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मोदी सरकार नए सिरे से लिखेगी भारत का इतिहास, चल रही हैं तैयारियां 

मोदी  सरकार ने इतिहासकारों की एक कमेटी बनाई है जिसके जरिए ये सिद्ध किया जाएगा कि हिंदू ही भारत के मूल निवासी हैं.

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भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को बदलने के लिए इतिहास पुनर्निर्माण की कोशिश
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भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को बदलने के लिए इतिहास पुनर्निर्माण की कोशिश
फोटो:द क्विंट

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बात इस साल जनवरी की है, दिल्ली के दिल में एक भव्य ऐतिहासिक बंगले में कुछ भारतीय विद्वान एकजुट हुए. यह बैठक देश के इतिहास को दोबारा लिखने के मकसद से बुलाई गई थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इतिहासकारों की एक कमेटी बनाई है, जिसके जरिये ये सिद्ध किया जाएगा कि हिंदू ही भारत के मूल निवासी हैं.

लेकिन इस कोशिश से देश के मुस्लिम समुदाय में डर पैदा हो गया है कि सरकार उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक घोषित करना चाहती है. मोदी सरकार ने 6 महीने पहले चुपके से इतिहासकारों की एक कमेटी बनाई, लेकिन इस कमेटी का मकसद और दायरे के बारे में पहली बार ये बड़ी रिपोर्ट सामने आई है.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इतिहास के हिंदू संस्करण के हिमायती हैं(Photo: Reuters)

कमेटी का काम

रॉयटर्स को इस कमेटी की बैठक के मिनट्स और कमेटी के मेंबर से इंटरव्यू से जानकारी मिली है, कमेटी ये सिद्ध करने के लिए सबूत जुटाएगी कि हिंदू ही भारत के मूल निवासी हैं. इसके लिए पुरातत्व विभाग की रिसर्च, और डीएनए स्टडी का भी सहारा लिया जाएगा कि हिंदू शास्त्रों और पुराणों में जो लिखा गया है वो कोई मिथक नहीं है. हजारों साल पहले हिंदू सीधे इस जमीं पर आए और वो यहीं के रहने वाले हैं.

इस 14 मेंबर वाली कमेटी और मोदी सरकार के कुछ मंत्रियों से हुई बातचीत से एक बात एकदम साफ है कि हिंदू राष्ट्रवादी 130 करोड़ की आबादी वाले इस देश में सिर्फ राजनैतिक सत्ता तक ही सीमित नहीं रहना चाहते. बल्कि वो इसे हिंदू संस्कृति के रंग में रंगना चाहते है. वो मानते हैं कि इस देश की पहचान को धर्म और संस्कृति के प्रति उनके नजरिए से ही देखा जाए. वो साबित करना चाहते हैं कि भारत हिंदुओं का है और उनके लिए है.

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इसके लिए उन्हें अंग्रेजी राज के जमाने से जड़ जमाई गंगा-जमुनी तहजीब को उखाड़ फेंकने में भी कोई संकोच नहीं. 

अब तक ये माना जाता रहा है कि भारत की अधिकांश आबादी अाप्रवासी, विदेशी आक्रमण और धर्मांतरण का नतीजा है. अलग-अलग समय में अलग-अलग वजहों से यहां आए ये लोग एक लंबे समय में यहां की संस्कृति में घुलमिल कर यहीं के होकर रह गए. आबादी के एक बड़े हिस्से में ये बात लोगों के मन में गहरे रची-बसी है. यहां ध्यान देने वाली बात है कि देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा हिंदू धर्म से आता है. बचे हिस्से में इस्लाम और अन्य धर्मों को मिलाकर कुल 24 करोड़ लोग यानी आबादी का पांचवां हिस्सा शामिल है. 

कमेटी के अध्यक्ष के एन दीक्षित ने रॉयटर्स से बातचीत में बताया कि उन्हें एक ऐसी रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा गया है जिसके आधार पर सरकार प्राचीन इतिहास के कुछ पहलुओं को दोबारा नए सिरे से लिखे. कमेटी की नियुक्ति संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने की है. शर्मा ने भी इंटरव्यू में माना कि कमेटी बनाना भारतीय इतिहास व संस्कृति में एक बड़े बदलाव की योजना का हिस्सा है.

