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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कांग्रेस-जेडीएस के 15 (बागी) विधायकों को कर्नाटक विधानसभा के 18 जुलाई के फ्लोर टेस्ट में मौजूदगी के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. कोर्ट का यह फैसला बागी विधायकों की उस याचिका पर आया है, जिसमें उन्होंने कोर्ट से मांग की थी कि वो कर्नाटक विधानसभा स्पीकर को उनके इस्तीफे स्वीकार करने का निर्देश दे.
भले ही बागी विधायकों को अपनी मुख्य मांग पर राहत ना मिली हो, लेकिन कोर्ट के फैसले से उन्हें फ्लोर टेस्ट को लेकर व्हिप के तहत होने वाली कार्रवाई से तो राहत मिल ही गई है. मगर अब भी इन विधायकों पर एक खतरा मंडरा रहा है. वो खतरा है- विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित किए जाने का.
कांग्रेस-जेडीएस के बागी विधायकों को फिलहाल अयोग्य ठहराने जाने का डर क्यों हो सकता है, इस बात को समझने के लिए हमें आर्टिकल 164-1(बी) के प्रावधान को समझना होगा. इस प्रावधान में कहा गया है-
चलिए इस प्रावधान को कर्नाटक का उदाहरण लेकर समझते हैं. कर्नाटक में 2018 में विधानसभा चुनाव हुआ था. इस चुनाव में चुनकर आए विधायकों का कार्यकाल 2023 में खत्म होगा. इस बीच अगर इनमें से किसी भी विधायक को दलबदल कानून के तहत अयोग्य घोषित कर दिया जाता है, तो वह कर्नाटक की किसी भी सरकार में 2023 तक या उपचुनाव/चुनाव में जीतकर आने तक मंत्री नहीं बन सकता.
बात कांग्रेस-जेडीएस के बागी विधायकों की करें तो उन पर आरोप लग रहे हैं कि वे विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर बीजेपी की मदद कर रहे हैं. ऐसे में अगर उनके इस्तीफे स्वीकार हो जाते हैं और बीजेपी सत्ता में आने में कामयाब हो जाती है, तो सदन का सदस्य ना होने के बाद भी वे मंत्री बन सकते हैं. इस स्थिति में मंत्री बनने पर उन्हें 6 महीने के अंदर विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य बनना होगा. मगर इन विधायकों को अगर दलबदल कानून के तहत विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है, तो वे आर्टिकल 164 1 (बी) में दी गईं शर्तों को पूरा किए बिना मंत्री नहीं बन पाएंगे.
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Published: 17 Jul 2019,01:53 PM IST