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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए जब बीजेपी ने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी की तो एक चौंकाने वाली बात सामने आई. चंद्रकांत पाटिल, जिन्हें हाल ही में प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष बनाया गया है, उन्हें उनके अपने होमटाउन कोल्हापुर से नहीं, बल्कि पुणे की कोथरूड सीट से चुनाव लड़ाने का फैसला किया गया है. लोग पूछ रहे हैं कि आखिर क्यों? दरअसल ये महाराष्ट्र में बीजेपी की ऐसी चाल है, जो वहां की राजनीति को बदल हो सकती है. इसे आप एक तीर से दो निशाना भी कह सकते हैं और सबसे खास बात ये कि इसमें बाकी देश में बीजेपी की राजनीति से मिलता-जुलता पैटर्न भी नजर आ रहा है.
बाकी देश की तरह महाराष्ट्र में भी ब्राह्मण और वैश्य पारंपरिक तौर पर बीजेपी के वोटर माने जाते हैं. लेकिन हर जगह चुनाव जीतने के लिए ये काफी नहीं है. मसलन महाराष्ट्र को ली लें. मराठा जिसके, महाराष्ट्र का किला उसका. चंद्रकांत पाटिल मराठा हैं. पश्चिमी महाराष्ट्र से हैं, जहां मराठाओं का दबदबा रहा है. और इस इलाके पर पारंपरिक रूप से एनसीपी का जलवा रहा है. ये इलाका शरद पवार का माना जाता है. पिछले लोकसभा चुनाव में भी जब पूरे देश में मोदी लहर थी, तब भी पश्चिमी महाराष्ट्र की 58 सीटों में से बीजेपी को 19 और एऩसीपी को 16 सीटें मिलीं...तो बात ये है कि पहले तो बीजेपी ने पश्चिम महाराष्ट्र के एक नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाया और फिर उसे पुणे की एक सीट से उतारा. संदेश साफ है.
कोथरूड की मौजूदा बीजेपी विधायक मेधा कुलकर्णी भी ब्राह्मण समाज से हैं...जिनकी जगह पाटिल को टिकट दिया गया है. जब से बीजेपी ने पाटिल को कोथरूड से उम्मीदवार बनाया है, पुणे का ब्राह्मण महासंघ पाटिल का विरोध कर रहा है. ब्राह्मण महासंघ के अरुण देव का कहना है कि हमने हमेशा से बीजेपी का साथ दिया है लेकिन इस बार पार्टी ने एक गैर ब्राह्मण को टिकट देकर ठीक नहीं किया.
दरअसल इस विरोध में भी बीजेपी का ही फायदा है. ब्राह्मण महासंघ का पुणे में असर हो सकता है कि लेकिन पूरे महाराष्ट्र में नहीं. पूरे महाराष्ट्र की बात करें तो मराठा वोट ही निर्णायक है. ऐसे में ब्राह्मण महासभा का ये सवाल उठाना कि बीजेपी ब्राह्मण को छोड़ मराठा को टिकट क्यों दे रही है, पूरे राज्य के मराठा वोटर को साफ संदेश देता ही है.
लोकसभा चुनावों में बीजेपी को जो बड़ी जीत मिली है, उसके पीछे पुराना जातीय समीकरण बिगाड़ने की रणनीति भी रही है. यूपी में अगड़े बीजेपी के साथ थे ही, गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों को अपनी तरफ किया. नतीजा सामने है- 52% वोट.
एक दूसरा उदाहरण हरियाणा का है. हरियाणा में हमेशा जाट राजनीति हावी रही. बीजेपी ने गैर जाट वोट को लामबंद किया. भले ही वहां जाट वोट सबसे ज्यादा थे, लेकिन 19% दलित बाकियों के साथ मिले तो खेल बदल गया.
इस वक्त झारखंड में आदिवासी बनाम गैर आदिवासी की बिसात बिछाई जा रही है. रांची में बिरसा मुंडा की मूर्ति के साथ तोड़फोड़ को इसी रूप में देखा जा रहा है.
महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस ब्राह्मण समाज से हैं. कथित तौर पर गलत चुनावी हलफनामा देने के मामले में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि लोअर कोर्ट इसपर फैसला ले. तो चंद्रकांत पाटिल को उठाने के पीछे बीजेपी की रणनीति ये भी हो सकती है कि एक तरफ तो मराठा वोटर को संदेश दिया जाए और दूसरी तरफ राज्य में दूसरा पावर सेंटर खड़ा किया जाए. याद रखिएगा चंद्रकांत पाटिल को अमित शाह का करीबी माना जाता है. ये भी याद रखना होगा कि चंद्रकांत पाटिल ने अब तक कोई चुनाव नहीं लड़ा है.
कोई ताज्जुब नहीं कि उन्हें जिस कोथरूड सीट से उतारा गया है, वो बीजेपी की पुणे में सबसे मजबूत सीट है. यहां की सभी 8 विधानसभा सीटों पर इस वक्त बीजेपी का कब्जा है. वैसे चंद्रकांत पाटिल दो बार MLC रहे हैं और उनका कार्यक्षेत्र पुणे संभाग ही रहा है.
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