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विधानसभा चुनावों से ठीक पहले हरियाणा कांग्रेस में जारी अंदरूनी कलह के बीच राष्ट्रीय नेतृत्व ने प्रदेश कार्यकारिणी में बड़ा बदलाव किया है. केंद्रीय नेतृत्व ने अशोक तंवर की जगह अब कुमारी शैलजा को हरियाणा कांग्रेस की कमान सौंप दी है. इसके साथ ही लंबे समय से शीर्ष नेतृत्व से नाराज चल रहे राज्य के बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को विधायक दल का नेता बनाया गया है.
बता दें, कांग्रेस आलाकमान को विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हरियाणा कांग्रेस कमेटी के नेतृत्व में बदलाव का फैसला पार्टी की अंदरूनी कलह की वजह से लेना पड़ा है. हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा में लंबे समय से तनातनी चल रही थी.
हरियाणा विधानसभा चुनावों से ठीक पहले कुमारी शैलजा को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपे जाने के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं.
लंबे समय से हरियाणा कांग्रेस में चली आ रही अंदरूनी कलह के बाद राष्ट्रीय नेतृत्व ने भले ही अशोक तंवर को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया हो. लेकिन पार्टी ने अपने ‘स्मार्ट मूव’ से सूबे के करीब 19 फीसदी दलित मतदाताओं को साधने की कोशिश की है.
कांग्रेस ने एक रणनीति के तहत दलित समुदाय से आने वाले अशोक तंवर को हटाकर दलित समुदाय को ही हरियाणा कांग्रेस की कमान सौंपने का फैसला लिया. दरअसल, कांग्रेस आलाकमान अशोक तंवर को हटाकर दलित समुदाय की नाराजगी का रिस्क नहीं लेना चाहती थी. इसी वजह से पार्टी आलाकमान ने पार्टी की दलित चेहरा कुमारी शैलजा को हरियाणा कांग्रेस की कमान सौंप दी.
अशोक तंवर को हटाकर कुमारी शैलजा को लाने के फैसले से कांग्रेस ने सूबे में ‘दलित-जाट’ कॉम्बिनेशन के फॉर्मूले को भी बरकरार रखा है. जातिगत राजनीति के लिहाज से हरियाणा में दलित और जाट वोट बैंक को निर्णायक माना जाता है.
बता दें, हरियाणा में जाटों की आबादी करीब 29 फीसदी और दलितों की आबादी 19 फीसदी है. ऐसे में अध्यक्ष पद पर दलित चेहरा और सीएम कैंडिडेट के लिए जाट फेस को आगे कर कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वो एक बार फिर सूबे में दलित-जाट कॉम्बिनेशन के फॉर्मूले पर दांव लगाने को तैयार है.
हरियाणा कांग्रेस में अशोक तंवर और हुड्डा खेमे में लंबे अरसे से खींचतान मची हुई थी. इसे खत्म कराने के लिए पार्टी नेतृत्व के तमाम प्रयास नाकाम रहे. हुड्डा चाहते थे कि तंवर को हटाकर उनको हरियाणा कांग्रेस की कमान दे दी जाए. कांग्रेस आलाकमान ने हुड्डा की मांग नहीं मानी तो उन्होंने बागी तेवर भी दिखाए. हुड्डा ने बीते 18 अगस्त को रोहतक में महापरिवर्तन रैली कर शक्ति प्रदर्शन किया और कांग्रेस से अलग होने के भी संकेत दिए थे.
दरअसल, तंवर और हुड्डा के बीच अदावत की शुरुआत लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजों के बाद हुई. लोकसभा चुनाव में हुड्डा हरियाणा में कांग्रेस का चेहरा थे. लेकिन बीजेपी ने हरियाणा की सभी दस सीटों पर जीत दर्ज कराई थी. भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा अपनी भी सीटें नहीं बचा पाए थे.
लोकसभा चुनावों में मिली इस हार का हुड्डा परिवार को खामियाजा भी भुगतना पड़ा. हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे अशोक तंवर ने तो हुड्डा परिवार को सूबे की सियासत में हासिए पर धकेल दिया. लेकिन पार्टी की इस अंदरूनी कलह में हुड्डा प्रेशर पॉलिटिक्स के जरिए कांग्रेस आलाकमान पर दवाब बनाने में कामयाब रहे. हुड्डा ने ना सिर्फ अपना खोया हुआ सम्मान हासिल कर लिया, बल्कि अपने राजनीतिक विरोधी अशोक तंवर को किनारे कर दिया.
विधायक दल के नेता का मतलब है कि हुड्डा आगामी विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस के सीएम कैंडिडेट होंगे.
बता दें, हरियाणा में साल के आखिर में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं.
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