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तेलंगाना (Telangana) में इस साल के अंत में राज्य विधानसभा के चुनाव होने हैं, लेकिन लगातार तीसरी बार सत्ता में आने का ख्वाब देख रही चंद्रशेखर राव की पार्टी भारत राष्ट्र समिति (BRS) को बड़ा झटका लगा है.
मल्काजगिरी से विधायक और BRS के बड़े नेता मयनामपल्ली हनुमंत राव ने पार्टी छोड़ दी. वे लगातार अपने बेटे रोहित को मेडक सीट से टिकट देने की मांग कर रहे थे, लेकिन टिकट न मिलने से नाराज होकर उन्होंने अपनी भी सीट छोड़ दी है.
हालांकि, हाल ही BRS द्वारा तेलंगाना विधानसभा चुनाव को लेकर जारी प्रत्याशियों की सूची में हनुमंत राव को मल्काजगिरी से ही टिकट दिया मिला था. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने पार्टी छोड़ दी. सूत्रों की मानें तो, राव जल्द ही कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. वैसे ये कोई पहले मामला नहीं है, जब BRS के नेताओं ने पार्टी छोड़ी है.
कृष्णा राव 2011 में तेलंगाना राज्य गठन के लिए आंदोलन के दौरान कांग्रेस छोड़ बीआरएस (जो तब तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) थी) में शामिल हुए थे. पोंगुलेटी ने वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के टिकट पर 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की थी और बाद में BRS में शामिल हो गये थे.
दरअसल, BRS में विधायकों का इस्तीफा अचनाक नहीं है, बल्कि इसके कयास पहले से ही लगाए जा रहे थे. चुनाव से करीब 4 महीने पहले ही अगस्त में KCR की भारत राष्ट्र समिति ने चुनावों के लिए 115 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी. खास बात है कि लिस्ट में सिर्फ 7 लोगों का टिकट कटा, बाकी सब पुराने चेहरे हैं. इसके अलावा 6 नए चेहरों को जगह मिली.
चुनाव से काफी पहले ही उम्मीदवारों के नाम का ऐलान करके KCR ने मैसेज दिया कि उनकी पार्टी चुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार है. लेकिन ये उल्टा भी पड़ सकता है.
केसीआर ने न तो 2018 के चुनाव में ज्यादा चेहरे बदले (तब सिर्फ 14 BRS विधायकों के टिकट कटे थे) और न ही इस बार के चुनाव में. इसीलिए वो नेता जो लंबे समय से पार्टी के लिए काम करते आ रहे हैं, टिकट न मिलने से अब बगावती तेवर अपना रहे हैं.
वहीं, राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो कांग्रेस राज्य में मजबूत स्थिति में हैं. एक तो पार्टी का कैडर काफी मजबूत है. दूसरा, केसीआर सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी भी है. इसके अलावा, राज्य में कई बड़े नेताओं के बीआरएस छोड़ने से भी कांग्रेस को लाभ मिल रहा है.
2014 के चुनावों में कांग्रेस को सिर्फ 21 और 2018 में 19 सीटें मिली थीं. पार्टी को राज्य में दमदार चेहरों की भी तलाश है. इसलिए कांग्रेस के खेमें में आने वाले BRS नेता चुनावों से पहले तुरुप का इक्का साबित हो सकते हैं.
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