मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Politics Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019टिकट से नाराज या पारी पूरी, BJP की लिस्ट जारी होने पर डॉ. हर्षवर्धन ने क्यों छोड़ी राजनीति?

टिकट से नाराज या पारी पूरी, BJP की लिस्ट जारी होने पर डॉ. हर्षवर्धन ने क्यों छोड़ी राजनीति?

Harsh Vardhan quits politics: डॉ. हर्षवर्धन ने एक्स पर एक लंबा पोस्ट लिखकर अपने राजनीतिक करियर के संन्यास का ऐलान किया.

पल्लव मिश्रा
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>पीएम मोदी के साथ डॉ. हर्षवर्धन&nbsp;</p></div>
i

पीएम मोदी के साथ डॉ. हर्षवर्धन 

(फोटो: डॉ.हर्षवर्धन/फेसबुक)

advertisement

बीजेपी ने लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर उम्मीदवारों की पहली सूची शनिवार (2 मार्च) को जारी की. 195 प्रत्याशियों के नाम की लिस्ट में कई सांसदों के नाम गायब रहे और उनकी जगहों पर नए प्रत्याशियों को मैदान में उतारा गया है. इसमें से एक नाम पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और दिल्ली की चांदनी चौक सीट से मौजूदा सांसद डॉ. हर्षवर्धन (Dr. Harsh Vardhan) का भी है.

भारतीय जनता पार्टी ने चांदनी चौक से 2024 लोकसभा चुनाव के लिए्र प्रवीण खंडेलवाल को प्रत्याशी बनाया है. खंडेलवाल के नाम की घोषणा होने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री ने राजनीति से संन्यास का ऐलान कर दिया और कहा कि अब वो दोबारा से अपने पुराने काम (डॉक्टर) में लौटेंगे. हालांकि, अब बीजेपी नेता के रिटायरमेंट को लेकर कई सवाल उठा रहे हैं. लेकिन क्यों?

डॉक्टर हर्षवर्धन ने क्या कहा?

बीजेपी द्वारा लिस्ट जारी होने के एक दिन बाद रविवार (3 मार्च) को चांदनी चौके के सांसद ने दोपहर 1:20 बजे अपने एक्स पर एक लंबा-चौड़ा पोस्ट लिखा. इसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि तीन दशक के अपने शानदार चुनावी करियर के बाद अब वो अपनी जड़ों की ओर लौटना चाहते हैं.

अपने पोस्ट में डॉक्टर हर्षवर्धन ने एक तरफ अपने शानदार तीन दशक के लंबे राजनीतिक जीवन की उपलब्धियां गिनाई तो दूसरी तरफ पार्टी नेताओं का धन्यवाद भी दिया, जिन्होंने उनके सार्वजनिक जीवन की यात्रा में समर्थन किया.

हर्षवर्धन ने अपने एक्स पोस्ट में क्या लिखा, उसे नीचे पढ़ सकते हैं-

एक चीज जो उनके पोस्ट में खास रही, वो थी उनकी सरलता, सहजता, पार्टी और अपने पेशे के प्रति वफादारी. पूर्व केंद्रीय मंत्री ने सरलता के बाद अपने कार्यों का जिक्र किया और उसके लिए ईश्वर को धन्यवाद दिया तो दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा कर संदेश दिया कि उन्हें किसी भी चीज का मलाल नहीं है.

आमतौर पर जब किसी नेता का टिकट कटता है या नहीं मिलता है तो वो कुछ विरोध के स्वर या कहें कि नाराजगी सार्वजनिक रूप से जाहिर करता है, लेकिन हर्षवर्धन ने ऐसा कुछ भी नहीं किया.

सांसद ने पीएम मोदी के उस नारे को भी सही करने की कोशिश की, जिसका प्रधानमंत्री बार-बार जिक्र करते हैं कि "राजनीति बीजेपी नेताओं के लिए सत्ता की चाहत का केंद्र नहीं बल्कि सेवा का उद्देश्य है".