लेकिन, इससे भारत के मुस्लिम परेशान हैं. वो इसे एक खतरनाक कदम के रूप में देखते हैं. वो कहते हैं कि 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद मुसलमानों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव बढ़ा है. मुस्लिम जमात आल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी के मुताबिक आजादी के बाद मुसलमानों ने पहले कभी इतना असुरक्षित महसूस नहीं किया. उनके मुताबिक मोदी सरकार चाहती है कि मुस्लिम इस देश के दूसरे दर्जे के नागरिक रह जाएं.  इस मुद्दे पर रॉयटर्स के सवालों का प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से कोई जवाब नहीं आया.

सरकार में संघ का दबदबा

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस)  भारत के इतिहास के बारे में वैचारिक बहस के जरिये हिंदू राष्ट्रवाद की बात करने वाला संगठन  है.(फोटो: Reuters)

आरएसएस का 2014 में भारतीय जनता पार्टी की भारी-भरकम जीत में काफी योगदान रहा है. मोदी सरकार में कृषि, हाइवे और आंतरिक सुरक्षा मंत्री आरएसएस के लंबे वक्त तक सदस्य रहे हैं.

संघ का मानना है कि 17.2 करोड़ मुस्लिमों समेत पूरी भारतीय आबादी एक ही मूल निवासी हैं. भारत में रहने वाले सारे लोगों को आरएसएस भारत माता की संतानें मानता है. संघ के मुताबिक मुस्लिमों को अपनी अलग पहचान की जिद छोड़ देनी चाहिए. प्रधानमंत्री मोदी भी बचपन से संघ के स्वयंसेवक और प्रचारक रहे हैं. संस्कृति मंत्री महेश शर्मा का बायोडेटा भी यही दावा करता है कि वो भी सालों तक संघ के प्रचारक रहे हैं. 

दोबारा इतिहास लिखना होगा

हिंदू राष्ट्रवादी आन्दोलन के सांकेतिक पहचान की ओर इशारा करते हुए संघ के प्रवक्ता मनमोहन वैद्य ने रॉयटर्स को बताया कि भारतीय इतिहास का मूल रंग भगवा है. इसलिए देश में सांस्कृतिक बदलाव के लिए हमें दोबारा इतिहास लिखना होगा.

संघ के ही इतिहास सेल के प्रमुख बालमुकुन्द पांडेय के मुताबिक वो संस्कृति मंत्री से लगातार संपर्क में हैं. बकौल पांडेय, भारत के गौरवशाली अतीत को बताने के लिए हमें इतिहास के टेक्स्ट बुक में हिंदू ग्रंथों की बातों को मिथक की बजाय ऐतिहासिक तथ्य के रूप में दर्ज करना होगा. 

मंत्री शर्मा के मुताबिक कमेटी की सिफारिशों को स्कूल के टेक्स्ट बुक और एकेडेमिक रिसर्च में शामिल किया जाएगा. सरकारी दस्तावेजों में इस खोज को “12000 साल पहले से लेकर अभी तक के भारतीय संस्कृति की उत्पत्ति और उत्थान और अन्य संस्कृतियों से संबंध का व्यापक अध्ययन” नाम दिया गया है. 

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पाठ्यक्रम में बदलेगा इतिहास

बकौल शर्मा “हिंदू फर्स्ट” संस्करण के इस भारतीय इतिहास को स्कूली पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाएगा. इतिहास के चालू पाठ्यक्रमों में 3,000 से 4,000 बरस पूर्व में बड़े पैमाने पर मध्य एशिया से भारत आए लोगों को समकालीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति के निर्माण का श्रेय दिया गया है. 

हिंदू राष्ट्रवादी और बीजेपी के ज्यादातर वरिष्ठ नेता इस बात ऐतिहासिक तथ्य को मानने को तैयार नहीं है कि देश की बड़ी आबादी मूल निवासी के बजाय अाप्रवासियों की है जो इस देश के मूल निवासी नहीं हैं. वो मानते हैं कि भारत की हिंदू आबादी ही मूल निवासी है. इतिहासकार रोमिला थापर की नजरों में राष्ट्रवादियों के लिए ये सवाल अहम है कि इस जमीन पर पहले कौन आया? बकौल थापर, अगर हिंदुओं को देश का पहले दर्जे का नागरिक साबित करना है तो ये इंपोर्टेड धर्म के सहारे नहीं किया जा सकता.

नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में दशकों तक पढ़ाने वाली 86 साल की थापर के मुताबिक राष्ट्र के अंदर अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए हिंदू राष्ट्रवादियों को देश के मूल निवासी होने और स्थानीय धर्म की दावेदारी की सख्त जरूरत है. सबसे पहले अंग्रेजी राज के दौरान ही मध्य एशिया से बड़े पैमाने भारत आए लोगों (आर्यों) की दावेदारी सामने आई थी. 

