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हरियाणा: मंत्री पद, टिकट या कुछ और, निर्दलीयों ने क्यों खींचा हाथ, चुनावों पर कितना असर?

Haryana Political Crisis: तीन निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापस लेने के बाद नायब सिंह सरकार अल्पमत में नजर आ रही है.

मोहन कुमार
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>हरियाणा: मंत्री पद, टिकट या कुछ और, निर्दलीयों ने क्यों खींचा हाथ, चुनावों पर कितना असर?</p></div>
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हरियाणा: मंत्री पद, टिकट या कुछ और, निर्दलीयों ने क्यों खींचा हाथ, चुनावों पर कितना असर?

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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हरियाणा (Haryana) में लोकसभा चुनाव Lok Sabha Election) के बीच 3 निर्दलीय विधायकों ने CM नायब सिंह सैनी (Chief Minister Nayab Singh Saini) के नेतृत्व वाली BJP सरकार से समर्थन वापस ले लिया है. इनमें पुंडरी से विधायक रणधीर गोलेन, नीलोखेड़ी से धर्मपाल गोंदर और चरखी दादरी से विधायक सोमबीर सांगवान शामिल हैं. इन विधायकों ने कांग्रेस को समर्थन देना का ऐलान किया है.

पूर्व उपमुख्यमंत्री और जननायक जनता पार्टी (JJP) के नेता दुष्यंत चौटाला (Dushyant Chautala) ने बुधवार, 8 मई को कहा कि अगर विपक्ष के नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा (Bhupinder Singh Hooda) राज्य सरकार को गिराने की कोशिश करते हैं तो वह उनका समर्थन करेंगे.

इस पूरे घटनाक्रम के बीच हरियाणा का सियासी पारा चढ़ा हुआ है. विपक्षी दलों ने CM नायब सैनी को इस्तीफा देने को कहा है. वहीं सीएम सैनी और पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्‌टर ने कहा कि सरकार को कोई खतरा नहीं है.

चलिए आपको बताते हैं कि तीनों निर्दलीय विधायकों ने नायब सैनी सरकार से क्यों समर्थन वापस लिया? इसके पीछे की असल वजह क्या है? इसके साथ ही बताएंगे कि इसका लोकसभा चुनाव पर क्या असर पड़ेगा? वहीं विधानसभा चुनाव के लिए कैसे पिच तैयार हो रही है?

विधायकों ने क्या बताई वजह?

तीनों निर्दलीय विधायकों ने किसानों के मुद्दे, बेरोजगारी, महंगाई सहित कई अन्य मुद्दों पर नाराजगी व्यक्त करते हुए प्रदेश सरकार से समर्थन वापस लेने की बात कही है. निर्दलीय विधायक रणधीर सिंह गोलेन ने कहा, "हमने ईमानदारी से बीजेपी सरकार को अपना समर्थन दिया था. लेकिन आज बेरोजगारी चरम पर है और महंगाई व किसानों की समस्या बरकरार है. समाज का हर वर्ग तंग आ चुका है. लोगों को परिवार पहचान पत्र और संपत्ति आईडी प्रणाली के साथ कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है."

निर्दलीय विधायक मुख्यमंत्री बदलने से भी नाराज चल रहे थे. निर्दलीय विधायक चाहते थे कि मनोहर लाल खट्टर ही हरियाणा के मुख्यमंत्री रहें. लेकिन बीजेपी आलाकमान ने खट्टर की जगह सैनी को प्रदेश का मुख्यमंत्री चुना.

''हमने तय किया था कि जब तक मनोहरलाल खट्टर सत्ता में हैं, हम समर्थन करेंगे. हमें दुख है कि वह हमारे सेनापति ही हमें छोड़ कर चले गए हैं. किसानों के हित में हम सरकार से समर्थन वापस लेते हैं.''
नीलोखेड़ी से विधायक धर्मपाल गोंधेर

विधायक सोमबीर सांगवान ने कहा, ''मैं राज्यपाल से अनुरोध करता हूं कि इस सरकार को तुरंत बर्खास्त किया जाना चाहिए. मुख्यमंत्री सैनी को पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है और उन्हें पद छोड़ देना चाहिए.''

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समर्थन वापस लेने की इनसाइड स्टोरी

हरियाणा में हाल ही में बीजेपी ने JJP से गठबंधन तोड़कर निर्दलीयों की मदद से दोबारा सरकार बनाई थी. निर्दलीय विधायकों को लगा था कि उन्हें मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसी बात से निर्दलीय सरकार से नाराज बताए जा रहे थे. नायब सैनी कैबिनेट में रणजीत चौटाला को छोड़कर किसी भी निर्दलीय को जगह नहीं मिली. चौटाला खट्टर सरकार में भी मंत्री थे. अभी रणजीत चौटाला ने विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है.

सूत्रों के मुताबिक, अहम बात यह भी है कि निर्दलीय विधायकों कि पृष्टभूमि बीजेपी की ही है. लेकिन वह आगामी विधानसभा चुनाव के लिए टिकट को लेकर बीजेपी से आश्वस्त नहीं थे और इस कारण उन्होंने समर्थन वापस ले लिया है.

भूपिंदर सिंह हुड्डा के साथ निर्दलीय विधायक रणधीर गोलेन, धर्मपाल गोंदर और सोमबीर सांगवान.

(फोटो: फेसबुक)

विधानसभा का नंबर गेम

हरियाणा विधानसभा में विधायकों की कुल संख्या 90 है जिसमें दो सीटें अभी खाली हैं. ऐसे में अभी बहुमत का आंकड़ा 45 है.

हरियाणा विधानसभा की वेबसाइट के अनुसार, असेंबली में बीजेपी के 40, कांग्रेस के 30, दुष्यंत चौटाला की जेजेपी के 10, निर्दलीय सात, इंडियन नेशनल लोक दल एक और एचएलपी के पास एक विधायक हैं.

बीजेपी के पास 40 अपने विधायक हैं. साथ ही उसे 2 निर्दलीय के साथ हरियाणा लोकहित पार्टी के एक विधायक गोपाल कांडा का समर्थन है. इस तरह बीजेपी के साथ अभी 43 विधायक नजर आ रहे हैं जोकि बहुमत से कम है.

तीन निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापस लेने के बाद नायब सिंह के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार अल्पमत में नजर आ रही है.

लोकसभा चुनाव पर कितना असर?

बीजेपी से समर्थन वापस लेने वाले तीनों निर्दलीय विधायकों ने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का समर्थन करने का ऐलान किया है. बता दें कि हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों पर छठे चरण में 25 मई को लोकसभा चुनाव होना है. प्रदेश में इस बार त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है. बीजेपी, कांग्रेस और JJP आमने-सामने हैं. आम आदमी पार्टी (AAP) इंडिया गठबंधन के तहत कुरुक्षेत्र सीट पर चुनाव लड़ रही है. दुष्यंत चौटाला ने भी प्रदेश की दसों सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं.

इस पूरे घटनाक्रम का लोकसभा चुनाव पर क्या असर होगा. इसको लेकर क्विंट हिंदी से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री कहते हैं, "विपक्ष अभी कुछ नहीं करेगा. ये एक मनोवैज्ञानिक युद्ध है. विपक्षी पार्टियां एक संदेश देने की कोशिश में जुटी हैं कि सैनी सरकार कभी भी गिर सकती है."

वो आगे कहते हैं,

"इसका एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव लोकसभा और विधानसभा चुनाव दोनों पर पड़ेगा. अगर विपक्ष ये साबित कर देता है कि बीजेपी की सरकार तो गई और 4 जून को मान लीजिए 6-4 का स्कोर रहता है. बीजेपी को 6 और कांग्रेस को 4 सीटें मिलती है, तो बीजेपी सरकार को लेने के देने पड़ सकते हैं. फिर सरकार गिर सकती है."

जानकारों की मानें तो फिलहाल कुछ नहीं होगा. 4 तारीख को लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद ही तस्वीर साफ हो पाएगी. अभी तो सभी लोग चुनाव में जुटे हैं.

पूर्व मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने कहा, "चुनावी माहौल में कौन कहां जाता है, इससे कोई अंतर पड़ने वाला नहीं है. बहुत से विधायक हमारे भी संपर्क में हैं इसलिए किसी को चिंता नहीं करनी चाहिए."

चलिए अब आपको बताते हैं कि तीनों निर्दलीय विधायकों का किन-किन लोकसभा सीटों पर प्रभाव है.

पुंडरी विधानसभा कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट के अंदर आता है. इस सीट पर निर्दलीय विधायकों का ही कब्जा रहा है. 2014 में रणधीर गोलेन ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था और हार गए थे. 2019 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उन्हें जीत मिली. इस बार कुरुक्षेत्र सीट पर बीजेपी, INLD और आम आदमी पार्टी के बीच मुकाबला है. नवीन जिंदल के सामने अभय चौटाला और सुशील गुप्ता मैदान में हैं. 2019 में नायब सिंह सैनी ने यहां से चुनाव जीता था.

वहीं नीलोखेड़ी करनाल लोकसभा सीट के अंतर्गत आती है. यहां से धर्मपाल गोंदर विधायक हैं. 2009 में धर्मपाल गोंदर ने यहां से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था और हार गए थे. 2019 में वो निर्दलीय जीते. बता दें कि इस बार करनाल सीट से पूर्व मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर बीजेपी की तरफ से मैदान में हैं. 2014 से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा है.

सोमबीर सांगवान चरखी दादरी से निर्दलीय विधायक हैं. 2019 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहीं पहलवान बबीता कुमारी को हराया था. 2014 में बीजेपी के टिकट पर सांगवान को हार का सामना करना पड़ा था. ये सीट भिवानी लोकसभा के अंतर्गत आती है. 2014 से इसपर बीजेपी का कब्जा है.

2019 लोकसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी ने प्रदेश की दसों सीटों पर कब्जा जमाया था. बीजेपी का वोट शेयर 58.21 फीसदी रहा था, जबकि कांग्रेस के खाते में 28.51 फीसदी वोट आए थे. पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रही JJP ने 4.9 फीसदी वोट पाए थे.

विधानसभा चुनाव के लिए पिच तैयार?

हरियाणा में वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 3 नवंबर, 2024 को समाप्त होगा. राज्य में विधानसभा चुनाव अक्टूबर में प्रस्तावित है. लेकिन बीजेपी सरकार पर मौजूदा संकट के बीच चुनाव को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. प्रदेश में चुनाव कभी भी हो लेकिन राजनीतिक पिच तैयार हो गई है.

सूत्रों के मुताबिक, निर्दलीय विधायकों ने विधानसभा चुनाव में बीजेपी से टिकट का आश्वासन नहीं मिलने के बाद पाला बदला है. ऐसे में जोड़-तोड़ की राजनीति अभी से शुरू हो गई है. सूत्रों का कहना है कि निर्दलीय विधायकों को कांग्रेस से टिकट का आश्वासन मिल चुका है.

दूसरी तरफ सरकार गिराने को लेकर दुष्यंत चौटाला ने कांग्रेस को समर्थन करने का ऐलान किया है. क्या विधानसभा चुनावों में कोई नया समीकरण बन सकता है? इस सवाल को खारिज करते हुए वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री कहते हैं, "कांग्रेस और जेजेपी के बीच गठबंधन नहीं बन सकता है. जेजेपी के 10 विधायक हैं. अगर आज दुष्यंत पार्टी विधायकों से आह्वान करते हैं तो उनकी पार्टी में बस वो और उनकी मां ही बचेंगे. बाकी के 8 विधायक अपना रास्ता खुद ही तय करेंगे."

अत्री आगे कहते हैं कि दुष्यंत चौटाला अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं. उनका कोई फेस वैल्यू नहीं है. "दुष्यंत और अभय चौटाला कुछ भी कर सकते हैं लेकिन वो कभी भी कांग्रेस का समर्थन नहीं करेंगे. उनका कोर वोट बैंक कांग्रेस के खिलाफ है. और वो बीजेपी के स्वाभाविक सहयोगी हैं."

बता दें कि 2019 विधानसभा चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस, JJP और INLD ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. बीजेपी ने 36.49% वोटों के साथ 40 सीटों पर कब्जा जमाया था. कांग्रेस को 28.08% वोट मिले थे और 31 सीटें आई थी. 14.80% वोट शेयर और 10 सीटें जीतकर JJP तीसरे नंबर पर रही थी. अभय चौटाला की पार्टी कुछ खास नहीं कर पाई थी और 2.44% वोट शेयर के साथ 1 सीट ही जीत पाई थी.

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