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कर्नाटक में तोड़फोड़ से तख्तापलट की कोशिशों के बीच गोवा की कहानी बड़ी रोचक है. खासकर उन लोगों के लिए जो बीजेपी खेमे में जाने की सोच रहे हैं. जैसे अभी कर्नाटक में बीजेपी अल्पमत में है, वैसे ही गोवा में थी. दो छोटी पार्टियों ने उसे समर्थन दिया लेकिन जैसे ही बीजेपी के पास पर्याप्त संख्या आई, उसने पलटी मारी. ‘हम साथ-साथ हैं’ से ‘हम आपके हैं कौन’ तक की ये कहानी इतने ट्विस्ट और टर्न वाली है कोई सस्पेंस थ्रीलर भी कम पड़ जाए.
हाल ही में कांग्रेस के 10 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए. 13 जुलाई को मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने अपने कैबिनेट में फेरबदल किया. इस फेरबदल के तहत कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए 3 विधायकों को मंत्री बनाया गया. लेकिन इसी फेरबदल में बीजेपी ने अपनी उस सहयोगी पार्टी को कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा दिया जिसने 2017 में उसकी सरकार बनाने में मदद की थी. बाहर जाने वालों में जीएफपी अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री विजय सरदेसाई भी शामिल थे.
लेकिन गोवा में जीएफपी के साथ जो अभी हुआ, वो अपनी दूसरी सहयोगी के साथ बीजेपी पहले ही कर चुकी है. कुल मिलाकर 2017 में जिन दो लोकल पार्टियों ने अपना समर्थन देकर गोवा में बीजेपी की सरकार बनवाई, वो दोनों सरकार से बाहर हैं और तबाह हो चुकी हैं. कहानी बड़ी दिलचस्प है.
एमजीपी के 3 और जीएफपी के 3 और दो निर्दलियों को मिलाकर बीजेपी ने सरकार बनाई. लेकिन तलवार की धार पर चलने वाली इस सरकार से बीजेपी संतुष्ट नहीं हुई. पर्रिकर सरकार बनने के महज दो दिन के बाद बीजेपी ने कांग्रेस के एक एमएलए विश्वजीत राणे को अपनी तरफ मिलाया. विश्वजीत राणे प्रताप राणे के बेटे हैं, जो लंबे तक कांग्रेस सरकार के सीएम रहे.
अक्टूबर 2018 में कांग्रेस के दो और विधायकों ने इस्तीफा दे दिया. लेकिन इससे बीजेपी की संख्या नहीं बढ़ी,क्योंकि इन दोनों विधायकों ने दल बदल कानून के तहत अपनी सदस्यता खो दी. हां कांग्रेस की संख्या घटकर 14 रह गई. फिर बीजेपी के दो विधायकों मनोहर पर्रिकर और फर्नाडिंस डिसूजा की मौत हो गई. एक बार फिर बीजेपी 12 पर आ गई और कांग्रेस 14 पर ही रही.
मार्च 2019 में प्रमोद सावंत सीएम बने. गणित था.
फिर से तलवार की वही धार. सरकार बनाने के लिए बीजेपी ने दोनों छोटी पार्टियों के नेताओं सुधींद्र धवालिकर और विजय सरदेसाई को डिप्टी सीएम बनाया.
अब विधानसभा में सदस्य रह गए 36. दो दल बदल में निपट गए थे. और दो का देहांत हो गया. तो अब बहुमत के लिए अब सिर्फ 19 सीटों की जरूरत थी. मार्च, 2019 में चार सीटों पर उपचुनाव हुए. बीजेपी ने तीन सीटें जीतीं. अब बीजेपी की संख्या हो गई 17. कांग्रेस से जीतने वाले विधायक थे अतनासू मोन्सेराट, जिनपर पोक्सो एक्ट में मामला चल रहा था.
जब जुलाई, 2019 में कांग्रेस के दस विधायक बीजेपी में आए तो उनकी अगुवाई की उन्हीं अतनासू मोन्सेराट ने. उनकी पत्नी भी विधायक हैं, वो भी साथ में आईं. उनके दो बिजनेस पार्टनर विधायक भी साथ में आए. दूसरी तरफ विपक्ष के नेता भी कांग्रेस से टूटे और अपने साथ पांच और विधायक ले आए. अब बीजेपी की संख्या हो गई 27. अब बीजेपी को एमजीपी और जीएफपी की जरूरत नहीं रही. एमजीपी के सुधींद्र धावलीकर की तरह जीएफपी के विजय सरदेसाई भी डिप्टी सीएम पद से हटाए गए. कह सकते हैं ये दोनों पार्टियां ‘सियासी ठगी’ का शिकार हो गईं.
और ये पैटर्न कोई नया नहीं है. किसी जमाने में गुजरात में जिन बाबू भाई पटेल और चिमन भाई पटेल की मदद से बीजेपी सत्ता में आई थी, आज उन पार्टियों का वहां कोई नामोनिशान नहीं है और बीजेपी पूर्ण बहुमत में है. अरुणाचल प्रदेश में प्रेमा खांडू के जरिए तख्तपलट की कहानी भी पुरानी नहीं है.
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Published: 15 Jul 2019,08:46 PM IST