भारतीय संस्कृति को हिंदू सभ्यता और संस्कृति बताने वालों को आजाद भारत के नेता जवाहर लाल नेहरू ने ही पहले-पहल एक सिरे से खारिज किया था. सेक्युलर भारत और भारतीय मुस्लिमों के साथ भाईचारे के बर्ताव की नींव डालने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है. इस बुनियाद पर ही करीब आधी सदी से ज्यादा समय तक नेहरू और उनकी कांग्रेस पार्टी ने भारत पर राज किया. उनके नेतृत्व में ही धर्म के आधार पर भेदभाव की नीति का त्याग किया गया था और अल्पसंख्यक समुदाय की पहचान कायम की गई थी. 

कांग्रेस पार्टी के एक प्रमुख नेता शशि थरूर के मुताबिक दक्षिण पंथी हिंदूवादी पार्टी बीजेपी की अगुआई में भारत की बुनियाद को ही बदलने की कोशिश हो रही है. बकौल थरूर, आजादी के बाद के सात दशकों में भारत एक राष्ट्र की अवधारणा में “अनेकता में एकता” की अहम भूमिका रही है लेकिन हिंदू राष्ट्रवाद के उभार के साथ सांस्कृतिक श्रेष्ठता का राग उभारा जा रहा है. 

हिंदू धर्म-ग्रंथों में इतिहास की खोज 

इतिहासकारों की कमेटी सबसे पहले नई दिल्ली स्थित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महासचिव के दफ्तर में मिली थी. इसके कुल 14 सदस्यों में नौकरशाह और शिक्षाविद आदि शामिल हैं. इसके अध्यक्ष दीक्षित भी पुरातत्व सर्वेक्षण के वरिष्ठ अधिकारी रहे हैं.   

संस्कृति मंत्री शर्मा के मुताबिक वो कमेटी की अंतिम रिपोर्ट संसद में पेश करेंगे और मानव संसाधन मंत्रालय के सामने इसे स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करेंगे.  शिक्षा मंत्रालय जो कि मानव संसाधन मंत्रालय में ही आता है, इस विभाग के मंत्री प्रकाश जावड़ेकर भी संघ के पुराने कार्यकर्ता रहे हैं. 

जावड़ेकर के मुताबिक वो संस्कृति मंत्रालय की तमाम सिफारिशों को गंभीरता से लेते हैं. उनके मुताबिक बीजेपी पहली सरकार है जिसने इतिहास के पाठ्यक्रमों में पढ़ाए जाने वाले तथ्यों पर सवाल खड़ा करने का साहस दिखाया है. 

कैसे तय होगा कि हिंदू मूल निवासी हैं?

कमेटी के अध्यक्ष दीक्षित के मुताबिक पहली बैठक में ही तय हो गया था कि भारतीय संस्कृति के हजारों साल की प्राचीनता और प्राचीन हिंदू ग्रथों के बीच के संबंधों से जुड़े तथ्यों की पुष्टि की जाए. इसके बाद ही हिंदू धर्म ग्रंथों में दर्ज तथ्यों की सच्चाई और भारत के मूल निवासी के रूप में हिन्दुओं की पहचान सिद्ध होगी.   

सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक इसके के लिए पिछले दिनों एक बड़ा अभियान चलाया गया. इसमें पुरातात्विक महत्व के जगहों की कार्बन डेटिंग और मानव अवशेषों की डीएनए टेस्टिंग शामिल है. 

संस्कृति मंत्री महेश शर्मा के मुताबिक वो चाहते हैं कि हिंदू ग्रंथों की बातों को एक ऐतिहासिक तथ्य के रूप में स्वीकृति और मान्यता मिले. रामायण के बारे में बात करते हुए वे बताते हैं कि मैं रामायण की पूजा करता हूं और मानता हूं कि ये एक ऐतिहासिक दस्तावेज है. जो लोग इसे कपोल-कल्पना या मात्र मिथक समझते हैं वो पूरी तरह गलत हैं. 

रामायण महाकाव्य हमें बताता है कि भगवान राम ने कैसे रावण के चंगुल से अपनी पत्नी सीता को छुड़ाया. यह हमें यह भी बताता है कि कैसे लोगों को अपना कर्तव्य निभाना चाहिए. हिंदू ग्रंथों में लिखी बातों की पुष्टि कराई जाएगी.

इनपुट : रॉयटर्स

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Published: 07 Mar 2018,04:36 PM IST

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