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राज्य विधानसभा चुनाव से एक साल पहले विजय रुपाणी (Vijay Rupani) ने गुजरात के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. राज्यपाल आचार्य देवव्रत को अपना इस्तीफा सौंपने के बाद रुपाणी ने इस फैसले को "गुजरात के व्यापक हित" में बताया है.
लेकिन इस खबर के बाद खास बात यह भी है कि राजनीतिक ‘चाणक्यों’ की कथित फौज और खुद को अनुशासित पार्टी बताने वाली बीजेपी के चार मुख्यमंत्रियों ने कुछ महीनों के अंदर इस्तीफा दे दिया है. खुले तौर पर इसमें किसी विपक्षी की साजिश नहीं रही है बल्कि सारी उठापटक पार्टी के अंदर ही हो रही है.
इतना ही नहीं बंगाल में पार्टी विधायकों का पलायन भी जारी है. बीजेपी में ‘स्थायित्व’ का आलम देखिये.
आनंदीबेन पटेल के बाद 7 अगस्त 2016 को विजय बीजेपी ने गुजरात में रुपाणी को मुख्यमंत्री बनाया था. खासकर एक गैर पाटीदार नेता को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने सभी को चौंका दिया था. आगामी विधानसभा चुनाव से एक साल पहले राज्यपाल आचार्य देवव्रत को अपना इस्तीफा सौंपते हुए रुपाणी ने कहा कि बीजेपी में बदलाव स्वाभाविक है और वह आगे किसी भी "जिम्मेदारी" के लिए तैयार हैं.
विजय रुपाणी के इस्तीफे के पीछे कोरोना की दूसरी लहर के दौरान कुप्रबंधन के आरोप भी लग रहे हैं. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बीजेपी ने गुजरात में "महामारी के दौरान अपने कुप्रबंधन को छिपाने" के लिए रुपाणी को "बलि का बकरा" बनाया है.
कनार्टक में बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में दो साल से बीजेपी सरकार चला रही थी, लेकिन 26 जुलाई को बीएस येदियुरप्पा ने विधानसभा में अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया. हालांकि 2 महीनों से बीएस येदियुरप्पा के इस्तीफे के कयास लगाए जा रहे थें. जाते-जाते वो रोए और कहा उन्हें सियासत में हमेशा से अग्निपरीक्षा देनी पड़ी है. इस पूरे प्रकरण में बीजेपी राज्य यूनिट का आंतरिक कलह खुलकर सामने आया. बीजेपी विधायक बासनगौड़ा पाटिल जैसे विरोदी येदियुरप्पा पर परिवार वाद का आरोप लगाते रहे.
कनार्टक एपिसोड से पहले जुलाई महीने में ही बीजेपी में सियासी भूचाल देखने को मिला था. उत्तराखंड़ में तीरथ रावत ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था. महज 4 महीने मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद तीरथ रावत का इस्तीफा राजनैतिक गलियों में हलचल मचा गया.
इसके पीछे संवैधानिक वजह बतायी गयी थी. तीरथ रावत को मुख्यमंत्री बने रहने के लिए 10 सितंबर तक विधानसभा सदस्य बनना था. लेकिन उत्तराखंड में अगले साल फरवरी-मार्च में ही विधानसभा चुनाव होने हैं ऐसे में संविधान के आर्टिकल 151 के मुताबिक अगर विधानसभा चुनाव में एक साल से कम का वक्त है तो वहां उपचुनाव नहीं कराये जा सकते.
बंगाल में बीजेपी की बुरी हार के बाद जून में कृष्णानगर से चुनाव जीतने वाले विधायक मुकुल रॉय ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की उपस्थिति में वापस टीएमसी ज्वाइन की थी. लेकिन इसके बाद पलायन का दौर जारी रहा. ‘घर वापसी’ का नारा देने वाली बीजेपी ने अब तक बंगाल में तीन विधायकों का पलायन देखा है. मुकुल रॉय के बाद बिष्णुपुर के विधायक तन्मय घोष और बगदा से विधायक बिस्वजीत दास तृणमूल में चले गए.
इसके अलावा उत्तर प्रदेश में भी योगी सरकार को कोरोना कुप्रबंधन के लिए अपने ही विधायकों और सांसदों का विरोध झेलना पड़ा था. विधायक श्याम प्रकाश और सांसद कौशल किशोर ने योगी सरकार को निशाने पर लिया था. इतना ही नहीं यूपी में संतोष गंगवार जैसे सीनियर नेता भी बीजेपी की योगी सरकार के खिलाफ खुलेआम विरोध कर चुके हैं. यूपी बीजेपी में कलह बस कोरोना को लेकर नहीं सामने आयी. इससे पहले आरके शर्मा को प्रदेश उपाध्यक्ष बनाने पर भी मनमुटाव सामने आये थे.
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