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हेमंत सोरेन ने झारखंड के 11वें मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. लेकिन क्या राजनीतिक तौर पर बेहद अस्थिर और मुश्किल आर्थिक-सामाजिक चुनौतियों वाले इस राज्य में हेमंत का राज चलाना आसान होगा? झारखंड आर्थिक और सामाजिक विकास के लिहाज से देश के सबसे पिछड़े राज्यों में शुमार है. ऐसे में हेमंत की अगुआई वाली जेएमएम-कांग्रेस और आरजेडी की गठबंधन सरकार को इसके विकास के लिए काफी जोर लगाना होगा. आइए देखते हैं हेमंत सोरेन को राज्य को आगे बढ़ाने किन चुनौतियों से पार पाना होगा.
राज्य में जेएमएम-कांग्रेस और आरजेडी गठबंधन ने 81 में से 47 सीटें जीत ली हैं. पूरा बहुमत है. लेकिन जेएमएम को विपक्षी दल से ज्यादा गठबंधन के सबसे बड़ी सहयोगी कांग्रेस की महत्वाकांक्षा पर काबू रखना होगा. उन्हें अपनी पार्टी को भी भितरघात से बचाना होगा. छोटा राज्य होने की वजह से पार्टी विधायकों में मंत्री पद पाने की महत्वाकांक्षा काफी ज्यादा है.ऐसे में उन्हें बीजेपी की नजर से भी बचना होगा. बीजेपी राज्य में विधायकों को तोड़ सकती है. याद रहे कि झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता वाला राज्य रहा है. अब तक सिर्फ रघुवर दास की सरकार ने ही पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है.
झारखंड की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी और पलायन है.प्राकृतिक संसाधन और एक हिस्से में औद्योगिकीकरण के बावजूद राज्य में बेरोजगारी चरम पर है. झामुमो ने अपने घोषणा पत्र में सरकार बनने के दो साल के अंदर 5 लाख झारखंडी युवकों को नौकरी देने और बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया है. इस वादे को पूरा करना हेमंत के लिए बड़ी चुनौती होगी. पलायन रोकना भी एक बड़ी जिम्मेदारी होगी.
जमीन अधिग्रहण एक बड़ा मुद्दा है. कांग्रेस ने मोदी सरकार पर भूमि अधिग्रहण बिल को कमजोर और आदिवासियों के साथ धोखे करने का आरोप लगाया था. इसके साथ ही कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भाषणों में भी किसानों-आदिवासियों को उनकी भूमि का हक दिलाने का वादा किया. जेएमएम ने तो अपने घोषणा पत्र में भूमि अधिकार कानून बनाने का भी वादा किया है, जिसे अब हेमंत सोरेन को पूरा करना होगा.
भुखमरी से होने वाली मौतों को लेकर कई बार झारखंड सुर्खियों में रह चुका है. यह वही राज्य है जहां वर्ष 2017 में सिमडेगा जिले में 11 साल की संतोषी नामक बच्ची की भूख से तड़पकर हुई मौत की इस घटना पर हंगामा मच गया था. झारखंड को हर साल करीब 50 लाख टन खाद्यान्न चाहिए मगर यहां बेहतर से बेहतर स्थिति में भी 40 लाख टन ही उत्पादन हो पाता है. इस 10 लाख टन के अंतर को भर पाना हेमंत सोरेन के लिए चुनौती है.
झारखंड में यूं तो कई जिलों में नक्सलियों पर नकेल कसी जा चुकी है, मगर अब भी 13 नक्सल प्रभावित जिले बचे हैं. इनमें खूंटी, लातेहार, रांची, गुमला, गिरिडीह, पलामू, गढ़वा, सिमडेगा, दुमका, लोहरदगा, बोकारो और चतरा जिले शामिल हैं. इन्हें नक्सल मुक्त बनाना हेमंत सोरेन के लिए चुनौती होगी. झारखंड मॉब लिंचिंग के कारण भी बदनाम रहा है. ऐसे में हेमंत सोरेन के लिए अपनी सरकार में ऐसी घटनाओं को रोकना चुनौती होगा.
झारखंड चुनाव पैरा टीचर्स का मुद्दा जोर-शोर से उठा है. कहा जा रहा है कि इन शिक्षकों की नाराजगी भी रघुवर सरकार पर भारी पड़ी है. रघुवर सरकार ने अप्रशिक्षित पैरा टीचर्स को हटाने का आदेश दिया था. हालांकि, बाद में हाई कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी थी. हालांकि, अभी यह मामला कोर्ट में लंबित है. ऐसे में इन शिक्षकों को स्थायी करना भी हेमंत सोरेन के लिए एक बड़ा काम होगा.
हेमंत सोरेन ने सरकारी नौकरियों में स्थानीय लोगों को 75 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा किया है. जबकि झामुमो की सहयोगी कांग्रेस ने हर परिवार के सदस्य को नौकरी देने का वादा किया है. इन चुनावी वादों को पूरा करना हेमंत सरकार के लिए आसान नहीं होगा.
पत्थलगड़ी आंदोलन की वजह से राज्य के दस हजार आदिवासियों पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया है. झामुमो आदिवासियों के मुकदमे वापस करने की समर्थक रही है. इन केस को हटाना सोरेन की चुनौती होगी.
झारखंड लोक सेवा आयोग की नाकामी चुनाव के दौरान एक बड़ा मुद्दा था. आयोग ने 17 अगस्त 2015 को जिस परीक्षा का विज्ञापन निकाला था वो 25 जनवरी 2019 तक पूरी नहीं हो पाई. जेपीएससी का गठन होने के बाद सिर्फ 6 बार ही सिविल सर्विसेज की परीक्षा आयोजित की जा सकी हैं.
हेमंत के पिता शिबू सोरेन शराब और सूदखोरों के खिलाफ आंदोलन कर बड़े नेता बने थे. लेकिन अभी भी राज्य में शराब का प्रचलन एक बड़ी समस्या है. आदिवासी इलाकों में इसके प्रचलन ने गरीबी बढ़ाई है. हेमंत सोरेन शराबबंदी का वादा कर चुके हैं. अब देखना होगा कि भारी राजस्व देने वाला शराब का कारोबार क्या नई सरकार में भी पनपता रहेगा.
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