' के जरिए बताने की कोशिश की है.

सीईसी ने लिखा, "डाले गए वोटों और गिने गए वोटों के बीच अंतर पैदा हो सकता है क्योंकि कुछ मतदान केंद्र ऐसे हैं, जहां डाले गए वोटों की गिनती आयोग द्वारा जारी मौजूदा प्रोटोकॉल और विभिन्न मैनुअल और हैंडबुक में उपलब्ध कराए गए अनुसार नहीं हो पाती है."

उन्होंने आगे उन दो परिस्थिति के बारे में बताया, जिनमें गिने गए वोटों की संख्या, ईवीएम में डाले गए वोटों की संख्या से कम हो सकती है.

पहली परिस्थिति, जिसमें पीठासीन अधिकारी गलती से वोटिंग शुरू करने से पहले कंट्रोल यूनिट से मॉक पोल का डेटा हटाना भूल जाए या उसने वास्तविक मतदान शुरू करने से पहले वीवीपीएटी से मॉक पोल की पर्चियों को हटाया नहीं हो.

दूसरा, जहां कंट्रोल यूनिट में डाले गए कुल वोट पीठासीन अधिकारी द्वारा तैयार किए गए फॉर्म 17-सी में वोटों के रिकॉर्ड से मेल नहीं खाते हैं, क्योंकि पीठासीन अधिकारी भूलवश गलत नंबर दर्ज कर सकता है.

जैसे मतदान के दिन, ईवीएम सही ढंग से काम कर रही है या नहीं, यह जांचने के लिए सुबह 5 बजे मॉक पोल आयोजित किया जाता है. आम तौर पर, मॉक पोलिंग में प्रत्येक उम्मीदवार के लिए 5 वोट डाले जाते हैं, जिसे परिणाम आने के बाद जांच किया जाता है.

आदर्श रूप से, मतदान अधिकारियों को वास्तविक मतदान शुरू होने से पहले कंट्रोल यूनिट से मॉक पोल का डेटा हटाना होता है.

फॉर्म 17सी, जिसका सीईसी ने अपने पोस्ट में उल्लेख किया है, एक हर एक पोलिंग बूथ का एक पूरा मतदान का रिकॉर्ड है.

प्रत्येक मतदान स्थल पर निर्दिष्ट मतदाताओं की संख्या, उस क्षेत्र में रजिस्टर्ड मतदाताओं की कुल संख्या, वैसे वोटर्स जिन्होंने वोट नहीं डाला, उनकी संख्या, मतदान करने के अवसर से वंचित किए गए वोटर्स की संख्या जैसी जानकारी शामिल है. EVM द्वारा डाले गए वोटों की कुल संख्या और बैलेट और पेपर सील से संबंधित सभी डिटेल्स होती हैं.

हालांकि, सीईसी ने उन परिस्थितियों को स्पष्ट नहीं किया, जिनके तहत एकस्ट्रा वोट कैसे हो जाते हैं

संसदीय क्षेत्र जहां अधिक EVM वोट दर्ज

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

करीमगंज में, जहां 3,811 सरप्लस यानी अधिक वोटों की गिनती हुई, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के उम्मीदवार कृपानाथ मल्लाह ने 18,360 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की.

भारत में चुनावी और राजनीतिक सुधारों पर काम करने वाले एक गैर-लाभकारी संगठन, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के सह-संस्थापक जगदीप छोकर ने क्विंट को बताया कि चुनाव आयोग को इन गड़बड़ी के लिए "निर्वाचन क्षेत्र के हिसाब से जवाब' देना चाहिए.

उन्होंने आगे कहा "अब तक, चुनाव आयोग ने केवल ईवीएम वोट के बढ़ने या कम होने का एक सामान्य स्पष्टीकरण दिया है, वह भी ट्विटर पर. चुनाव आयोग को यहां सटीक जानकारी देने की जरूरत है. इससे चुनाव आयोग के लिए फॉर्म 17सी को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराने का और भी मजबूत मामला बनाता है. हम चुनाव के नतीजों पर संदेह नहीं जता रहे हैं, लेकिन वोटों की गिनती के लिए एक पारदर्शी और मजबूत तंत्र की जरूरत है."

