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पहाड़ों में महिलाओं की भूमिका हर चीज में पुरुषों से कहीं ज्यादा होती है. हिमाचल प्रदेश इससे अलग नहीं. लेकिन जब बात चुनावी भागीदारी की हो महिलाओं को दूर रखने की कोशिशें नजर आती हैं. वो भी तब जब वोट के हक का इस्तेमाल करने में हिमाचल की महिलाएं, पुरुषों से कहीं आगे हैं.
2012 के विधानसभा चुनाव में 69 फीसदी पुरुषों के मुकाबले 76 फीसदी महिलाओं ने अपने वोट का इस्तेमाल किया. बावजूद इसके 2017 के चुनाव में दोनों बड़ी पार्टियों कांग्रेस और बीजेपी ने इन्हें तरजीह नहीं दी. बीजेपी की तरफ से महज 6 महिलाओं को टिकट दिया गया है, वहीं कांग्रेस की तरफ से केवल 3 को.
बीजेपी और कांग्रेस की सूची पर गौर करें तो, 68 सदस्यीय हिमाचल विधानसभा में बीजेपी ने 10 फीसदी महिलाओं पर दांव लगाया है. वहीं कांग्रेस ने भी महज पांच फीसदी महिला उम्मीदवारों के नाम पर ही मुहर लगाई. 24 लाख से ज्यादा महिला मतदाता वाले हिमाचल में दोनों पार्टियों ने टिकट देने में आधी आबादी को हाशिए पर ही रखने का काम किया है.
पिछले 19 साल में हिमाचल में हुए चार विधानसभा चुनावों में महिलाओं की भागीदारी हमेशा पुरुषों से ज्यादा रही है. 2012 विधानसभा चुनाव से पहले के तीन विधानसभा चुनावों में भी इनकी भागीदारी ज्यादा थी. 2007 में 68 फीसदी पुरुषों के मुकाबले 74 फीसदी महिलाओं ने वोटिंग की. इससे पहले 2003 में 73 फीसदी पुरुषों के मुकाबले 75 फीसदी महिलाओं ने और 1998 में 70 फीसदी पुरुषों की तुलना में 72 फीसदी महिलाओं ने वोट डाले थे.
फिलहाल हिमाचल विधानसभा में केवल 3 महिला विधायक हैं. मतलब इनकी मौजूदगी पांच फीसदी से भी कम है. 2012 चुनाव में बीजेपी ने सात और कांग्रेस ने तीन महिलाओं को उम्मीदवार बनाया था. राज्य की 68 सीटों पर महज 10 महिला उम्मीदवार.
इस साल होनेवाले चुनाव में भी कुछ ऐसे ही हालात हैं. दोनों बड़ी पार्टियों की तरफ से कुल 9 महिला उम्मीदवार चुनावी मैदान में है. अगर पार्टियां इन्हें टिकटों में तरजीह दें तो विधानसभा में इनकी मौजूदगी ज्यादा हो सकती है.
बीजेपी की तरफ से जारी महिला उम्मीदवारों में शाहपुर से सरवीण चौधरी, इंदौरा से रीता धीमान, पालमपुर से इंदु गोस्वामी, रोहड़ू से शशि बाला, भोरंज से कमलेश कुमारी और कसुम्पटी से विजय ज्योति सेन हैं.
कांग्रेस की तरफ से डलहौजी से विप्लव ठाकुर, देहरा से आशा कुमारी और मंडी से राज्य के मंत्री कौल ठाकुर की बेटी चंपा सिंह को टिकट जारी किया गया है.
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