हर्षवर्धन ने कहा कि वो तात्कालीक संघ प्रमुख के कहने पर राजनीति में आए थे और इस दौरान उन्होंने मानव जातीय के सेवा के लिए अनेकों काम किये. बीजेपी नेता ने पोस्ट में सेवा भावना को काफी ऊंचा बताया है.

उन्होंने एक तरफ अपने मूल काम की तरफ लौटने पर खुशी जताई तो दूसरी तरफ ये भी कहा कि वो तंबाकू और मादक द्रव्यों के सेवन के खिलाफ, जलवायु परिवर्तन के खिलाफ और सरल और टिकाऊ जीवन शैली सिखाने के लिए अपना काम जारी रखेंगे. यानी पदमुक्त होने के बाद भी वो बिना किसी जिम्मेदारी के मानव जातीय के विकास के लिए काम करेंगे.

(फोटो: डॉ.हर्षवर्धन/X)

डॉ. हर्षवर्धन पॉलिटिक्स से क्यों हुए रिटायर?

डॉ. हर्षवर्धन पॉलिटिक्स से क्यों रिटायर हुए, इसकी वजह आधिकारिक तौर पर अभी तक सामने नहीं आई है, लेकिन क्विंट हिंदी ने जब सांसद हर्षवर्धन को करीब से जानने वाले लोगों से बात की तो उन्होंने कहा कि पूर्व केंद्रीय मंत्री अब वापस से अपने पुराने काम में लौटना चाहते हैं और नए लोगों को मौका देने के लिए उन्होंने ऐसा कदम उठाया है.

नाम न छपने की शर्त पर डॉ.हर्षवर्धन के एक करीबी व्यक्ति ने कहा, "डॉक्टर साहब को लंबे वक्त से करीब से देख रहा हूं, उनके मन में कभी किसी पद या कुर्सी की इच्छा नहीं रही है. वो पॉलिटिक्स में अपने से नहीं बल्कि संघ नेतृत्व के कहने पर आए थे. अब जब उनको लगा कि दूसरो को मौका देना चाहिए तो उन्होंने रिटायरमेंट का ऐलान कर दिया."

लोगों को संबोधित करते हुए डॉ. हर्षवर्धन

(फोटो: डॉ.हर्षवर्धन/X)

"डॉ. हर्षवर्धन अपना काम बहुत शालीनता, सादगी और बिना दिखावे से करना पसंद करते हैं. वो जब केंद्र में मंत्री थे तो उनकी पत्नी मारुति ऑल्टो कार से चलती थी, उसमें भी ड्राइवर का पैसा डॉक्टर साहब खुद देते थे, वो चाहते तो सरकारी वाहन का प्रयोग कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा कभी नहीं किया. ये सब तब था जब उनके पास तीन-तीन बड़े मंत्रालय थे. उनका बेटा प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता है. आप सोचिए जिसका पिता या पति केंद्र में मंत्री हो, उसका परिवार आज के जमाने में ऐसा करेगा? शायद बहुत कम ही लोग सियासत में ऐसे हैं."

हर्षवर्धन के करीबी व्यक्ति ने बताया, "वो उस तरह के नेता नहीं है, जो अन्य लीडर्स की तरह बहुत वोकल हैं, आप उनके विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र में जाकर लोगों से पूछिए तो पता चलेगा कि उनका काम का तरीका क्या है. वो अन्य नेताओं की तरह बहुत बड़े-बड़े प्रचार नहीं करते बल्कि कार्यकर्ताओं का उनसे अलग तरीके से जुड़ाव है और यही वजह है कि वो चुनाव दर चुनाव जीतते आ रहे हैं."

