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महाराष्ट्र में 22 दिसंबर से शीतकालीन सत्र शुरू होने जा रहा हैं. इस बीच सीएम उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) की नासाज तबियत के चलते सरकार में नेतृत्व को लेकर कई अटकलें लगाई जा रही हैं. सर्वाइकल सर्जरी के बाद पिछले एक महीने से उद्धव पर इलाज चल रहा हैं. ऐसे में सीएम कैबिनेट की बैठक और सत्र के पूर्वसंध्या के चाय पान में भी प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं हुए.
तो वहीं, दूसरी ओर नेता विपक्ष देवेंद्र फडणवीस ने राज्य की मौजूदा स्थिति पर एमवीए सरकार को निशाने पर लिया है. आगामी सत्र में विपक्ष ने सरकार को घेरने की रणनीति तैयार की हैं, जिससे उद्धव के सामने चुनौतियां बढ़ती नजर आ रही हैं.
क्या है सीएम उद्धव के सामने पांच चुनौतियां ?
सीएम उद्धव 10 नवंबर को सर्जरी के लिए अस्पताल में भर्ती हुए थे. सर्वाइकल और स्पाइनल कॉर्ड सर्जरी के बाद उन्हें 2 दिसंबर को डिस्चार्ज किया गया. लेकिन लगभग एक महीने से ज्यादा का समय होने के बावजूद सीएम अपने कार्यालय में पूरी तरह से काम शुरू नहीं कर पाए है. ऐसे में एमवीए सरकार में नेतृत्व बदलाव की चर्चा तेज हो गई हैं. बताया जा रहा है कि सीएम अपना अंतरिम प्रभार शिवसेना के वरिष्ठ नेता और मंत्री सुभाष देसाई को सौपेंगे. लेकिन मंत्रिमंडल में मौजूद डिप्टी सीएम अजित पवार और पूर्व सीएम अशोक चव्हाण के होते हुए इसपर अनबन होने के आसार हैं. साथ ही शिवसेना कोटे से मंत्री एकनाथ शिंदे को दरकिनार किए जाने पर पार्टी में फूट पड़ने की आशंका हैं.
कांग्रेस के नाना पटोले ने पार्टी अध्यक्ष पद के लिए विधानसभा अध्यक्ष पद छोड़ा. उसके बाद से चुनाव के लिए कांग्रेस दबाव बना रहा हैं. लेकिन नियम समिति के मुताबिक विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव गुप्त मतदान से होता है, जिससे उद्धव सरकार की मुश्किलें बढ़ने का डर हैं. ऐसे में सरकार को अपने बहुमत पर भरोसा नहीं है, इसीलिए पिछले सत्र में विपक्ष के बारह विधायकों को निलंबित किया गया. ऐसा आरोप नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फणवीस ने सरकार पर लगाया. लेकिन अजित पवार ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि राजनीतिक प्रतिशोध से नहीं, बल्कि नियम के मुताबिक कार्रवाई हुई हैं. साथ ही साफ किया कि विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव आवाजी मतदान से होगा.
ओबोसी समुदाय के राजनीतिक आरक्षण ओर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी हैं, जिससे ठाकरे सरकार का सिरदर्द बढ़ गया हैं. फडणनवीस का आरोप है कि राज्य सरकार पिछले दो सालों से ओबीसी का पॉलिटिकल बैकवर्डनेस का डाटा जुटा नहीं पाई, जिसके वजह से ओबीसी समुदाय को आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में आरक्षण से वंचित रहना पड़ था है. तो वहीॆ, दिल्ली में ओबीसी सम्मेलन को संबोधित करते हुए मंत्री छगन भुजबल ने ओबीसी को स्थानीय निकायों, विधानसभा और लोकसभा में राजनीतिक आरक्षण की संवैधानिक वैधता की मांग की हैं. लेकिन जबतक ये तकनीकी पेंच नहीं सुलझता, तब तक ठाकरे सरकार को स्थानीय निकायों में नुकसान झेलना पड़ सकता हैं.
हाल ही में सरकार के स्वास्थ्य विभाग, गृहनिर्माण विभाग के म्हाडा महामंडल और टीईटी परीक्षाएं रद्द करने की नौबत सरकार पर आई. इन परीक्षाओं में पेपर लीक के मामले सामने आए. पुणे पुलिस की कार्रवाई में इन विभागों के बड़े पदों पर बैठे अधिकारी शामिल होने का खुलासा हुआ हैं. इतना ही नहीं, बल्कि उनके पास करोड़ों की कैश भी बरामद हुई. ऐसे में लाखों छात्रों में रोष हैं, जिसके चलते सरकार में शुरू भ्रष्टाचार पर विपक्ष आक्रामक हैं.
पिछले एक महीने से शुरू महाराष्ट्र स्टेट रीजनल ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन के कर्मचारियों के स्ट्राइक पर उद्धव सरकार कोई हल निकाल नहीं पा रही. इससे ग्रामीण इलाकों में आम लोगों की ट्रांसपोर्ट सेवा पूरी तरह से चरमरा गई हैं. कोर्ट से आदेश मिलने के बाद भी कर्मचारी काम पर लौटने को तैयार नहीं हैं. उनकी मांग है कि उनके वेतन में बढ़ोतरी की जाए. साथ ही स्टेट ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन का राज्य सरकार में विलीनीकरण किया जाए. लेकिन राज्य सरकार की नाजुक आर्थिक स्थिति के चलते ये मुमकिन नहीं हैं. ऐसे में लंबे समय तक चल रहे एसटी आंदोलन की वजह से लोगों में राज्य सरकार के खिलाफ नाराजगी हैं
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