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कोरोना के चलते पूरे देश में लॉकडाउन है लोग बेहाल हैं और बिहार के नेताओं की मुश्किल ये है कि आखिर चुनाव की तैयारी कैसे करें. बिहार में इसी साल चुनाव होने हैं और कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन ने सभी नेताओं को घरों में कैद रहने पर मजबूर कर दिया है. खुद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार परेशान हैं कि आखिर उनकी चुनावी नैया इस साल कैसे पार लगेगी.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नीतीश कुमार लॉकडाउन बढ़ाने के मूड में नहीं थे, क्योंकि लॉकडाउन की वजह से नीतीश को अपने सात निश्चय पूरे करने में काफी दिक्कतें सकती हैं. हालांकि कुछ दिन पहले ही नीतीश कुमार ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बिहार के अधिकारियों के साथ बैठक की थी.
लॉकडाउन- 2 के दौरान बिहार में रोजगार का संकट पैदा ना हो, इसके लिए राज्य सरकार ने शर्तों के साथ अनेक क्षेत्रों में काम की शुरुआत करने का फैसला किया है. फिलहाल ग्रामीण इलाकों में लॉकडाउन की गाइडलाइन और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए योजनाओं पर कामकाज शुरू करने का फैसला किया है. अब कुछ छूट मिलने के साथ ही नीतीश ने सबसे पहले सात निश्चय के काम को शुरू करवाया है.
बिहार में नीतीश सरकार का कार्यकाल 29 नवंबर को खत्म हो रहा है. यानि चुनाव के लिए मुश्किल से 6 महीने का वक्त हैं. ऐसे में तमाम राजनीतिक पार्टियों की तैयारी पर भी ब्रेक लग गया है. लॉकडाउन के सन्नाटे में तमाम राजनेता भी शांति से घर बैठने को मजबूर हैं.
इस चुनावी साल में जहां अलग- अलग कार्यक्रमों और अभियानों के जरिए राजनेता मतदाताओं में अपनी पार्टियों के आधार मजबूत करने में लगे थे, वहीं कोरोना ने उनके कार्यक्रमों पर ब्रेक लगा दिया है.
बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम और विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव की 'बेरोजगारी हटाओ यात्रा' रोकनी पड़ी. इस यात्रा के जरिए तेजस्वी पूरे राज्य में घूमकर बेरोजगारी का मुद्दा उठाकर नीतीश को घेरने की तैयारी में थे. लेकिन कोरोना के चलते उनको अपनी यात्रा रोकनी पड़ी.
लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान को अपनी 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' यात्रा को बीच में ही रोक देना पड़ा.
बीजेपी के लिए बिहार में अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाने का मौका भी हाथ से निकलता जा रहा है. मार्च, अप्रैल और मई बीजेपी के लिए काफी महत्वपूर्ण थे. पार्टी की तरफ से कई कार्यक्रम करने की योजना थी, लेकिन लॉकडाउन की चलते सबपर पानी फिर गया.
जेडीयू-बीजेपी का सम्मेलन भी इस कोरोना के चलते अचानक रद्द करना पड़ा. ऐसे में इन नेताओं के लिए अब सबसे बड़ी मुश्किल इस बात से है कि चुनावी साल में वो अपने वोटरों से जिस तरह से दूर जा रहे हैं कही उनका वोटबैंक ना खिसक जाए.
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