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महाराष्ट्र: नगर पंचायत चुनावों के नतीजों का इशारा किस ओर है?

नगर पंचायत चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने सर्वाधिक 384 सीटें जीती हैं.

ऋत्विक भालेकर
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>महाराष्ट्र: नगर पंचायत चुनावों के नतीजों का इशारा किस ओर है?</p></div>
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महाराष्ट्र: नगर पंचायत चुनावों के नतीजों का इशारा किस ओर है?

क्विंट हिंदी

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महाराष्ट्र (Maharashtra) में हाल ही में हुए नगर पंचायत चुनावों ने राज्य की सियासी हवा का रुख साफ कर दिया हैं. ओबीसी वर्गों के राजनीतिक आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक के बाद महाराष्ट्र में ये पहले निकाय चुनाव थे.

अब सामने आए आकड़ों से साफ हो रहा कि आगामी मिनी विधानसभा चुनावों में ओबीसी आरक्षण और एमवीए वर्सेस बीजेपी (BJP) की संघर्ष का महाराष्ट्र राजनीति में असर होगा.

उससे पहले क्या देखते है क्या हालात बयान कर रहे है आकड़े ?

नगर पंचायत चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने सर्वाधिक 384 सीटें जीती हैं. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी 344 सीट जीतकर दूसरे स्थान पर है. कांग्रेस ने 316 और शिवसेना ने 284 सीटें जीती हैं.

इन स्थानीय निकाय चुनावों में सबसे ज्यादा नगर पंचायतों पर एनसीपी ने झंडा गाड़ा है, तो वही सबसे ज्यादा सीटें बीजेपी ने जीती है. कांग्रेस तीन नंबर की पार्टी बनी, तो वही सीएम की कुर्सी होते हुए शिवसेना चौथे नंबर की पार्टी बनकर रह गई हैं.

हालांकि सत्ता में शामिल तीनों पार्टी को मिलाकर एमवीए सरकार ने 57 पंचायत जीतकर निकाय चुनावों में बाजी मारी हैं. लेकिन अकेले लड़ कर बीजेपी ने भी 25 पंचायत हासिल कर कांटे की टक्कर दी है ये आंकड़ों से स्पष्ट हो रहा है.

ओबीसी आरक्षण रद्द होने का क्या हुआ असर ?

इन नतीजों से किसको नुकसान और किसका फायदा हुआ इसका अध्ययन करते हुए ओबीसी रिसर्चर प्रो. श्रावण देवरे का मानना हैं की यूपी, बिहार और तमिलनाडु की तरह महाराष्ट्र में ओबीसी को राजनीतिक विकल्प नहीं है. इसीलिए यहां ओबीसी सभी पार्टियों में बंट जाते हैं. हालांकि इस चुनाव में बीजेपी ने सबसे ज्यादा सीटें लड़ने के कारण सबसे ज्यादा सीटें जीतना स्वाभाविक है. तो वही एमवीए की तीनों पार्टियों में एनसीपी जिसका ओबीसी से ज्यादा मराठा वोटबेस है उन्हें सबसे ज्यादा पंचायत हासिल हुई है.

दूसरी ओर राजनैतिक विश्लेषक रवि किरण देशमुख का आंकलन है कि स्थानीय निकायों से स्पष्ट हो रहा है कि ओबीसी आरक्षण रद्द होने का असर बड़े पैमाने पर नहीं देखा गया. इसकी वजह ये बताई जा रही है कि स्थानीय चुनाव स्थानीय मुद्दों और नेताओं पर लड़े जाते है.

इसके अलावा राजनीतिक आरक्षण का मुद्दा आम आदमी के लिए नहीं, बल्कि सिर्फ चुनाव में उतरे प्रत्याशियों के लिए महत्वपूर्ण हैं. इसका असर तब देखने को मिलता जब शिक्षा और नौकरी से जुड़े आरक्षण को ठेस पहुंची होती.
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ऐसे हालात में महाराष्ट्र में हुए नगर पंचायत के चुनाव आरक्षण के मुद्दे के लिए लिटमस टेस्ट का काम कर गई. फणडवीस सरकार से शुरू ओबीसी आरक्षण की बहस एमवीए सरकार के लिए भी सिर दर्द बन बैठी थी. महाराष्ट्र में कुछ ही महीनों में मिनी विधानसभा यानी 28 जिला परिषद, 20 महानगर निगम और 282 नगर पालिकाओं को चुनाव होनेवाला है. इसमें ओबीसी आरक्षण पर आए नए आदेश का किस तरह से असर होगा ये देखना दिलचस्प होगा.

किसे फायदा, किसे नुकसान ?

एनसीपी के महाराष्ट्र प्रदेश के अध्यक्ष जयंत पाटिल ने इस जीत को स्वीकार करते हुए बीजेपी पर हमला बोला हैं. पाटिल ने कहा कि एनसीपी को साढ़े तीन जिलों की पार्टी कहनेवाली बीजेपी को हमारे कार्यकर्तओं ने इन नतीजों के माध्यम से करारा जवाब दिया हैं. हालांकि बीजेपी प्रदेश के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने बीजेपी को नंबर एक पार्टी होने का दावा किया हैं. साथ ही अपने पुराने सहयोगी शिवसेना को निशाने पर लेते हुए कहा कि एनसीपी की बढ़ती ताकत देखते हुए एमवीए सरकार में शामिल होना शिवसेना के लिए कितना घाटे का सौदा रहा है यही प्रतीत होता हैं.

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने कांग्रेस के प्रदर्शन को संतोषजनक बताया है. पटोले के होम ग्राउंड भंडारा में भले ही उन्हें एनसीपी से मात मिली हो, लेकिन बीजेपी का गढ़ माने जानेवाले विदर्भ में कांग्रेस सबसे आगे है और कोंकण में खाता खोला है, जिससे कांग्रेस संतुष्ट नजर आ रही हैं. जबकि बीजेपी से ओबीसी नेता पंकजा मुंडे का मानना है कि ओबीसी आरक्षण रद्द होने के बाद भी सिर्फ बीजेपी ने उन जगहों पर ओबीसी उम्मीदवार मैदान में उतारे जिस वजह से बीजेपी ने सबसे ज्यादा सीटें जीती. हालांकि इन नतीजों पर शिवसेना के किसी बड़े नेता की प्रतिक्रिया अब तक नहीं मिल सकी.

क्या है सुप्रीम कोर्ट का नया आदेश ?

बता दें कि ओबीसी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम आदेश दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी वर्गों को राजनीतिक आरक्षण दिए जाने की जिम्मेदारी फिलहाल पिछड़ा वर्ग आयोग को सौंपी है. राज्य सरकारों को ओबीसी का उपलब्ध डाटा आयोग को सौंपना होगा. अगले दो हफ्ते के भीतर ओबीसी आरक्षण दिया जा सकता है या नहीं ये आयोग तय करेगा. ये निर्णय सिर्फ आगामी चुनावों के मद्देनजर लिया गया है.

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