advertisement
उत्तर प्रदेश और पंजाब समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की खुमारी अभी उतरी भी नहीं कि राष्ट्रपति चुनाव की उठापटक ने रफ्तार पकड़ ली है. मौजूदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल 24 जुलाई को खत्म हो रहा है यानी उससे पहले ही देश के नए प्रथम नागरिक का चुनाव होना है. सरकार को वॉकओवर ना देने के इरादे से विपक्ष साझा उम्मीदवार उतारने की गोलबंदी कर रहा है लेकिन हाल में हुई कुछ सियासी हलचलों के बाद माहौल एनडीए के पक्ष में है.
तो क्या अब ये तय है कि-
10 मई को हुई इस मुलाकात के बाद जगन ने राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए के उम्मीदवार को खुला समर्थन देने का एलान कर दिया था. उधर तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) भी एनडीए उम्मीदवार के समर्थन का इशारा कर चुकी है. पार्टी के लोकसभा सांसद जितेंद्र रेड्डी ने हाल में कहा था कि बात तेलंगाना के फायदे की हो तो टीआरएस हमेशा एनडीए के साथ रहा है.
फिलहाल राष्ट्रपति चुनाव की जोड़तोड़ में एनडीए बहुमत के आंकड़े से थोड़ा पीछे है. लेकिन वाइएसआर कांग्रेस के समर्थन और टीआरएस के इशारे के बाद तस्वीर बदल गई है. हम आपको समझाते हैं कैसे-
इस चर्चा में शिवसेना फैक्टर पर बात करना भी जरूरी है. शिवसेना का एनडीए धड़े की कमजोर कड़ी माना जा रहा है. यानी विपक्षी उम्मीदवार की ‘काबिलियत’ पर शिवसेना की निष्ठा बदल सकती है.
साल 2007 में शिवसेना ने यूपीए की उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल और 2012 में प्रणब मुखर्जी को वोट दिया था. इस बार भी अगर विपक्ष ने एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार जैसे किसी उम्मीदवार को मैदान में उतारा तो ‘मराठी अस्मिता’ शिवसेना की ‘वफादारी’ के आड़े आ जाएगी. लेकिन सवाल ये कि ताजा माहौल में शिवसेना कितनी जरूरी है और कितनी मजबूरी है.
यूं तो एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, और मणिपुर की गवर्नर नजमा हेपतुल्ला के नाम चर्चा में हैं. लेकिन बीजेपी सूत्रों की मानें तो सबसे आगे झारखंड की गवर्नर द्रौपदी मुर्मू और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज दौड़ में सबसे आगे हैं.
दोनों नाम पीएम मोदी के ‘महिला हितैषी’ खांचे में फिट बैठते हैं. लेकिन इन दोनों में भी एडवांटेज मुर्मू को है. मुर्मू उड़ीसा की आदिवासी हैं. बीजेपी और आरएसएस के आदिवासी कल्याण एजेंडे को पूरा करने के अलावा उड़ीसा की होने के नाते उन्हें बीजू जनता दल (32,892 वोट) का समर्थन मिल सकता है.
इसके अलावा आदिवासी राजनीति करने वाली पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (5,116 वोट) को भी मुर्मू के समर्थन में आना पड़ेगा. एक आदिवासी महिला का विरोध विपक्ष के लिए भी आसान नहीं होगा.
विपक्षी कोशिशों के बीच पूर्व राजनयिक और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे गोपालकृष्ण गांधी का नाम चर्चा में है. महात्मा गांधी के सबसे छोटे पौत्र गोपालकृष्ण गांधी ने इसे शुरुआती बातचीत बताते हुए माना है कि उनसे संपर्क साधा गया है. विपक्ष को लगता है कि गांधी के नाम पर एआईडीएमके, बीजेडी, आम आदमी पार्टी, आईएनएलडी जैसी वो पार्टियां पाले में आ सकती हैं जिनका झुकाव अब तक ना एनडीए की तरफ है ना यूपीए की तरफ. इसके अलावा यूपीए सरकार में लोकसभा अध्यक्ष रहीं मीरा कुमार और पूर्व जेडीयू अध्यक्ष शरद पवार के नाम भी चर्चा में है.
लेकिन विपक्ष अगर एकजुट हो भी गया तो भी वो अपने उम्मीदवार को जिता नहीं पाएगा. हां, 2019 लोकसभा चुनावों के लिए ये विपक्षी महागठबंधन का एक ड्राई रन जरूर हो सकता है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 15 May 2017,09:22 PM IST