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इशारों-इशारों में तेजस्वी ने नीतीश को कहा सृजन घोटाले का ‘दुर्जन’

तेजस्वी बिहार की जनता के समर्थन से मुख्यमंत्री होंगे, नीतीश की मर्जी से नहीं:लालू

द क्विंट
पॉलिटिक्स
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भागलपुर रैली में आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव
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भागलपुर रैली में आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव
(फोटो: ट्विटर/@laluprasadrjd)

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आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने रविवार को बिहार के भागलपुर में एक रैली को संबोधित किया. इस रैली को नाम दिया गया- 'सृजन के दुर्जनों का विसर्जन' रैली. इस दौरान वो अपने अंदाज में बिहार के सीएम नीतीश कुमार पर बरसते नजर आए.

लालू ने ये भी कहा कि उनके बेटे और पूर्व सीएम तेजस्वी यादव बिहार की जनता के समर्थन से मुख्यमंत्री होंगे, नीतीश कुमार की मर्जी से नहीं.

सृजन घोटाले के जिम्मेदार हैं नीतीश-सुशील

लालू प्रसाद यादव ने बिहार के कुख्यात सृजन घोटाले के लिए नीतीश कुमार और सुशील मोदी को जिम्मेदार बताया है. वहीं तेजस्वी यादव ने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि वो सृजन घोटाले के 'दुर्जनों' को विसर्जित करते ही रहेंगे, इस दौरान उनका निशाना नीतीश कुमार ही थे.

लालू-नीतीश सीबीआई के सामने 'पेश' नहीं होंगे

बता दें कि सीबीआई के सामने पेशी के ठीक 1 दिन पहले लालू यादव ने रैली की है. रेलवे टेंडर घोटाला मामले में उन्हें और तेजस्वी यादव को 11 और 12 सितंबर को पेश होना था. अब खबर है कि दोनों ही नेता सीबीआई के सामने पेश नहीं होंगे. लालू प्रसाद यादव ने सीबीआई से तारीख बढ़ाने की मांग की है.

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‘घोटाले के कारण बीजेपी के साथ आए नीतीश’

लालू प्रसाद यादव ने कहा कि सृजन घोटाले में फंसे होने के कारण ही नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई है. उन्हें डर था कि बीजेपी का साथ नहीं देने पर उन्हें जेल जाना पड़ेगा. उन्होंने कहा, अब तो बात सबके सामने आ ही गई है.

क्या है सृजन घोटाला?

बिहार में जेडीयू-बीजेपी की सरकार में साल 2007-2008 में भागलपुर के सबौर में सृजन को-ऑपरेटिव बैंक खुल जाने के बाद घोटाले का खेल शुरू हुआ. भागलपुर ट्रेजरी के पैसे को सृजन को-ऑपरेटिव बैंक अकाउंट में ट्रांसफर करने और फिर वहां से सरकारी पैसे को बाजार में लगाया जाने लगा. 2007 में संस्था ने 16 पर्सेंट के इंट्रेस्ट रेट पर बड़ी रकम लोन में देनी शुरू कर दी.

सृजन संस्था के पास बैंक चलाने का अधिकार नहीं था, क्योंकि ऐसा करने के लिए आरबीआई की ओर से लाइसेंस और इजाजत नहीं दी गई थी. को आॅपरेटिव सोसायटी कानून स्पष्ट रूप से कहता है कि इनके जरिए अधिकतम 50,000 रुपये का लेन-देन किया जा सकता है.

सवाल यहीं उठता है- बैंक के तौर पर आॅथोराइज्ड नहीं होने के बावजूद ये संस्था इस काम को किसकी इजाजत से कर रही थी?

इस मामले में राशि का गबन न करके संगठित तरीके से सरकारी रकम एक एनजीओ अकाउंट में भेजी गई और फिर इस पैसे का इस्तेमाल निजी फायदे के लिए किया गया.

2008 में भागलपुर के डीएम की ओर से सिर्फ नेशनलाइज्ड बैंक में गवर्नमेंट फंड जमा कराने आॅर्डर निकाला गया, पर तब तक सृजन के पास काफी पैसा आ चुका था.

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Published: 10 Sep 2017,06:32 PM IST

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