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जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) ने 25 मई को राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के अध्यक्ष पद की कमान संभाल ली. ये फैसला पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में लिया गया. जयंत का अध्यक्ष बनना RLD फाउंडर और उनके पिता अजित सिंह की मौत के तीन हफ्तों से कम समय के बाद हुआ है.
अपनी नियुक्ति के बाद चौधरी ने ट्वीट किया:
चौधरी ऐसे महत्वपूर्ण समय में पार्टी की कमान संभाल रहे हैं, जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में 8-9 महीने ही बचे हैं.
RLD आपस में संबंधित तीन दिक्कतों का सामना कर रही है:
जयंत के दादा और पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह को सिर्फ जाट नेता के तौर पर नहीं देखा जाता था. बल्कि वो उत्तर भारत में किसानों के बीच लोकप्रिय थे और उनका सम्मान होता था.
ये सबसे ज्यादा पश्चिमी यूपी में प्रभावी रहा, जहां ज्यादातर जातियां कृषि से संबंधित हैं और हरित क्रांति से उन्हें फायदा मिला था.
1980 के दशक में सांप्रदायिक हमले बढ़ने की वजह से मुस्लिम वोट का एक अच्छा-खासा हिस्सा कांग्रेस से दूर होकर इस गठबंधन में आ गया था.
हालांकि, चौधरी चरण सिंह का 1986 में निधन और बाद में राम मंदिर आंदोलन की वजह से ये गठबंधन बिखर गया और बीजेपी ने सवर्ण कृषि संबंधित जातियों और OBC के कुछ सेक्शन को जीत लिया. RLD की स्थापना 1996 में हुई थी और इसे पश्चिमी यूपी में जाट और मुस्लिमों की पार्टी कहा जाता था. लेकिन बीजेपी के साथ इसके गठबंधन के बाद इसका मुस्लिम वोट कम हो गया और जाटों के बीच बीजेपी को वैधता मिल गई.
2013 के मुजफ्फरनगर दंगों से RLD की कृषि राजनीति का पतन हो गया और जाट बीजेपी के साथ और मुस्लिम एसपी और बीएसपी के साथ चले गए.
RLD को अगर वापसी करनी है तो उसके लिए अपना कोर वोट-जाट को जीतना बहुत जरूरी है. इस समुदाय के बीच पार्टी का प्रभाव कम हुआ है.
2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने फिर भी बेहतर प्रदर्शन किया था.
पार्टी का प्रभाव खास तौर पर जवान जाटों के बीच कम हुआ है जो 2013 के दंगों के बाद बीजेपी के साथ चले गए. कहा जाता है कि दंगों के दौरान कई जाटों ने उम्र में बड़े नेताओं से 'रास्ते से हट जाने' के लिए कह दिया था.
सीटों के मामले में भी RLD का प्रदर्शन सालों से गिर रहा है.
हाल में खत्म हुए पंचायत चुनावों से पार्टी को अच्छा संकेत मिला है. RLD ने मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत, हापुड़, बिजनौर और बुलंदशहर जिलों में अच्छा प्रदर्शन किया.
जयंत चौधरी न सिर्फ RLD बल्कि पश्चिमी यूपी में कृषि राजनीति को दोबारा जिंदा करने के लिए मेहनत कर रहे हैं.
वो किसान आंदोलन को ज्यादा से ज्यादा समर्थन देने वाले नेताओं में से हैं और कई जगहों पर रैलियां कर चुके हैं. चौधरी कृषि राजनीति को सांप्रदायिक राजनीति और जातियों के बीच दुश्मनी की एंटीडोट समझते हैं.
जयंत जाट यूथ को जीतने पर भी काम कर रहे हैं. हाथरस रेप केस के खिलाफ उन्होंने के प्रदर्शन निकाला था और लाठीचार्ज का सामना भी किया था.
इसमें कोई शक नहीं है कि बीजेपी के खिलाफ किसानों के बीच बढ़ते गुस्से की वजह से पश्चिमी यूपी की राजनीति में कुछ बदलाव आ रहा है. पंचायत चुनावों में RLD का अच्छा और बीजेपी का खराब प्रदर्शन इसका गवाह बना है.
नरेश और राकेश टिकैत के नेतृत्व में प्रभावशाली भारतीय किसान यूनियन भी बीजेपी के खिलाफ हो गई है. ये जयंत के लिए यूपी में कृषि राजनीति को दोबारा जिंदा करने का अच्छा मौका है.
बीजेपी के सूत्र बताते हैं कि पार्टी के 'चाणक्य' अमित शाह ने एक बार दावा किया था कि वो पश्चिमी यूपी में 'अजित सिंह के परिवार की राजनीति का अंत' कर देंगे. 2013 के दंगों के बाद RLD के गिरते वोट बेस से ऐसा लग रहा था कि शाह की बात सच हो रही है.
हालांकि, पार्टी किसी तरह सर्वाइव कर गई. बड़े स्तर पर किसान प्रदर्शन और पंचायत चुनावों में RLD की सफलता बताती है कि पश्चिमी यूपी में पार्टी अभी भी बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है.
यहां तक कि इस समय के हालात देखे जाएं तो लगता है RLD वो अकेली पार्टी है जो बीजेपी को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है.
जयंत चौधरी के लिए पश्चिमी यूपी में खोई जमीन वापस पाने का अच्छा मौका है.
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Published: 26 May 2021,09:13 AM IST