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गुजरात में 'मोदी मैजिक' और AAP की एंट्री ने बीजेपी को बंपर जीत दिलाई है. गुजरात विधानसभा चुनाव के इतिहास में बीजेपी की ये सबसे बड़ी जीत है. चुनावों में बीजेपी ने नारा भी दिया था कि अबकी बार 150 के पार, वो चुनावी नतीजों में देखने को भी मिला है. विधानसभा चुनाव 2002 के बाद से बीजेपी का ग्राफ चुनाव दर चुनाव गिरता आया, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में उसका ग्राफ बहुत तेजी से ऊपर गया है. इसके पीछे क्या वजह रही और 27 साल के बीजेपी राज में एंटी इनकंबेंस क्यों नहीं हावी हुई? बीजेपी के खिलाफ पाटीदारों की नाराजगी का क्या हुआ? सवाल ये भी है कि अगर ये मोदी का ही जादू है तो हिमाचल और एमसीडी चुनाव में ये जादू क्यों नहीं काम कर पाया. आखिर गुजरात में ऐसा क्या खास था कि बीजेपी को महाजीत मिली है?
किसी भी पार्टी का सत्ता से बाहर जाना और सत्ता में वापस आने में एंटी इनकंबेसी सबसे बड़ा फैक्टर होती है. 27 साल के बीजेपी राज पर एंटी इनकंबेंसी को निष्क्रिय करने के लिए बीजेपी ने माइक्रो लेवल पर संगठन पर काम किया था. जिसकी जिम्मेदारी खुद गृहमंत्री अमित शाह निभा रहे थे. इसमें कोई दो राय नहीं है कि अलग राज्यों के मुकाबले गुजरात में बीजेपी का संगठन काफी मजबूत है. यही बीजेपी के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी को साधने में कामयाब रहा. अमित शाह ने जहां भी एंटी इनकंबेसी को हावी होते देखा, वहां के उम्मीदवार को बदल दिया. बड़ा उदाहरण, मोरबी, विजय रूपाणी और नितिन पटेल की सीटों का है. जहां, बीजेपी ने अपने उम्मीदवार ही बदल दिए.
गुजरात में कोरोना के दौरान लोगों को इलाज नहीं मिल पार रहा था, शवों को रखने के लिए जगह नहीं थी, शवदाह गृह में शवों को जलाने की व्यवस्था नहीं थी. ये सभी खबरें मीडिया के स्क्रिन पर फ्लैश हुईं तब लगा कि जनता का गुस्सा चुनावों में उतरेगा. लेकिन, बीजेपी ने सारा ठिकरा मुख्यमंत्री पर फोड़कर रूपाणी को बाहर कर दिया और भूपेंद्र पटेल को मैदान में उतार दिया. इससे एक और संदेश गया. नाराज पाटीदारों की मांग थी कि मोदी के बाद गुजरात की सत्ता पर कोई पाटीदार होना चाहिए ये मांग पड़ी जोर-शोर से उठी थी. भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बना बीजेपी ने ये भी साध लिया. यानी एक तीर से दो निशाना.
2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ हवा बनाने वाले त्रिमूर्ती अल्पेश ठाकोर, हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी फैक्टर को बीजेपी ने पहले ही चित्त कर दिया था. इन्होंने साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को चुनौती दी थी, और तब इन्हें बीजेपी के 'राम' यानी रूपाणी-अमित-मोदी के खिलाफ प्रमुख विपक्षी कांग्रेस के 'हज' यानी हार्दिक-अल्पेश-जिग्नेश के रूप में देखा गया था. हालांकि, इस बार बीजेपी ने बड़ा खेल करते हुए हार्दिक पटेल को अपनी पाली में कर लिया और वीरमगाम से टिकट थमा दिया. अल्पेश ठाकोर ने पहले ही बीजेपी का दामन थाम लिया था.
साल 2017 में बीजेपी की कम सीटों के पीछे पाटीदार आंदोलन था. बीजेपी सरकार के खिलाफ पाटीदारों ने आरक्षण के लिए बड़ा आंदोलन किया था. इसका गुस्सा पाटीदारों ने साल 2017 के विधानसभा में दिखाया, जिसका नतीजा रहा कि कांग्रेस 77 पर पहुंच गई और बीजेपी सैकड़ा तक भी नहीं पहुंच पाई. इसके बाद बीजेपी ने पाटीदारों को आरक्षण दिया. भूपेंद्र पटेल को सीएम बनाया और हार्दिक पटेल को भी अपने पाले में कर लिया. लिहाजा, पाटीदार आंदोलन बेअसर रहा. इसका भी फायदा बीजेपी को इस बार मिला है.
मोरबी हादसा जितनी तेजी से हेडलाइन बनी उतनी ही तेजी से बीजेपी आलाकमान ने मामले को अपने हाथ में ले लिया. आनन-फानन में मामले को डायवर्ट किया गया कि ये सरकार की लापरवाही नहीं बल्कि स्थानीय प्रशासन की लापरवाही है. इसमें सख्त कार्रवाई की जाएगी. गुजरात के गृहमंत्री हर्ष संघवी लगातार घटना स्थल पर डटे रहे और कार्रवाई का आश्वासन देते रहे. मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने भी घटना स्थल पर पहुंचकर ये संदेश देने की कोशिश कि सरकार आपके साथ है. इतना ही नहीं खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोरबी घटना स्थल का दौरा किया और अधिकारियों को कार्रवाई के दिशा निर्देश दिए. इसके अलावा उन्होंने अस्पताल जाकर पीड़ितों से मुलाकात की. इससे जनता के बीच संदेश गया कि सरकार उनके साथ है, लापरवाही स्थानीय प्रशासन से हुई है. इसी का नतीजा रहा कि बीजेपी ने मोरबी से भी जीत दर्ज कर ली.
गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी नहीं बल्कि पीएम मोदी चुनाव लड़ रहे थे, अगर ये बात कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. लगातार 4 बार गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके पीएम मोदी, प्रदेश और गुजरात की जनता की नब्ज को अच्छे से जानते हैं. गुजरात विधानसभा चुनावों के ऐलान के बाद से ही पीएम मोदी गुजरात में डटे हुए थे. वो अपनी सभाओं और रैलियों में खुद को गुजरात का बेटा कहकर जनता में ये संदेश दे रहे थे कि बीजेपी की हार पार्टी की हार नहीं बल्कि आपके बेटे की हार होगी. मोरबी पुल हादसे को लेकर भी पीएम मोदी ने जिस प्रकार से सक्रियता दिखाई, उससे भी जनता के बीच एक अच्छा संदेश गया.
दरअसल, गुजरात विधानसभा 2022 में जोर-शोर से मैदान में उतरी AAP को दोपहर एक बजे तक 13 फीसदी के करीब वोट मिले हैं. AIMIM को भी करीब आधा फीसदी, बीजेपी को 53 और कांग्रेस को 27 फीसदी वोट मिले हैं. साल 2017 विधानसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी को 45 फीसदी वोट मिले थे. कांग्रेस ने 32 फीसदी वोट पर कब्जा किया था. जबकि AAP और AIMIM को 2 फीसदी वोट मिला था. अब इन आंकड़ों को देखेंगे तो साफ नजर आ रहा है कि AAP ने कांग्रेस के वोट को अपने ऊपर ट्रांसफर करवाया है.
गुजरात विधानसभा में कांग्रेस की निष्क्रियता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी ने पूरे गुजरात में सिर्फ दो जगह (सूरत और राजकोट) पर रैलियां कीं. ये वो जिलें हैं जहां कांग्रेस का जनाधार सबसे कमजोर था. उधर, प्रियंका गांधी भी हिमचल में ही रहीं. यानी कुल मिलाकर कांग्रेस ने गुजरात विधानसभा चुनाव को राम भरोसे छोड़ दिया था. जिसका नतीजा रहा कि उसका वोटबैंक खिसक कर AAP पर चला गया.
आपकी कुछ परेशानियां होंगी, लेकिन ये वोट तो गुजरात के सम्मान का वोट है-बीजेपी गुजरातियों को संदेश देने में सफल रही. बीजेपी गुजरातियों को ये संदेश देने में कामयाब रही कि अगर अपने ही प्रदेश में हमें हार का सामना करना पड़ेगा तो फिर हम किस मुंह से दूसरे प्रदेशों में जाकर वोट मांगेंगे? बीजेपी गुजरातियों को ये भी संदेश देने में कामयाब रही कि अगर प्रदेश में आप लोग सरकार बनाते हैं तो दिल्ली की दूरी गुजरात से ज्यादा दूर नहीं होगी.
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