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मध्य प्रदेश का सियासी संकट समय के साथ और गहराता ही जा रहा है. 16 मार्च को बजट सत्र के पहले दिन राज्यपाल के अभिभाषण के बाद विधानसभा की कार्यवाही 26 मार्च तक स्थगित कर दी गई. इसके बाद बीजेपी नेता शिवराज सिंह चौहान ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कमलनाथ सरकार को फ्लोर टेस्ट के लिए निर्देश दिए जाने की मांग की. जिस पर सुप्रीम कोर्ट में आज फिर सुनवाई हुई.
सुनवाई के दौरान मध्य प्रदेश विधानसभा स्पीकर की तरफ से वकील एएम सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, "कृपया मुझे फैसला करने के लिए दो हफ्ते का समय दें. बागी विधायकों को मध्य प्रदेश में उनके घर वापस आने दें."
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य के 16 बागी कांग्रेसी विधायकों के इस्तीफे पर निर्णय 'एक दिन के अंदर' लिया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि 16 बागी विधायकों की वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग होगी और अदालत इसके लिए एक पर्यवेक्षक नियुक्त करेगी. शीर्ष न्यायालय ने प्रस्ताव देते हुए कहा कि बागी विधायक तटस्थ स्थान पर विधानसभा अध्यक्ष के सामने खुद को पेश कर सकते हैं.
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता शिवराज सिंह चौहान ने कहा- हम आराम से हैं, विधायक आराम से हैं और आने वाले समय को देखते हुए जनता भी आराम से है. सत्य की विजय होगी, न्याय की जीत होगी. माननीय सर्वोच्च न्यायालय पर हम सबका विश्वास है.
सुप्रीम कोर्ट में 17 मार्च को सुनवाई से पहले कांग्रेस पार्टी के बागी विधायक जो बेंगलुरु में हैं उन्होंने पहली बार प्रेस कॉन्फ्रेंस की. बागी विधायकों का कहना था कि हमें केंद्रीय सुरक्षा की जरूरत है. अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया पर हमला हो सकता है तो हम पर भी हो सकता है. साथ ही विधायकों ने बताया-
मध्य प्रदेश का हालिया सियासी संकट तब शुरू हुआ, जब 10 मार्च यानी होली के दिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी से इस्तीफे का ऐलान किया. करीब 18 साल कांग्रेस में रहे सिंधिया पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए. इसी बीच मध्य प्रदेश कांग्रेस के 22 विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि उसके विधायकों को बंधक बनाया गया है.
बात कांग्रेस के संख्याबल की करें तो उसके पास फिलहाल (16 ‘बागी’ विधायकों सहित) 108 विधायक हैं. इसके अलावा उसे 7 सहयोगी विधायकों का भी समर्थन हासिल है. जबकि बीजेपी के पास 107 विधायक हैं.
अगर बाकी 16 विधायकों के भी इस्तीफे मंजूर हो जाते हैं तो विधानसभा का संख्याबल घटकर 206 हो जाएगा. उस स्थिति में बहुमत का आंकड़ा घटकर 104 हो जाएगा और बीजेपी की सरकार बनाने का रास्ता साफ हो जाएगा.
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