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करणी सेना प्रमुख कालवी का राजनीतिक सफर रहा है सुपरफ्लॉप

कालवी राजनीतिक बिसात का वो असफल मोहरा है जो करणी सेना के दम पर वजीर बनना चाहता है

द क्विंट
पॉलिटिक्स
Published:
लोकेंद्र सिंह कालवी
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लोकेंद्र सिंह कालवी
फोटो: PTI

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संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती को विरोध के चलते काफी पब्लिसिटी मिल रही है. लेकिन उससे ज्यादा आज देश भर में करणी सेना की चर्चा हो रही है.

करणी सेना भले ही राजपूतों के आत्मगौरव की आड़ लेकर एक सामाजिक संगठन की भूमिका निभाने की बात कर रहा हो. लेकिन इसके नेता लोकेंद्र सिंह कालवी बेहद राजनीतिक आदमी हैं.

लोकेंद्र सिंह पिछले दो दशकों से राजनीति में जमने की लगातार कोशिश कर रहे हैं. इस दौरान वे कभी बीजेपी, कांग्रेस का पाला बदलते रहे, तो कभी खुद की पार्टी बनाकर भी चुनाव लड़े. लेकिन तमाम कोशिशों में उन्हें हर बार हार का सामना करना पड़ा.

लोकेंद्र सिंह कालवी के पिता, कल्याण सिंह कालवी पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेहद करीबी थे. वीपी सिंह के बाद चंद्रशेखर को प्रधानमंत्री बनवाने में उनकी अहम भूमिका थी.

चंद्रशेखर के कैबिनेट में कालवी मंत्री भी बने. कालवी 1989 के चुनावों में बाड़मेर से जीतकर सांसद बने थे.

कर्नल सोनाराम चौधरी से मिली थी करारी शिकस्त

लोकेंद्र सिंह कालवी भी अपने पिता की तर्ज पर राजनीति में आए. 1998 में वे बाड़मेर से चुनाव लड़कर पहली बार चुनावी राजनीति में उतरे. लेकिन इस चुनाव में उन्हें कर्नल सोनाराम चौधरी से करारी शिकस्त मिली.

सोनाराम चौधरी ने कालवी को 86 हजार वोटों से हराया. जहां सोनाराम चौधरी को 4,46,107 वोट मिले, वहीं कालवी को 3,60,567 वोट हासिल हुए.

राजपूत राजनीति की ओर कालवी

रिपोर्टों के मुताबिक इस दौर तक कालवी जातीय राजनीति नहीं किया करते थे. 1999 में जाटों को राजस्थान में कुछ सुविधाएं मिल गईं. इसके बाद कालवी ने एक दूसरे राजपूत नेता देवी सिंह भाटी के साथ मिलकर राजपूत समाज की लामबंदी करने की कोशिश की. हांलाकि इसमें उन्हें कोई खास कामयाबी नहीं मिली.

बीजेपी से अंसतुष्ट कालवी ने देवी सिंह भाटी और ब्राह्मण नेता सुरेश मिश्रा के साथ मिलकर सोशल जस्टिस फ्रंट का गठन किया. इसका मुख्य उद्देश्य सवर्ण गरीबों को आरक्षण दिलवाना था.

2003 विधानसभा चुनावों में संगठन करीब 65 सीटों पर चुनाव लड़ा. हांलाकि प्रमुख नेता होने के बावजूद लोकेंद्र सिंह ने ये चुनाव नहीं लड़ा था. पार्टी से केवल देवी सिंह भाटी को ही जीत मिली. बाकि सभी कैंडिडेट हार गए.

इसके बाद कालवी और भाटी दोनों ही बीजेपी में वापस शामिल हो गए. 2008 के विधानसभा चुनावों के पहले टिकट की आस में कालवी कांग्रेस में शामिल हो गए. लेकिन कांग्रेस ने उन्हें न विधानसभा चुनावों में टिकट दिया और न ही लोकसभा में.

कालवी, करणी और विरोध

कालवी ने 2006 में करणी सेना बनाई थी. करणी सेना का नामकरण बीकानेर जिले के करणी मंदिर के नाम पर हुआ है. 2008 में करणी सेना के विरोध के कारण जोधा-अकबर राजस्थान में रिलीज नहीं हो पाई थी.

करणी सेना ने 2009 में सलमान की फिल्म वीर का भी विरोध किया था. सेना का दावा था कि फिल्म के जरिए राजपूतों को गलत तरीके से पेश किया गया है. यहां तक कि करणी सेना ने जी टीवी पर प्रसारित होने वाले ऐतिहासिक टीवी सीरियल्स का भी विरोध किया था.

तो कहा जा सकता है अगर इस पूरी कंट्रोवर्सी से किसी को सबसे ज्यादा लाभ हुआ है तो वो करणी सेना ही है.

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