मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Politics Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019जयंत चौधरी को RLD की कमान, पश्चिमी UP कृषि राजनीति के लिए तैयार?

जयंत चौधरी को RLD की कमान, पश्चिमी UP कृषि राजनीति के लिए तैयार?

क्या जयंत चौधरी RLD की किस्मत बदल सकते हैं?

आदित्य मेनन
पॉलिटिक्स
Updated:
क्या जयंत चौधरी RLD की किस्मत बदल सकते हैं?
i
क्या जयंत चौधरी RLD की किस्मत बदल सकते हैं?
(फोटो: Quint)

advertisement

जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) ने 25 मई को राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के अध्यक्ष पद की कमान संभाल ली. ये फैसला पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में लिया गया. जयंत का अध्यक्ष बनना RLD फाउंडर और उनके पिता अजित सिंह की मौत के तीन हफ्तों से कम समय के बाद हुआ है.

अपनी नियुक्ति के बाद चौधरी ने ट्वीट किया:

“मैं सम्मानित महसूस कर रहा हूं और आगे आने वाली चुनौतियों को समझता हूं. मैं संगठन को मजबूत बनाने के लिए सबकुछ करूंगा और मुख्य मुद्दों को देखने के लिए सभी की राय को महत्त्व दूंगा. पहले कदम के तौर पर मैं सभी कोविड प्रभावित परिवारों के साथ एकजुटता दिखाने और दुख प्रकट करने के लिए एक खुला खत लिखने जा रहा हूं.” 
जयंत चौधरी

चौधरी ऐसे महत्वपूर्ण समय में पार्टी की कमान संभाल रहे हैं, जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में 8-9 महीने ही बचे हैं.

RLD आपस में संबंधित तीन दिक्कतों का सामना कर रही है:

  • बिखरा हुआ सामाजिक गठबंधन
  • जाट वोट दोबारा जीतना
  • खराब चुनावी प्रदर्शन

1. RLD का बिखरा हुआ सामाजिक गठबंधन

जयंत के दादा और पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह को सिर्फ जाट नेता के तौर पर नहीं देखा जाता था. बल्कि वो उत्तर भारत में किसानों के बीच लोकप्रिय थे और उनका सम्मान होता था.

मशहूर किसान नेता सर छोटू राम का दिया हुआ AJGAR (अहीर-जाट-गुज्जर-राजपूत) सामाजिक गठबंधन का इस्तेमाल चरण सिंह ने 1970 के दशक में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का प्रभाव कम करने में किया था.  

ये सबसे ज्यादा पश्चिमी यूपी में प्रभावी रहा, जहां ज्यादातर जातियां कृषि से संबंधित हैं और हरित क्रांति से उन्हें फायदा मिला था.

1980 के दशक में सांप्रदायिक हमले बढ़ने की वजह से मुस्लिम वोट का एक अच्छा-खासा हिस्सा कांग्रेस से दूर होकर इस गठबंधन में आ गया था.

हालांकि, चौधरी चरण सिंह का 1986 में निधन और बाद में राम मंदिर आंदोलन की वजह से ये गठबंधन बिखर गया और बीजेपी ने सवर्ण कृषि संबंधित जातियों और OBC के कुछ सेक्शन को जीत लिया. RLD की स्थापना 1996 में हुई थी और इसे पश्चिमी यूपी में जाट और मुस्लिमों की पार्टी कहा जाता था. लेकिन बीजेपी के साथ इसके गठबंधन के बाद इसका मुस्लिम वोट कम हो गया और जाटों के बीच बीजेपी को वैधता मिल गई.

2013 के मुजफ्फरनगर दंगों से RLD की कृषि राजनीति का पतन हो गया और जाट बीजेपी के साथ और मुस्लिम एसपी और बीएसपी के साथ चले गए.

2. जाटों के बीच प्रभाव कम

RLD को अगर वापसी करनी है तो उसके लिए अपना कोर वोट-जाट को जीतना बहुत जरूरी है. इस समुदाय के बीच पार्टी का प्रभाव कम हुआ है.

किसी समय पर समुदाय का सबसे बड़ा वोट जीतने वाली RLD को 2014 लोकसभा चुनाव में सिर्फ 13 फीसदी जाट वोट मिला था और 2019 चुनाव में ये और कम होकर 7 फीसदी पर आ गया. CSDS सर्वे में ये बात पता चली थी.  