(फोटो: डॉ.हर्षवर्धन/X)

"उनको टिकट क्यों नहीं दिया गया या उन्होंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया, इस पर तो मैं कुछ नहीं कह सकता लेकिन हां, इतना जरूर है कि पार्टी ने उन्हें हमेशा बड़ी जिम्मेदारी थी. वो मंत्री से हट गये फिर भी वो विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी बोर्ड के एक साल तक चेयरमैन रहे. वो अभी भी कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्था से जुड़े हैं. क्लाइमेट चेंज और हेल्थ सेक्टर में उनका काम लगातार जारी है. उन्होंने पोलियो के क्षेत्र में जो काम किया है, उसे सभी जानते हैं. इसलिए उन्हें "पोलियो मैन" भी कहा जाता है."
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

क्या डॉ. हर्षवर्धन लंबे समय से रिटायर होने की सोच रहे थे? इस पर उन्होंने कहा, "आप ऐसा नहीं कह सकते हैं. वो राजनीतिक और सरकारी दोनों कार्यक्रमों में शिरकत कर रहे थे. पार्टी की मीटिंग में भी वो जाते थे. सोशल मीडिया पर भी वो लगातार एक्टिव थे, तो ये कहना गलत हैं कि वो रिटायर होने की सोच रहे थे या पॉलिटिक्स में कम एक्टिव थे."

"डॉ. हर्षवर्धन के काम करने का तरीका बड़ा अलग है. मैं आज तक उन्हें कभी किसी का अपमान करते नहीं देखा. आप उनके बयान देख लीजिए या फिर उनके सोशल मीडिया पोस्ट, वो सभी को "जी" लगाकर संबोधित करते हैं. फिर चाहे वो राहुल गांधी हों या फिर अरविंद केजरीवाल, डॉ. हर्षवर्धन ने हमेशा सभी का सम्मान किया है. हालांकि, ये रहा है कि पार्टी में हमेशा से दो धड़ा रहता है. हो सकता है कि उनके काम करने के तरीके को कुछ लोग न पसंद करें लेकिन उनका विरोध हो , ऐसा बहुत कम लगता है."

हर्षवर्धन की जगह प्रवीण खंडेलवाल क्यों?

बीजेपी में 75+ का पैमाना सेट किया गया है यानी जो नेता इसके करीब या इससे अधिक उम्र के हैं पार्टी उन्हें सक्रिय राजनीति में बॉय-बॉय कर देती है. हालांकि, हाल ही आई बीजेपी की लिस्ट में 75 साल के करीब के कई नेताओं को मैदान में उतारा गया है तो फिर 69 साल के डॉक्टर हर्षवर्धन की जगह 64 साल के प्रवीण खंडेलवाल क्यों?

(फोटो: डॉ.हर्षवर्धन/X)

जानकारी के अनुसार, प्रवीण खंडेलवाल लंबे समय से बीजेपी के लिए पर्दे के पीछे रहकर काम कर रहे हैं. वो बड़े व्यापारी नेता हैं. बीजेपी ने हमेशा नए विकल्प की तलाश करती रही है. उसी क्रम में खंडेलवाल को चुना गया है.

बताया जाता है कि कोविड-19 के दौरान उन्होंने (खंडेलवाल) पार्टी के लिए कई काम किया. कोरोना महामारी के दौरान जरूरी समानों की कमी न हो, ट्रासपोटेशन लगातार जारी रहे, सामान की कीमत न बढ़े, इन सभी पर कई बड़े अधिकारी और सरकार के साथ मिलकर उन्होंने बहुत काम किया था. उन्होंने जीएसटी लागू कराने में भी बहुत सहयोग किया. केंद्र सरकार ने 2017 में खंडेलवाल को जीएसटी पैनल का हिस्सा बनने के लिए नामित किया था."

खंडेलवाल ने FICCI, CAIT और इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स के साथ मिलकर कई सरकारी योजनाओं को लागू करने में मदद भी की है. ऐसे में बीजेपी ने उन्हें चांदनी चौक से मौका दिया है.

डॉक्टर हर्षवर्धन कैसा रहा राजनीतिक सफर?

