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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज
सिंधिया राजघराने के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी क्या छोड़ी, सियासी गलियारों में फिर फुसफुसाहट होने लगी- जब-जब सत्ता छूटती है, तब-तब कांग्रेस टूटती है.
बात तो सही है. पिछले 6 साल में केंद्र की राजनीति पर बीजेपी के वर्चस्व के बाद से कांग्रेस के दर्जनों दिग्गज पार्टी को विदा कह चुके हैं. खास बात ये कि उनमें से कुछ ने अपना अलग रास्ता चुना लेकिन ज्यादातर को सियासत की चिलचिलाती गरमी में बीजेपी के आंचल की छांव ही बेहतर लगी.
135 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी के जोड़ एक बार फिर चरमरा रहे हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस्तीफे ने कांग्रेस के भीतर की कुनमुनाहट को सतह पर ला दिया है और आने वाले दिनों में पार्टी को कई और नेताओं की नाराजगी से रूबरू होना पड़ सकता है.
दरअसल, जब भी कांग्रेस पार्टी में कोई उठापटक होती है तो नेतृत्व का बिखराव, भ्रम की स्थिति, वरिष्ठ बनाम युवा नेताओं का संघर्ष, ठोस फैसलों का अभाव जैसे आसान जुमले सियासत की सरहदों पर सरगोशियां करने लगते हैं. लेकिन ये तमाम इल्जाम तो कांग्रेस पर पहले भी लगते रहे हैं.
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की धमाकेदार एंट्री के बाद से कांग्रेस पार्टी को अलविदा कहने वालों की लाइन लगी है. करीब आधा दर्जन पूर्व केंद्रीय मंत्री, तीन पूर्व मुख्यमंत्री, और कई नए-पुराने प्रदेश अध्यक्ष पार्टी छोड़ चुके हैं.
नॉर्थ-ईस्ट में कांग्रेस छोड़ने वालों की लंबी फेहरिस्त है. तकरीबन सभी बीजेपी में शामिल हुए.
ये वो राज्य हैं जहां कुछ साल पहले तक बीजेपी का नाम बमुश्किल ही सुनाई पड़ता था.
आंध्र प्रदेश में कांग्रेस की लगभग पूरी लीडरशिप जगन मोहन रेड्डी, टीडीपी या बीजेपी के पाले में कूद चुकी है. और खींचें तो हरियाणा से लेकर गोवा और महाराष्ट्र तक ये लिस्ट और लंबी हो सकती है.
कांग्रेस पार्टी में कुछ ऐसी ही भगदड़ 90 के दशक में भी मची थी. साल 1996 में नरसिंह राव की सरकार जाने के बाद पार्टी केंद्र की सत्ता से बाहर थी. नेतृत्व का संकट था. सीताराम केसरी यानी गांधी परिवार से बाहर का शख्स अध्यक्ष बना था और पुराने कांग्रेसियों का असंतोष ‘अलविदा’ की शक्ल में बाहर आ रहा था. साल 1996 से 1999 के बीच-
सरीखे नेताओं ने कांग्रेस का हाथ छोड़कर अलग रास्ते चुने.
लेकिन 2004 से 2014 कर कांग्रेस केंद्र की सत्ता में रही और पार्टी छोड़ने वालों की गिनती उंगलियों पर हो सकती है.
इस संकट से उबरने में राहुल गांधी की दिलचस्पी तो ज्यादा नहीं दिखती. हां... सबकी निगाहें इस बात पर जरूर हैं कि ऐसे वक्त में पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी वो कौन सी मिट्टी लेकर आती हैं जो सत्ता की कमी की दरकती दरारों को भर सके.
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Published: 11 Mar 2020,09:30 PM IST