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महाराष्ट्र: निकाय चुनाव में OBC आरक्षण नहीं, SC के फैसले का क्या होगा असर?

सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को सामान्य वर्ग में बदलने के निर्देश दिए हैं

क्विंट हिंदी
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>OBC reservation| ओबीसी आरक्षण पर राजनीति</p></div>
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OBC reservation| ओबीसी आरक्षण पर राजनीति

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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महाराष्ट्र में ओबीसी आरक्षण (OBC reservation) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि निकाय चुनावों में कोई ओबीसी आरक्षण नहीं दिया जाएगा, जो 27 फीसदी सीटें इसके तहत आरक्षित की गई थीं, उन्हें सामान्य सीटों में तब्दील कर चुनाव कराया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना जरूरी सूचना जुटाए ही ये आरक्षण देने का फैसला लिया गया.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 6 दिसंबर को अपनी सुनवाई के दौरान आदेश जारी कर कहा था कि, महाराष्ट्र स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण पर अगले आदेश तक रोक रहेगी. सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान भी साफ किया था कि बिना कमीशन की स्थापना किए और जरूरी आंकड़े जुटाए ये आरक्षण लागू नहीं किया जा सकता है.

देवेंद्र फडणवीस ने राज्य सरकार को ठहराया दोषी

क्योंकि ओबीसी आरक्षण महाराष्ट्र की सियासत के लिए काफी जरूरी माना जाता है, इसीलिए तमाम दल इसके पक्ष में नजर आते हैं. ओबीसी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के इस बड़े फैसले पर नेता प्रतिपक्ष और बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने का भी बयान सामने आया. उन्होंने राज्य सरकार को जल्द से जल्द इस मामले में कदम उठाने की नसीहत दी. फडणवीस ने कहा,

"सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि केंद्र सरकार के पास ओबीसी आरक्षण को लेकर जो डेटा है वो ट्रिपल टेस्ट के लिए उपयोगी नहीं है. संवैधानिक बेंच ने कहा है कि ट्रिपल टेस्ट के लिए डेटा स्टेट बैकवर्ड कमीशन तैयार करेगा. पिछले 2 सालों से राज्य सरकार ने ये सब नहीं किया और सिर्फ केंद्र सरकार पर उंगली उठाते रहे. हम सरकार से मांग करते हैं कि इस पूरे प्रोसेस को तीन महीने में पूरा किया जाए. हम ओबीसी आरक्षण के बिना भविष्य में चुनाव बर्दाश्त नहीं करेंगे."
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अब आपको बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के लिए किस ट्रिपल टेस्ट की बात कही है. जिसका जिक्र देवेंद्र फडणवीस भी कर रहे हैं. दरअसल सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक निकाय चुनावों में सीटों में आरक्षण के लिए तीन चीजें जरूरी हैं. जिनमें -

1 - राज्य में स्थित स्थानीय निकायों में पिछड़ापन किस तरह का है और इसी तरह की तमाम जांच के लिए एक आयोग का गठन करना होगा.

2 - इस आयोग की सिफारिशों के तहत स्थानीय निकाय चुनाव में दिए जाने वाले आरक्षण के अनुपात को तय करना, जिससे कि कुल आरक्षण के दायरे में गड़बड़ी न हो.

3 - किसी भी मामले में एससी/एसटी या ओबीसी को दिया जाने वाला आरक्षण कुल सीटों से 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए.

महाराष्ट्र की राजनीति में क्यों अहम है OBC आरक्षण?

आंकड़ों के मुताबिक महाराष्ट्र में कुल करीब 5 करोड़ ओबीसी आबादी है, जो किसी भी दल के समीकरण बनाने और बिगाड़ने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. इसीलिए हर राजनीतिक दल इसे लागू करने के पक्ष में है. महाराष्ट्र में कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी की गठबंधन वाली सरकार भी लगातार ओबीसी आरक्षण को लागू करने के पक्ष में रही है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सरकार की महत्वकांक्षाओं पर भी रोक लगा दी.

माना जा रहा है कि ओबीसी आरक्षण का मुद्दा सिर्फ निकाय चुनावों तक ही सीमित नहीं रहेगा. इसका असर आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों तक दिख सकता है. इसीलिए बीजेपी से लेकर कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी जैसे दल ओबीसी समुदाय के हितैषी बनना चाहते हैं.

बीएमसी चुनावों में दिख सकता है असर

आरक्षण को लेकर महाराष्ट्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही एक दूसरे पर हमलावर हैं. सत्ता पक्ष केंद्र सरकार को दोषी ठहराता है तो विपक्षी पार्टी बीजेपी का कहना है कि ठाकरे सरकार ओबीसी समुदाय के साथ छल कर रही है. भले ही दोनों दल इस मामले पर अपने नंबर बढ़ाने में जुटे हों, लेकिन माना जा रहा है कि आने वाले बीएमसी और 10 महानगर पालिका चुनावों पर इसका असर देखने को मिल सकता है. इसके लिए दोनों दल आने वाले निकाय चुनावों में ओबीसी उम्मीदवारों को उन सीटों पर उतार सकते हैं, जिन पर आरक्षण का वादा किया गया था. यानी भले ही सुप्रीम कोर्ट ने 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण पर रोक लगा दी हो, लेकिन इसकी भरपाई सियासी दल ओबीसी उम्मीदवारों को उतारकर कर सकते हैं.

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