2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने फिर भी बेहतर प्रदर्शन किया था.

पार्टी का प्रभाव खास तौर पर जवान जाटों के बीच कम हुआ है जो 2013 के दंगों के बाद बीजेपी के साथ चले गए. कहा जाता है कि दंगों के दौरान कई जाटों ने उम्र में बड़े नेताओं से 'रास्ते से हट जाने' के लिए कह दिया था.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

3. खराब चुनावी प्रदर्शन

सीटों के मामले में भी RLD का प्रदर्शन सालों से गिर रहा है.

1999 के लोकसभा चुनावों में दो सीट और 2004 चुनावों में तीन सीट जीतने से लेकर RLD 2009 लोकसभा चुनाव में पश्चिमी यूपी में सबसे ज्यादा 5 सीटें जीती थी. हालांकि, 2014 और 2019 के चुनावों में पार्टी एक भी सीट नहीं जीती. यूपी विधानसभा चुनावों में पार्टी 2002 में 15, 2007 में 10, 2012 में 9 और 2017 में सिर्फ एक सीट जीती. 

हाल में खत्म हुए पंचायत चुनावों से पार्टी को अच्छा संकेत मिला है. RLD ने मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत, हापुड़, बिजनौर और बुलंदशहर जिलों में अच्छा प्रदर्शन किया.

क्या जयंत RLD की किस्मत बदल सकते हैं?

जयंत चौधरी न सिर्फ RLD बल्कि पश्चिमी यूपी में कृषि राजनीति को दोबारा जिंदा करने के लिए मेहनत कर रहे हैं.

वो किसान आंदोलन को ज्यादा से ज्यादा समर्थन देने वाले नेताओं में से हैं और कई जगहों पर रैलियां कर चुके हैं. चौधरी कृषि राजनीति को सांप्रदायिक राजनीति और जातियों के बीच दुश्मनी की एंटीडोट समझते हैं.

2018 में जयपुर की एक रैली में जयंत ने कहा, “हम गाड़ियों पर जाति क्यों लिखते हैं? हम गर्व के साथ ‘किसान का बेटा’ क्यों नहीं लिख सकते?” चौधरी ये बात कई रैलियों में कह चुके हैं.  

जयंत जाट यूथ को जीतने पर भी काम कर रहे हैं. हाथरस रेप केस के खिलाफ उन्होंने के प्रदर्शन निकाला था और लाठीचार्ज का सामना भी किया था.

इसमें कोई शक नहीं है कि बीजेपी के खिलाफ किसानों के बीच बढ़ते गुस्से की वजह से पश्चिमी यूपी की राजनीति में कुछ बदलाव आ रहा है. पंचायत चुनावों में RLD का अच्छा और बीजेपी का खराब प्रदर्शन इसका गवाह बना है.

ये बदलाव किसानों को बकाया न मिलने और ज्यादा पावर टैरिफ के खिलाफ प्रदर्शनों से शुरू हुआ था. लेकिन पिछले छह महीनों से ये प्रदर्शन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन के साथ जुड़ गए हैं. 

नरेश और राकेश टिकैत के नेतृत्व में प्रभावशाली भारतीय किसान यूनियन भी बीजेपी के खिलाफ हो गई है. ये जयंत के लिए यूपी में कृषि राजनीति को दोबारा जिंदा करने का अच्छा मौका है.

अमित शाह की चुनौती

बीजेपी के सूत्र बताते हैं कि पार्टी के 'चाणक्य' अमित शाह ने एक बार दावा किया था कि वो पश्चिमी यूपी में 'अजित सिंह के परिवार की राजनीति का अंत' कर देंगे. 2013 के दंगों के बाद RLD के गिरते वोट बेस से ऐसा लग रहा था कि शाह की बात सच हो रही है.

हालांकि, पार्टी किसी तरह सर्वाइव कर गई. बड़े स्तर पर किसान प्रदर्शन और पंचायत चुनावों में RLD की सफलता बताती है कि पश्चिमी यूपी में पार्टी अभी भी बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है.

यहां तक कि इस समय के हालात देखे जाएं तो लगता है RLD वो अकेली पार्टी है जो बीजेपी को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है.

जयंत चौधरी के लिए पश्चिमी यूपी में खोई जमीन वापस पाने का अच्छा मौका है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 26 May 2021,09:13 AM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT