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कामयाबी के साथ सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि वो उम्मीदें बंधाती है. और, उम्मीदें पूरा कर पाना हर बार उतना आसान नहीं होता. पंजाब के नये नवेले मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ यही होने जा रहा है. त्रिकोणीय मुकाबले में लगभग दो तिहाई सीटें देकर पंजाब के लोगों ने कैप्टन में गजब का यकीन दिखाया. हाल में अपना 75वां जन्मदिन मनाने वाले कैप्टन के लिए इस यकीन पर खरा उतरना लोहे के चने चबाने से कम नहीं होगा.
दस साल के अकाली-बीजेपी गठबंधन राज में पंजाब कई मोर्चों पर बदहाली का शिकार हो चुका है. खजाना खाली है, किसान बदहाल है, उद्योग ठप हैं और नशे में धुत्त बेरोजगारों की फौज बढ़ती जा रही है. ऐसे में सवाल लाजिमी है कि कांग्रेस पार्टी और कैप्टन अमरिंदर कैसे इन रुकावटों को पार करते हुए पंजाब की गाड़ी विकास के रास्ते पर डालेंगे.
पंजाब चुनावों का सबसे चर्चित मुद्दा था ड्रग्स और कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टों में एक महीने के भीतर पंजाब को ड्रग्स मुक्त करने का वादा किया है. क्या ये मुमकिन है? साल 2015 में एम्स के नेशनल ड्रग्स डिपेंडेंट ट्रीटमेंट सेंटर और एक एनजीओ की स्टडी के मुताबिक,
लेकिन, सिर्फ आंकड़ों से पंजाब में ड्रग्स के आतंक को नहीं नापा जा सकता. इस रैकेट की जड़ें पुलिस और प्रशासन के भीतर तक फैली हैं जिन्हें रातोंरात दूर करना बेहद मुश्किल होगा.
साल 2015-16 के बजट के मुताबिक, पंजाब पर करीब 1.25 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है. आप जानकार हैरान हो जाएंगे कि इस तथाकथित अमीर सूबे का हर बाशिंदा करीब 38,000 रुपये के कर्ज तले दबा है. बजट के मुताबिक, 2015-16 में पंजाब ने 9,900 करोड़ रुपये सिर्फ ब्याज के तौर पर अदा किए, जो उसके कुल रेवेन्यू (कमाई) का पांचवा हिस्सा हैं. ये देनदारी लगातार बढ़ रही है.
लेकिन, कांग्रेस पार्टी ने अपने मेनिफेस्टो में ऐसे कई वादे किए हैं, जिन्हें पूरा करने में सरकारी खजाने की पहले से खराब हालत और खराब हो जाएगी.
चुनाव प्रचार के दौरान खुद कांग्रेस पार्टी का दावा था कि पंजाब में बेरोजगारों की कुल तादाद करीब 75 लाख है. पार्टी ने अपने मेनिफेस्टो में ‘घर घर रोजगार’ के वादे के साथ अगले पांच साल में 25 लाख नौकरियां जुटाने का वादा किया है. लेकिन सूबे में इंडस्ट्री की हालत खस्ता है और प्राइवेट सेक्टर में नौकरियां हैं नहीं.
सरकारी नौकरियों की हालत तो और भी खस्ता है. आंकड़ों के मुताबिक,
कहां से आएगा पैसा- कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में करीब 18-35 साल के 30 लाख बेरोजगारों को 2500 रूपये महीने का बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया है. इस पर सरकार को 9,000 करोड़ रुपये सालाना खर्च करने होंगे. खस्ताहाल खजाने के साथ सरकार इतना पैसा कहां से जुटाएगी ये एक बड़ा सवाल है.
कांग्रेस पार्टी ने किसानों की हालत सुधारने के लिए 67 हजार करोड़ रूपये का कर्ज माफ करने का वादा किया है. फसल खराब होने पर 20 हजार रुपये प्रति एकड़ मुआवजा और कर्ज की वजह से खुदकुशी करने वाले किसान के परिवार को 10 लाख रुपये का भी वादा है. लेकिन सवाल वही है कि इन तमाम वादों को पूरा करने के लिए पैसा कहां से आएगा.
मुफ्त बिजली का विवाद- उसके अलावा एक अहम मुद्दा है करीब 6000 करोड़ रुपये की मुफ्त बिजली सब्सिडी का. ये सब्सिडी अकाली-बीजेपी सरकार के वक्त भी किसानों को मिलती थी. साल 2010 में उस वक्त के वित्त मंत्री मनप्रीत बादल ने इसी सब्सिडी के विरोध में अकाली सरकार का साथ छोड़ दिया था. दिलचस्प बात है कि पाला बदल चुके वही मनप्रीत बादल अब कैप्टन अमरिंदर की सरकार में भी हैं. तो क्या वो अब भी इस सब्सिडी का विरोध करेंगे. अगर हां, तो कैप्टन का वादा कैसे पूरा होगा.
इसके अलावा युवाओं को मुफ्त स्मार्टफोन, बच्चों को मुफ्त किताबें, लड़कियों को केजी से पीएचडी तक मुफ्त शिक्षा और 5 लाख से कम सालाना कमाई वाले दलित और पिछड़ों को मुफ्त मकान जैसे कुछ वादें हैं जिनके खर्च का तो अभी हिसाब भी नहीं लगाया गया है.
117 में से 77 सीटों पर कांग्रेस पार्टी का परचम लहराने वाले कैप्टन अमरिंदर के सामने एक चुनौती पॉवर बैलेंस की है. नियम के मुताबिक विधानसभा की कुल संख्या का 15 फीसदी ही मंत्री बन सकते हैं. यानी कैप्टन अपने 77 में से 17 विधायकों को ही लाल बत्ती की गाड़ी में बिठा पाएंगे.
इसके अलावा नवजोत सिद्धू पर भी फैसला होना अभी बाकि है. साथ ही दर्जन भर वो बागी भी हैं जिन्हें पार्टी ने जीतने के बाद कोई पद देने के नाम पर शांत किया था. दस साल बाद पॉवर में आई कांग्रेस में इस वक्त पद हथियाने की होड़ है. ऐसे में कैप्टन के लिए अपनी टीम में तालमेल बिठाना आसान नहीं होगा.
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Published: 15 Mar 2017,08:37 PM IST