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यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव पर हमेशा एक आरोप लगता रहा है. उनके सत्ता में रहते विपक्ष खिंचाई करता था कि उनकी सरकार ने रेवड़ियों के भाव में लालबत्ती बांटी है. अब उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव का जमाना तो नहीं है, लेकिन ये रवायत अब भी जारी है.
11 अप्रैल से देश में सबसे बड़ा सियासी दंगल शुरू होने वाला है. चुनाव की अधिसूचना जारी होने से कुछ देर पहले योगी सरकार ने प्रदेश के अलग-अलग बोर्ड और आयोगों के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों के नामों को मंजूरी दे दी. चुनावी सीजन में योगी सरकार के इस फैसले के कई मायने निकाले जा रहे हैं.
यूपी में सरकार बनने के करीब-करीब दो साल बाद योगी सरकार ने प्रदेश के आयोगों और निगमों के चेयरमैन, उपाध्यक्ष और सदस्यों की लिस्ट जारी की है. चूंकि ये लिस्ट अधिसूचना जारी के होने से महज कुछ घंटे पहले ही आई और उसमें ज्यादा संख्या पूर्वांचल, खासकर गोरखपुर के आसपास की दिखी, तो आरोप लगने शुरू हो गए.
ये सब जानते हैं कि योगी आदित्यनाथ भले ही बीजेपी में हैं, लेकिन कभी भी उन्होंने बीजेपी के भरोसे या फिर कहिए कि बीजेपी की बदौलत राजनीति नहीं की. बीजेपी में रहने के साथ ही उन्होंने हिंदू युवा वाहिनी को जोरदार तरीके से मजबूत किया. जब वो सीएम बने, तो उनकी हिंदू युवा वाहिनी प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में छा गई.
इस प्रभाव को देखते हुए बीजेपी ने हिंदू युवा वाहिनी पर एक तरह से ‘अघोषित पाबंदी’ लगा दी. आलम ये था कि सत्ता में आने के बाद इस संगठन की रौनक गायब हो गई.
आयोग और बोर्ड की रूपरेखा खींचते हुए योगी आदित्यनाथ ने अपने संगठन पर भरपूर ध्यान दिया. योगी ने हिंदू युवा वाहिनी से जुड़े राजकुमार शाही, रमाकांत निषाद, अतुल सिंह और नीरज शाही जैसे कद्दावर नेताओं को अलग-अलग आयोगों में जगह देकर एक संदेश देने की कोशिश की.
वैसे तो योगी की जिम्मेदारी पूरे प्रदेश में बीजेपी उम्मीदवारों को जिताने की है, लेकिन पूर्वांचल पर उनकी खास साख दांव पर लगी है. इस बार आम चुनाव में प्रियंका गांधी भी खासतौर पर पूर्वांचल ही संभाल रही हैं.
गोरखपुर और आसपास के जिलों के 14 नेताओं को आयोग और बोर्ड में जगह
कांग्रेस नेता द्विजेन्द्र त्रिपाठी ने कहा, ''सीएम योगी गोरखपुर में उपचुनाव में हार से डरे हुए हैं. अपनी साख बचाने के लिए आयोग का लॉलीपॉप बांट रहे हैं. दो साल तक क्यों नहीं आयोगों का गठन किया? जनता सब जानती है.''
बोर्ड और आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों के नामों को मंजूरी देते वक्त जातिगत समीकरण का पूरा खयाल रखा गया कि किस जगह, किस जाति के नेता को तवज्जो देनी है. योगी ने गोरखपुर और आसपास के इलाकों में अच्छा खासा राजनीतिक जनाधार रखने वाली निषाद जाति को ज्यादा तरजीह दी. दरअसल गोरखपुर में लगभग 12 प्रतिशत के आसपास निषाद हैं.
दरअसल त्रिपाठी पिछले विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने से नाराज थे. उन्होंने विरोध का बिगुल फूंक दिया था, लेकिन अमित शाह के हस्तक्षेप के बाद ही त्रिपाठी माने. त्रिपाठी योगी के सांसद प्रतिनिधि रह चुके हैं और उन्हें गोरखपुर और आसपास के जिलों में ब्राह्मण चेहरे के तौर पर देखा जाता है.
इसी तरह एसपी से बीजेपी में शामिल हुए जगदीश मिश्र उर्फ 'बाल्टी बाबा' पर भी योगी सरकार मेहरबान हुई है. उन्हें उत्तर प्रदेश स्टेट एग्रो इण्डस्ट्रियल कॉरपोरेशन का अध्यक्ष नामित किया गया है. रमाकांत निषाद (गोरखपुर) को अध्यक्ष और जय प्रकाश निषाद (गोरखपुर) को सदस्य बनाया गया है.
गठबंधन के नेता ओमप्रकाश राजभर सरकार में कैबिनेट मंत्री होने के बावजूद सरकार के खिलाफ बगावती तेवर दिखाते रहे हैं. विपक्ष से ज्यादा उन्होंने सरकार की फजीहत की. आए दिन गठबंधन तोड़ने की धमकी देते रहे. लेकिन बेटे अरविंद राजभर को लघु अद्योग निगम लिमिटेड का चेयरमैन पद मिलते ही बीजेपी से सारे-गिले शिकवे दूर हो गए.
यही नहीं, अपना दल की अनुप्रिया पटेल भी बीजेपी पर छोटे दलों की उपेक्षा का अरोप लगाकर गठबंधन से निकलने की धमकी दे रही थीं. लेकिन आयोग और निगमों में उनकी लिस्ट को जगह मिली, तो वो भी खुश हैं.
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