अन्य संसदीय क्षेत्र में अधिक वोटों की गिनती की गई, उनमें आंध्र प्रदेश का ओंगोल, ओडिशा का बालासोर, मध्य प्रदेश का मंडला और बिहार का बक्सर शामिल हैं.

ओडिशा के जाजपुर में, जहां 809 सरप्लस वोटों की गिनती हुई, बीजेपी उम्मीदवार रबींद्र नारायण बेहरा ने केवल 1,587 वोटों के अंतर से जीत हासिल की.

संसदीय क्षेत्र जहां वोटिंग के मुकाबले काउंटिंग में कम वोट गिने गए

असम के कोकराझार निर्वाचन क्षेत्र में, 12,40,306 वोट पड़े और 12,29,546 वोट गिने गए यानी 10,760 वोटों कम दर्ज हुए. इस सीट पर यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी की उम्मीदवार जोयंटा बसुमतारी ने 51,580 वोटों के अंतर से सीट जीती.

इसी तरह, ओडिशा के ढेंकनाल में 11,93,460 वोट पड़े और 11,84,033 वोट गिने गए यानी 9,427 वोटों की कमी.

यूपी के अलीगढ़ में, जहां BJP के सतीश कुमार गौतम 15,647 वोटों के अंतर से जीते, वहां 5,896 वोट खारिज कर दिए गए.

'चुनाव आयोग को और अधिक पारदर्शी होने की जरूरत'

द क्विंट की एक स्टोरी में 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान डाले गए और गिने गए ईवीएम वोटों में इसी तरह की गड़बड़ी का खुलासा हुआ. उस स्टोरी के बाद एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें मांग की गई कि "किसी भी चुनाव के फाइनल रिजल्ट की घोषणा से पहले भारत के चुनाव आयोग (EC) को (वोटों) डेटा का वास्तविक और सटीक मिलान करने का निर्देश दिया जाए."

26 अप्रैल को, सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ कई अन्य याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें वोटर-वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) पर्चियों के साथ इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के पूर्ण वेरीफिकेशन की मांग की गई थी.

यह तब हुआ जब चुनाव आयोग ने कोर्ट को बताया कि 4 करोड़ से अधिक पर्चियों का सत्यापन करने के बाद ईवीएम और वीवीपैट पर्चियों में गिने गए वोटों के बीच "कोई मिसमैच नहीं पाया गया".

टांसपरेंसी एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज ने कहा, "यह पूरा मुद्दा हमारी चुनावी प्रक्रिया में विश्वास का केंद्र पर आधारित है." वह सतर्क नागरिक संगठन की संस्थापक सदस्य हैं, जो सरकार में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए काम करने वाला एक नागरिक का ग्रुप है.

उन्होंने आगे कहा “यदि डाले गए (ईवीएम) वोटों की संख्या और गिने गए वोटों की संख्या के आंकड़ों के बीच कोई मेल नहीं है, तो लोगों के मन में संदेह पैदा होना तय है. इससे ECI द्वारा फॉर्म 17सी का पूरा डेटा सार्वजनिक डोमेन में अपलोड करना जरूरी हो जाता है, जिसमें भाग दो भी शामिल है, जिसमें घोषित परिणामों का डेटा है. तकनीकी रूप से, कोई बेमेल नहीं होना चाहिए क्योंकि ये वे संख्याएं हैं जिन्हें मशीन दर्ज करती है, लेकिन अगर कोई डेटा बेमेल है, तो चुनाव आयोग को विस्तृत निर्वाचन क्षेत्र वाइज स्पष्टीकरण देना चाहिए"

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT