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"सीवान का सुल्तान", "बाहुबली", "रॉबिनहुड"... और न जाने क्या क्या. अपने अजीजों और विरोधियों के लिए अलग-अलग नाम से पुकारे जाने वाले बिहार के एक दिवंगत नेता फिर खबरों में हैं.
वहज है कि सीवान के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब की तीन साल बाद आरजेडी में घर वापसी हो गई है. उनके बेटे ओसामा शहाब भी पार्टी में शामिल हुए हैं. पार्टी में मां और बेटे का स्वागत करते हुए, आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद ने कहा कि शहाबुद्दीन "आरजेडी के संस्थापक सदस्य थे और उनका परिवार हमेशा इसका हिस्सा रहा था".
इन्हीं सवालों का जवाब खोजने की कोशिश करते हैं. शुरूआत आपको बेसिक ग्राउंड से वाकिफ करके करना सही रहेगा.
सीवान के बाहुबली नेता और कई लोगों की नजर में 'रॉबिनहुड' शहाबुद्दीन ने 1990 के दशक की शुरुआत से 2004 तक इस क्षेत्र की राजनीति पर दबदबा बनाए रखा. लेकिन 2008 के बाद आधा दर्जन से अधिक मामलों में दोषी ठहराए जाने के बाद उनका प्रभाव कम होना शुरू हो गया.
उन्हें 2009 के लोकसभा चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया गया, जिसके बाद आरजेडी ने उनकी पत्नि हिना को सीवान लोकसभा सीट से मैदान में उतारा. लेकिन वह निर्दलीय उम्मीदवार ओम प्रकाश यादव से चुनाव हार गईं. 2014 में तब बीजेपी उम्मीदवार रहे ओम प्रकाश ने फिर से आरजेडी उम्मीदवार हिना को हराया. 2019 में, हिना को फिर से आरजेडी के टिकट पर हार का सामना करना पड़ा, इस बार जेडीयू की कविता सिंह के हाथों.
उन्होंने 2024 का लोकसभा चुनाव सीवान से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ा और आरजेडी उम्मीदवार अवध बिहारी चौधरी से भी आगे रहते हुए दूसरे स्थान पर रहीं. उनके निर्दलीय लड़ने से आरजेडी का मुस्लिम-यादव वोटबैंक बंट गया, जिससे जेडीयू की विजय लक्ष्मी कुशवाह के लिए 90,000 से अधिक वोटों के अंतर से सीट जीतना आसान हो गया.
2021 में कोरोना से शहाबुद्दीन के निधन के बाद हिना और आरजेडी में तकरार सामने आई. हिना कथित तौर पर 2020 में इसलिए आरजेडी से अलग हो गईं क्योंकि उनके कुछ उम्मीदवारों को उस साल विधानसभा चुनाव में सीवान निर्वाचन क्षेत्रों से टिकट नहीं दिया गया था.
माना जा रहा है कि हिना शहाब अब 2025 के विधानसभा चुनावों का इंतजार कर रही हैं जिसमें उनके बेटे ओसामा के चुनाव लड़ने की सबसे अधिक संभावना है.
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार रवि उपध्याय कहते हैं कि हिना और आरजेडी, दोनों का एक-दूसरे के पास आना जरूरी और मजबूरी दोनों हैं. हिना के लिए बीते तमाम चुनाव के नतीजे बता रहें कि वो शहाबुद्दीन की लेगेसी को आगे लेकर नहीं जा सकी हैं. और 2024 के सांसदी के चुनाव में सीवान के अंदर हिना के निर्दलीय चुनाव लड़ने की वजह से आरजेडी के कोर वोटर बंट गए और जीत न हिना को मिली और न आरजेडी को. अब दोनों साथ आकर इस जीत के फासले को पाटना चाहते हैं.
वहीं प्रशांत किशोर अपनी जन सुराज पार्टी से मुस्लिम वोटों को अपने पाले में करने की कोशिश में हैं और मुस्लिम वोटर भी उनकी तरफ देख रहे हैं. ऐसे में आरजेडी के लिए चुनौती है कि वह कैसे अपने कोर वोटर को वापस अपने साथ लाती है. पार्टी इसीलिए विधानसभा चुनाव के पहले मुस्लिम वोटों को साथ लाने की रणनीति पर काम कर रही है. पार्टी अपने पुराने खिलाड़ियों को वापस पाले में लाने की कोशिश में है, चाहे उसके लिए उसे पुराने गिले-शिकवे दूर ही क्यों न करना पड़े.
दूसरी तरफ बीजेपी लगातार हिंदू वोटो को एकजुट करने की रणनीति पर काम कर रही है, जैसे केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह अपनी हिंदू स्वाभिमान यात्रा के साथ हिंदू एकजुटता की आवाज उठा रहे हैं.
रवि उपध्याय का मानना है कि हिना शहाब के साथ आने का फायदा आरजेडी को केवल सीवान-गोपालजंग के आसपास के जिलों में ही मिलेगा, पूरे बिहार में नहीं. पूरे बिहार के मुस्लिम वोटरों में फिर से पैठ मजबूत करने के लिए पार्टी को दूसरी रणनीतियों पर भी काम करना होगा.
यह लगभग तय माना जा रहा है कि शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा 2025 विधानसभा चुनाव के जरिए चुनावी राजनीति में एंट्री लेने को तैयार है. रवि उपध्याय के अनुसार ओसामा सीवान की रघुनाथपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेगें. हालांकि वो इस बात पर भी ध्यान दिलाते हैं कि ओसामा सार्वजनिक तौर पर नेता की तरह बोलते नहीं है और इस वजह से वह जनता से अभी कनेक्ट नहीं कर पाते. इसके उलट शहाबुद्दीन की छवि जनता के बीच दबदबे के साथ गरजते हुए अपनी बात रखने की थी. यह फैक्टर ओसामा को चोट पहुंचा सकता है.
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