advertisement
पिछले 20 साल में बीजेपी सरकार ने गुजरात की काबिलियत की फीस वसूल कर खुद को बेचा है. हम (कांग्रेस पार्टी) आएंगे तो उस काबिलियत को और ताकत देंगे.
गुजरात चुनावों की उलटी गिनती के बीच ये कांग्रेस पार्टी का मूलमंत्र है, जिसके इर्द-गिर्द ‘मिशन गुजरात’ की पूरी रणनीति बुनी जा रही है. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बेहद करीबी एक हाईप्रोफाइल सूत्र ने इसी रणनीति की खास बातें क्विंट से साझा कीं, जो आने वाले दिनों में पार्टी के प्रचार में दिखेंगी.
क्विंट को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक, चुनाव प्रचार में राहुल गांधी का फोकस गुजरात प्रदेश की तीन खास बातों पर है.
दरअसल ये उसी‘गुजराती अस्मिता’ का नया चेहरा है, जो पीएम मोदी के भाषणों का मनपसंद शब्द हुआ करती थी. मोदी ने उसे गुजरात के सामाजिक और एतिहासिक ताने-बाने से जोड़ रखा था, लेकिन राहुल गांधी ने उसे आर्थिक पहलू से जोड़ दिया है और वो भी नाम लिए बगैर.
पार्टी के मुताबिक:
कांग्रेस उपाध्यक्ष के करीबी सूत्रों के मुताबिक, राहुल गांधी ने खुद इस बात की जिम्मेदारी ली है कि वो गुजरात में वोटिंग करीब आते-आते कांग्रेस पार्टी को एक ठोस विकल्प के तौर पर पेश कर देंगे.
दरअसल, पार्टी का मानना है कि गुजरात में कांग्रेस पार्टी का ग्राफ बढ़ रहा है और इस वक्त वो बीजेपी के मुकाबले 50-50 पर है. लोग बीजेपी से नाराज तो हैं, लेकिन अब कांग्रेस को विकल्प के तौर पर स्वीकार नहीं कर पाए हैं. ऐसे में राहुल गांधी ने खुद इस ग्राफ को बढ़ाने की जिम्मेदारी ली है, फिर चाहे वो प्रचार के स्तर पर हो या रणनीति के.
इसलिए राहुल ने स्टेट यूनिट को साफ कह दिया है कि वो पब्लिक से जाकर पूछे कि उन्हें मेनिफेस्टो में क्या चाहिए. (वैसे ये आइडिया आम आदमी पार्टी से लिया गया लगता है.)
जानकारों के मुताबिक, अंदरूनी लड़ाई और टिकट बंटवारे के नजरिये से गुजरात कांग्रेस की सबसे खराब प्रदेश इकाइयों में से है. लेकिन सूत्रों का दावा है कि बेहद सिस्टेमेटिक तरीके से काम हो रहा है. टिकट पाने में नाकाम दावेदारों की नाराजगी रोकने के लिए पहले से ही उन्हें ये बताया जा रहा है कि सरकार बनने के बाद वो विधायक भले न बन पाएं, लेकिन उन्हें फलां-फलां जिम्मेदारी दी जाएगी.
सूत्रों के मुताबिक, इस स्तर पर होमवर्क करीब-करीब पूरा हो चुका है और जल्द ही टिकटों की घोषणा कर दी जाएगी. पार्टी का दावा है कि इस बार भाई-भतीजावाद, सिफारिश या नाराजगी जैसे मसलों से ऊपर उठकर सौ फीसदी माकूल उम्मीदवारों को टिकट दिए जाएंगे.
चुनावों से पहले ही मुख्यमंत्री की घोषणा कांग्रेस की रवायत नहीं है, लेकिन गुजरात चुनाव में कांग्रेस किसी पुराने नियम-कायदे में बंधकर नहीं रहना चाहती, या यूं कहें कि किसी नए एक्सपेरिमेंट से बचना नहीं चाहती.
क्विंट को मिली जानकारी के मुताबिक, खुद राहुल गांधी की अगुवाई में उम्मीदवारों के कामकाज का आकलन चल रहा है. अगर कांग्रेस पार्टी इस बार चुनाव से पहले सीएम कैंडिडेट की घोषणा कर दे, तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए.
कहते हैं कि गुजरात में बीजेपी की सीटों की गिनती 1 से नहीं, बल्कि 51 से शुरू होती है.
माना जाता है कि 42 फीसदी शहरी आबादी वाले गुजरात की 62 शहरी सीटों पर पूरी तरह बीजेपी का कब्जा है. शहरों की तड़क-भड़क में बिजली-पानी-किसान-आदिवासी जैसे वो मुद्दे गायब हो जाते हैं, जिन्हें कांग्रेस सहारा बनाती है.
लेकिन इस बार कांग्रेस को इस चुनौती (या कहें पनौती) से निपटने के लिए एक हथियार दिख रहा है और वो है जीएसटी. सूत्रों के मुताबिक, राहुल इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि सूरत, राजकोट, भावनगर, वड़ोदरा जैसे कारोबारियों के शहर में जीएसटी का कहर है और वो कांग्रेस की नैया पार लगाएगा. राजकोट और वडोदरा शहरों में राहुल के दौरे के दौरान इसका असर साफ तौर पर दिखा भी.
राहुल गांधी अपने भाषणों में लगातार इस बात का जिक्र कर रहे हैं कि देश में हर महीने 10 लाख नौकरियों की जरूरत होती है, लेकिन केंद्र सरकार 12-15 हजार से ज्यादा नहीं दे पाती. डिमांड और सप्लाई का ये बड़ा अंतर युवाओं के गुस्से को लगातार बढ़ा रहा है. राहुल गांधी का मानना है कि इस गुस्से का पहला शिकार गुजरात बनेगा.
लेकिन तमाम रणनीति और गुणा-भाग के बाद आखिर में वो मुद्दा आता है, गुजरात जिसकी प्रयोगशाला रहा है और जो हवा का रुख मोड़कर बीजेपी के पक्ष में कर देता है- ध्रुवीकरण.
क्विंट को मिली जानकारी के मुताबिक, राहुल गांधी निजी तौर पर इसे लेकर चिंतित हैं और उन्हें अंदेशा है कि ध्रुवीकरण का ये जिन्न आखिरी वक्त में बोतल से बाहर निकलकर सब गुड़-गोबर सकता है. इससे पार पाने की तरकीब पूछने पर कांग्रेस एक सीनियर नेता ने इस संवाददात से कहा:
यानी ध्रुवीकरण एक मसला है, जिससे निपटने के लिए कांग्रेस पार्टी के पास कोई रणनीति नहीं है और वो उसे लेकर चिंतित भी है.
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)