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महाराष्ट्र में बीजेपी ने अजित पवार के साथ मिलकर सरकार बना ली है. देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री और अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली है. ये घटनाक्रम इतनी तेजी से हुआ कि कांग्रेस-एनसीपी और शिवेसना को भनक तक नहीं लगी. लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि बीजेपी अजित पवार के साथ फ्लोर टेस्ट कैसे पास करेगी? अजित पवार आखिर कितने विधायक तोड़कर लाएंगे.
महाराष्ट्र में बीजेपी ने सरकार बनाने का दावा पेश किया और राज्यपाल ने सीएम और डिप्टी सीएम को शपथ भी दिला दी. जिसके बाद फिलहाल राज्य में बीजेपी ने सरकार बना ली है. लेकिन अब विधानसभा में बीजेपी को एक सबसे बड़ा टेस्ट पास करना होगा. जिसे फ्लोर टेस्ट कहा जाता है. इस फ्लोर टेस्ट में सरकार बनाने का दावा करने वाली पार्टी को बहुमत साबित करना होता है.
एनसीपी नेता नवाब मलिक ने साफ किया है कि सभी विधायकों का समर्थन उनके पास है. अजित पवार अकेले बीजेपी के साथ गए हैं. उन्होंने कहा,
"ये धोखे से बनाई गई सरकार है और ये विधानसभा के फ्लोर पर हारेगी. सारे विधायक हमारे साथ हैं. हमने विधायकों से अटेंडेंस के लिए हस्ताक्षर करवाए थे, जिनका गलत इस्तेमाल किया गया और इसके आधार पर शपथ ग्रहण हुआ."
फ्लोर टेस्ट एक संवैधानिक प्रावधान है. जिसके तहत राज्यपाल जिसे मुख्यमंत्री पद पर नियुक्त करता है या शपथ दिलाता है उसे विधानसभा में फ्लोर टेस्ट देना होगा. संविधान के तहत मुख्यमंत्री को राज्य का राज्यपाल ही शपथ दिला सकता है. जब भी किसी दल को पूर्ण बहुमत मिलता है तो उस पार्टी के विधायक दल के नेता को राज्यपाल सीएम नियुक्त करते हैं.
लेकिन एक और तरह का फ्लोर टेस्ट भी होता है, जो तब होता है जब एक से ज्यादा लोग सरकार बनाने का दावा पेश करते हैं. जब बहुमत साफ नहीं होता है तो राज्यपाल एक स्पेशल सेशन बुलाकर ये साबित कर सकते हैं कि किसके पास बहुमत है. यह बहुमत सदन में मौजूद विधायकों के वोट के आधार पर साबित होता है. इसमें विधानसभा सदस्य मौखिक तौर पर भी वोट कर सकते हैं. वहीं विधायकों को मौजूद नहीं रहने और वोट नहीं डालने की भी आजादी होती है. बराबर वोट डालने की स्थिति में विधानसभा स्पीकर भी अपना वोट कर सकते हैं.
अगर एनसीपी के विधायक बगावत करके बीजेपी के साथ जाते हैं तो ऐसे में उन पर एंटी डिफेक्शन लॉ (दल बदल कानून) के तहत अयोग्य घोषित होने का खतरा मंडराएगा. इस बात का जिक्र खुद एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान किया. उन्होंने कहा कि जो विधायक सोच रहे हैं कि वो बीजेपी के साथ जा सकते हैं उन्हें एंटी डिफेक्शन लॉ की जानकारी होनी चाहिए.
दल बदल कानून उन नेताओं के लिए लागू होता है जो मौका देखकर पार्टी बदल लेते हैं. इसके तहत अगर कोई सदस्य पार्टी व्हिप के विरोध में वोट डाले, अपनी इच्छा से इस्तीफा दे या किसी और पार्टी में शामिल हो जाए तो उसकी सदस्यता रद्द कर उसे अयोग्य ठहरा दिया जाता है.
बता दें कि कर्नाटक में सरकार गिराने के दौरान भी कुछ विधायकों पर दल बदल कानून के तहत कार्रवाई की गई थी. जिसमें कांग्रेस-जेडीएस के करीब 17 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया गया. उन्हें पांच साल तक के लिए अयोग्य घोषित किया गया था. जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में चुनाव लड़ने की गुहार लगाई थी. हालांकि कोर्ट से उन्हें चुनाव लड़ने की इजाजत दे दी गई.
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Published: 23 Nov 2019,03:22 PM IST