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कर्नाटक चुनाव के रूझानों में बीजेपी को बहुमत मिलता दिख रहा है. लेकिन इन रूझानों में ऐसा कुछ भी नहीं है जो चौंकाने वाला हो. कर्नाटक की राजनीति में करीब 3 दशकों का ये रिकॉर्ड रहा है कि जो पार्टी सत्ता में रही है उसको अगले चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है. कांग्रेस अगर साफ बहुमत हासिल कर पाती तो 1985 के रामकृष्ण हेगड़े सरकार के बाद ये पहली बार होता, लेकिन पार्टी ये करिश्मा कर पाने में नाकाम रही है.
1973 में स्टेट ऑफ मैसूर का नाम बदलकर कर्नाटक कर दिया गया. 1982 तक यहां कांग्रेस पार्टी की ही सरकार रही. 1983 में यहां की जनता ने गैर कांग्रेसी सरकार को मौका दिया और 1983 से 1985 में जनता पार्टी की सरकार में रामकृष्ण हेगड़े ने सत्ता संभाली. ये सरकार महज दो साल ही चल पाई, 1985 में फिर चुनाव हुए और बहुमत के साथ जनता पार्टी की सरकार बनी, रामकृष्ण हेगड़े दोबारा सीएम बने.
1989 में हुए विधानसभा चुनाव में जनता दल महज कुछ सीटों पर ही सिमट कर रह गई और कांग्रेस ने जबरदस्त जीत दर्ज की. कांग्रेस को 178 सीटें हासिल हुईं, जनता दल महज 24 सीटें ही हासिल कर पाई. कर्नाटक राज्य में वोटरों की खूबरसूरती देखिए महज 5 साल बाद यानी 1994 में यहां के लोगों ने कांग्रेस को आसमान से उठाकर जमीन पर पटक दिया और जनता दल की सरकार बनी.
1999 में कांग्रेस ने यहां एक बार फिर 132 सीट जीतकर बहुमत की सरकार बनाई. ये खुशी भी सिर्फ 5 साल के लिए ही रही, 2004 में बीजेपी यहां सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी, पार्टी ने 79 सीटें हासिल की. ऐसे मे जनता दल सेक्युलर और कांग्रेस ने गठबंधन की सरकार बनाई. ये पहला मौका था जब राज्य में गठबंधन की मदद से सरकार बनीं.
बीजेपी के लिए साल 2008 बेहद कारगर साबित हुआ. पूरे दक्षिण भारत में पहली बार बीजेपी की सरकार कर्नाटक में ही बनी. 110 सीटें हासिल कर पार्टी ने येदियुरप्पा के नेतृत्व में सरकार बनाई. इस सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और 5 साल बाद यानी 2013 के विधानसभा चुनाव में जनता ने एक बार फिर कांग्रेस को चुन लिया.
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Published: 15 May 2018,12:21 PM IST