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मध्य प्रदेश की सियासत विधायकों के अंकगणित पर आकर ठहर गई है, जिसने यह गणित अपने पक्ष में कर लिया सत्ता उसके हाथ में होगी और जो चूक गया, सत्ता उससे दूर ही रहेगी. इस अंकगणित को मजबूत करने में कांग्रेस के बागी 16 विधायकों की बड़ी भूमिका है और सत्ता की चाबी उन्हीं के हाथ नजर आ रही है.
राज्य में बीते 10 से ज्यादा दिन सियासी ऊहापोह के बीच गुजरे हैं. आने वाले दिनों में भी यही हाल रहने वाला है, इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता. बीजेपी में शामिल होने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक 22 विधायकों ने बगावत कर विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. इनमें से 6 का इस्तीफा मंजूर किया जा चुका है, इस तरह 16 विधायकों का इस्तीफा अब भी मंजूर या नामंजूर नहीं हुआ है. यह 16 विधायक अपना इस्तीफा मंजूर करने का विधानसभाध्यक्ष एनपी प्रजापति से अपील कर चुके हैं.
विधानसभा की वर्तमान स्थिति पर गौर करें तो 230 सदस्यों मे से दो स्थान खाली हैं, छह विधायकों के इस्तीफे मंजूर किए जा चुके हैं, अब सदन में कांग्रेस के 108, बीजेपी के 107, बीएसपी के दो, एसपी का एक और निर्दलीय चार विधायक हैं. कांग्रेस के कुल 22 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था, जिसमें छह का इस्तीफा मंजूर हो चुका है अगर 16 विधायकों का भी इस्तीफा मंजूर हो जाता है तो कांग्रेस के पास 92 विधायक बचेंगे. अगर कांग्रेस को एसपी, बीएसपी और निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल भी रहता है तो विधायकों की संख्या 99 ही हो पाती है.
बीजेपी ने राजभवन पहुंचकर राज्यपाल को 106 विधायकों के शपथ पत्र देने के साथ परेड भी करा दी और दावा किया है कि राज्य में कमलनाथ सरकार अल्पमत में है. बीजेपी को वर्तमान स्थिति में बहुमत है.
राज्यपाल टंडन ने दोबारा मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है और 17 मार्च तक फ्लोर टेस्ट कराने को कहा है. साथ ही कहा है कि संवैधानिक और लोकतंत्रीय मान्यताओं का सम्मान करते हुए मंगलवार 17 मार्च तक मध्य प्रदेश विधानसभा में फ्लोर टेस्ट कराएं और बहुमत साबित करें, नहीं तो यह माना जाएगा कि वास्तव में आपको विधानसभा में बहुमत नहीं है.
बीजेपी की तरफ से कांग्रेस को बहुमत न होने की बात पर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा, "बीजेपी को लगता है कि उनके पास बहुमत है तो वो अविश्वास प्रस्ताव लाएं, उन्हें रोका किसने है, हम अपना बहुमत साबित करेंगे."
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