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मुजफ्फरपुर में विकास के लिए जाति की राजनीति से किनारा 

मुजफ्फरपुर के किसान को जाती से जादा विकास की जरूरत हैं

जसकीरत सिंह बावा
पॉलिटिक्स
Updated:
जैविक खेती करने वाले मनोज सिंह (दाएं) का कहना है कि किसी नेता को यह नहीं समझना चाहिए कि उसकी जाति के लोग सिर्फ उसी को वोट करेंगे. (फोटो: जसकीरत सिंह बावा)
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जैविक खेती करने वाले मनोज सिंह (दाएं) का कहना है कि किसी नेता को यह नहीं समझना चाहिए कि उसकी जाति के लोग सिर्फ उसी को वोट करेंगे. (फोटो: जसकीरत सिंह बावा)
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मेरे साथ पटना से लगभग 90 किमी उत्तर में स्थित मुजफ्फरपुर जा रहे गौरव ने कहा, ‘हमारे सर में जितना बाल नहीं है, उतना बिहार में कास्ट है.’ यह एक अतिश्योक्ति हो सकती है, लेकिन उसकी भावनाएं पूरी तरह से गलत भी नहीं थीं.

बिहार की राजनीति में जाति हमेशा से एक प्रमुख मुद्दा रहा है. इस चुनाव में भी ऐसा ही हो रहा है. पार्टियां ज्यादा से ज्यादा वोट पाने के लिए तरह-तरह से जातीय समीकरण बैठाने में जुटी हैं. यहां ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है, जो पार्टी नहीं बल्कि जाति को देखकर वोट देते हैं.

इसलिए जब मुजफ्फरपुर के बाहरी इलाके में स्थित गांव मुस्तफागंज के कुछ किसानों ने, जो कि कुशवाहा समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जब यह कहा कि उन्होंने तरक्की और विकास के वादे के पक्ष में वोट करने के लिए अपनी जाति के उम्मीदवार को खारिज कर दिया तो हमें थोड़ा आश्चर्य हुआ.

ऑर्गेनिक तरीके से खेती करने की वजह से मुस्तफागंज के किसानों की आय मे पांच गुना वृद्धि हुई है. (फोटो: जसकीरत सिंह बावा)

नीतीश कुमार और फायदे की खेती

पहले मुस्तफागंज के बारे में कुछ बातें. यहां के ग्रामीणों का दावा है कि खेती के लिए जैविक तकनीक अपनाने के बाद पिछले 10 सालों में उनकी आय पांच गुना बढ़ी है. और इसके लिए वह ‘हमेशा नीतीश कुमार के काम के लिए आभारी’ रहेंगे.

हम छोटे-छोटे कई गड्ढे बनाते हैं और उसमें खाद भर देते हैं. लेकिन इस खाद में काफी गैस होती है जो कि पौधों के लिए अच्छी नहीं होती. फिर हम एक खास प्रजाति के कीड़ों को इन गड्ढों में डालते हैं. लगभग 3-4 महीने में यह कीड़ा पूरी खाद खा जाता है और उनके मल से जो पदार्थ हमें मिलता है वह हम अपने खेतों में इस्तेमाल करते हैं. इस तरह से हमारी पैदावार कई गुना बढ़ी. हम खेती में किसी प्रकार के केमिकल का इस्तेमाल भी नहीं करते इसलिए लागत भी कम हुई, और इसके साथ-साथ स्वास्थ्य से जुड़े फायदे तो मिलते ही हैं.

मनोज सिंह, किसान


वे खास प्रजाति के कीड़े जिनकी वजह से मुस्तफागंज में ऑर्गेनिक खेती संभव हुई है. (फोटो: जसकीरत सिंह बावा)

मुस्तफागंज के किसान बताते हैं कि कैसे इस तकनीक का इस्तेमाल करने के कुछ साल बाद राज्य सरकार ने ऑर्गेनिक खेती करने के लिए ऐसे कंपोस्ट यूनिट बनाने वालों को हजारों रुपये की आर्थिक मदद भी दी.

कम लागत, फसल की बढ़ती गुणवत्ता और अतिरिक्त खाद को बेचने से जो फायदा होता है उसकी वजह से पिछले एक दशक में यहां के किसानों और उनके परिवारों की जिंदगी काफी बदली है.

मनोज कुमार के खेत का एक दृश्य. (फोटो: जसकीरत सिंह बावा)
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‘एक नेता अपनी जनता के प्रति जवाबदेह होता है’

राजनीति पर बात करते हुए मनोज कहते हैं कि दशकों तक मीनापुर (मुस्तफागंज की विधानसभा सीट) में यादवों और कुशवाहों के बीच ही लड़ाई होती रही है. पारंपरिक तौर पर उन्होंने कुशवाहों को वोट दिया है, लेकिन अब यह बदलने वाला है.

वर्तमान विधायक दिनेश कुशवाहा दो बार जेडी(यू) के टिकट पर और एक बार निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीत चुके हैं. दिनेश जेडी(यू) के उन तमाम बागियों में शामिल हैं जिन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया है.

एक नेता को यह नहीं मान लेना चाहिए कि उसकी जाति के लोग अपनी राजनीतिक निष्ठा की परवाह किए बिना उसी के लिए वोट करेंगे. वह अपने लोगों के प्रति जवाबदेह होता है. जाति एक बड़ा मुद्दा है, लेकिन इसे छोड़कर और भी मुद्दे हैं. इस चुनाव में वोट देने के लिए लोगों के पास जाति से बढ़कर कई कारण हैं.

— मनोज सिंह, किसान

बाकी किसानों ने मनोज के समर्थन में अपनी गर्दन हिला दी.

मनोज इस राज्य में एक अपवाद हो सकते हैं जहां आजकल चुनावों में जाति एक प्रमुख मुद्दा है. जाति यहां टिकट के बंटवारे से लेकर वोट तक पर हावी रहती है.

उम्मीद की जा रही है कि जिस तरह से मुस्तफाबाद के लोगों ने ऑर्गेनिक फार्मिंग की तकनीक को इलाके के दूसरे गांवों में पहुंचाया, उसी तरह जाति देखकर वोट ने देने के अपने विचार को भी फैलाएंगे.

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Published: 31 Oct 2015,10:55 PM IST

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