डॉ. हर्षवर्धन गोयल का जन्म 13 दिसंबर 1954 को दिल्ली में हुआ था. हर्षवर्धन की छवि साफ सुथरे और ईमानदार नेता की है. उन्हें आरएसएस की पसंद बताया जाता है. हर्षवर्धन दिवगंत नेता अरुण जेटली और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के काफी करीब रहे हैं.

हर्षवर्धन दिल्ली सरकार में हेल्थ,कानून और शिक्षा मंत्री रह चुके हैं, जबकि केंद्र में वो पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री और पृथ्वी विज्ञान मंत्री रह चुके हैं.

दिल्ली के 2013 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाया था, जिसमें पार्टी 70 में से 31 सीट जीती, हालांकि सरकार बनाने के बहुमत से बीजेपी दूर रह गई थी.

दिल्ली की कृषणा नगर सीट से पांच बार के लगातर विधायक और चांदनी चौक से दो बार के लगातार सांसद डॉ. हर्षवर्धन पहली बार 1993 में विधायक चुने गए. इसके बाद 1998, 2003, 2008 और 2013 में विधानसभा का चुनाव जीते थे जबकि 2014 और 2019 में सांसद बने.

हर्षवर्धन जब तक दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ते रहे तब तक कृष्णा नगर सीट बीजेपी का गढ़ बनी रही लेकिन उनके जाने के बाद यहां पिछले दो चुनाव में "बीजेपी का कमल" नहीं खिला और "आप की झाडू" सब वोट साफ कर गया.

विधानसभा या फिर लोकसभा चुनाव, डॉ. हर्षवर्धन हर चुनाव एमबीबीएस और एमएस की कठिन परीक्षा की तरह बेहतरीन नंबर्स के साथ पास करते गये.

2014 में बीजेपी ने पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से टिकट नहीं दिया, जो उनकी कृष्णा नगर विधानसभा में आती बल्कि चांदनी चौके से मैदान में उतार दिया. यहां भी डॉ. हर्षवर्धन ने सफलता का नया इतिहास लिखा.

उन्होंने प्रसिद्ध टीवी पत्रकार और तात्कालीक AAP नेता आशुतोष और कांग्रेस के दिग्गज नेता कपिल सिब्बल को चुनाव में भारी अंतर से मात दी. हर्षवर्धन को 44.6% वोट शेयर के साथ 437,938 लाख मत मिले जबकि आशुतोष को 30.7% वोट शेयर के साथ 301,618 मत मिले. वहीं, कांग्रेस के कपिल सिब्बल तीसरे स्थान पर रहे और उनका वोट शेयर 17.9 प्रतिशत था. उन्हें 176,206 लाख ही वोट मिले थे. इस चुनाव में हर्षवर्धन ने करीब 1.36 लाख वोटों से जीत हासिल की थी.

वर्धन ने 2019 में भी दिल्ली की चांदनी चौक सीट से चुनाव लड़ा, जहां उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार जय प्रकाश अग्रवाल को 2,28,145 वोटों के अंतर से हराया. बीजेपी नेता को 519,055 लाख वोट मिले तो कांग्रेस को 290,910 लाख मत मिला.

हर्षवर्धन का वोट शेयर 52.94 प्रतिशत तो उपविजेता अग्रवाल को 29.67% वोट मिले. यानी चुनाव दर चुनाव डॉ. हर्षवर्धन की लोकप्रियता और जीत का अंतर बढ़ता गया.

अब इस शानदार चुनावी ट्रैक रिकॉर्ड को देखें तो यह समझना मुश्किल है कि आखिर डॉ. हर्षवर्धन को तीसरा मौका क्यों नहीं मिला. हालांकि, उनके समर्थकों और करीबियों का मानना है कि बीजेपी नेतृत्व ने उनसे बात की होगी, तभी कुछ फैसला लिया गया है. लेकिन हकीकत क्या है ये हर्षवर्धन और बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व ही जानता है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT