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हेमंत सोरेन की कुर्सी पर संकट, अगर विधायकी जाती है तो आगे कौन से रास्ते हैं?

जेएमएम के पास फिलहाल 30 विधायक हैं. वहीं कांग्रेस के पास 18 और आरजेडी के 1 विधायक सरकार में हैं.

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<div class="paragraphs"><p>झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन &nbsp;</p></div>
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झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन  

(फोटो: PTI)

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झारखंड (Jharkhand) की सियासत में इन दिनों भूचाल मचा हुआ है. कोयला खनन घोटाले में आरोपों से लेकर CBI की रेड तक झारखंड में कई ऐसी चीजें हो रही हैं जो सरकार को शायद अस्थिर कर सकती है. अब कुछ रिपोर्टस में दावा है कि चुनाव आयोग ने झारखंड के राज्यपाल को पत्र लिखकर हेमंत सोरेन (Hemant Soren) की विधानसभा सदस्यता निरस्त करने की सिफारिश की है. हालांकि राज्यपाल ने कहा है कि उनके पास ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं आई है. ऐसे में सवाल है कि यदि हेमंत सोरेन की विधायकी जाती है तो क्या होगा?

सोरेन की विधायकी जाने पर क्या हो सकता है?

अगर सीएम हेमंत सोरेन की विधायकी जाती है तो क्या सरकार गिर जाएगी. जवाब है, ये सब निर्भर करता है कांग्रेस के विधायकों के साथ में बने रहने तक. जेएमएम के पास फिलहाल 30 विधायक हैं. वहीं कांग्रेस के पास 18 और आरजेडी के 1 विधायक सरकार में हैं.

कुल 81 विधानसभा सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए चाहिए 41 मत. ऐसे में यूपीए के पास फिलहाल 49 विधायक हैं. अगर दोनों भाईयों की विधायकी जाती भी है, तो भी सरकार बहुमत में रहेगी और हेमंत सोरेन सीएम बने रहेंगे.

क्योंकि उनके पास दो ऑप्शन होंगे.

  • पहला कि चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएं.

  • दूसरा अगर उपचुनाव की नौबत आती भी है तो भी उनके पास छह महीने का समय होगा. और बरहेट, जहां से हेमंत फिलवक्त विधायक हैं, वह उनके लिए सुरक्षित सीट है. उस सीट से उन्हें हराना, बीजेपी के लिए फिलहाल आसान तो नहीं दिख रहा.

ऐसे में एक सवाल ये भी बनता है कि क्या चुनाव आयोग हेमंत सोरेन के चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा सकती है.

झारखंड हाईकोर्ट के वकील रश्मि कात्यायन कहते हैं, ‘’यहां सेक्शन 9ए का मामला है. ऐसे में आयोग केवल उन्हें डिसक्वालिफाई कर सकती है. चुनाव लड़ने पर रोक नहीं लगा सकती है.’’

वहीं दुमका जहां से उनके भाई बसंत सोरेन विधायक हैं, वहां बीजेपी की प्रत्याशी और पूर्व मंत्री लुईस मरांडी लगातार दो बार चुनाव हार चुकी हैं.

हेमंत सोरेन का पद पर रहते हुए लाभ लेने का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही चल रहा है. झारखंड हाईकोर्ट के वकील सोनल तिवारी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि-

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यहां एक और बात गौर करने लायक है. बीजेपी नेता बाबूलाल मरांडी की विधायकी जाएगी या रहेगी, ये मामला भी विधानसभा अध्यक्ष के पास है. क्योंकि 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में बाबूलाल ने अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा से चुनाव लड़ा था. उसमें उनके अलावा, प्रदीप यादव और बंधू तिर्की उनकी पार्टी से चुनाव जीते थे. चुनाव बाद उन्होंने अपनी पार्टी का विलय बीजेपी में कर लिया था. बाकि दोनों विधायक कांग्रेस में चले गए.

हालांकि केंद्रीय चुनाव आयोग ने बाबूलाल मरांडी की पार्टी का बीजेपी में विलय को मान्यता दे दी थी. लेकिन विधानसभा अध्यक्ष के कोर्ट में देखा जा रहा है कि एक तिहाई विधायक तो कांग्रेस में चले गए, ऐसे में बीजेपी में मर्जर को मान्यता दी जाए या नहीं. यही वजह है कि अभी तक झारखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष ही नहीं हैं. क्योंकि जब तक इस मामले में फैसला नहीं आएगा, अधिकारिक तौर पर उन्हें नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिल सकता.

आशंका ये जताई जा रही है कि अगर हेमंत सोरेन की विधायकी जाती है तो बाबूलाल मरांडी की भी विधायकी जाएगी. ऐसे में 26 सदस्यों वाली बीजेपी, 25 सदस्यों वाली हो जाएगी.

सरकार को कोई खतरा नहीं - झामुमो

सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा के एक मंत्री ने कहा है कि “सबसे पहले, राज्यपाल को इसे पढ़ना होगा और फिर अपना आदेश देना होगा. उस आदेश के आधार पर, सरकार अपील दायर कर सकती है और उसे चुनौती दी जाएगी. इसलिए सरकार को तत्काल कोई खतरा नहीं है. हालांकि, कुछ परिणाम होंगे जैसे पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का मोहभंग हो सकता है क्योंकि विपक्ष हम पर हमला करना जारी रखता है. हालांकि, चुनाव आयोग की राय पढ़े बिना यह सब अटकलें हैं. हम राज्यपाल के आदेश का इंतजार कर रहे हैं.

सार्वजनिक एजेंसियों का यह घोर दुरुपयोग -सोरेन

सीएमओ ने सोरेन के हवाले से कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि बीजेपी के एक सांसद और उनके कठपुतली पत्रकारों सहित भाजपा नेताओं ने खुद ईसीआई रिपोर्ट का मसौदा तैयार किया है, जो अन्यथा एक सीलबंद कवर रिपोर्ट है. संवैधानिक प्राधिकरणों और सार्वजनिक एजेंसियों का यह घोर दुरुपयोग और दीनदयाल उपाध्याय मार्ग में भाजपा मुख्यालय द्वारा इस शर्मनाक तरीके से इसका पूर्ण अधिग्रहण भारतीय लोकतंत्र में अनदेखी है.

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