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यूपी में महागठबंधन पर महासंकट. महाराष्ट्र में पुराने कांग्रेसी पार्टी छोड़ रहे. राजस्थान में सीएम और डिप्टी सीएम में ठनी. कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने विधानसभा चुनावों के पहले कांग्रेस का साथ छोड़ा. बिहार के गठबंधन में गांठें. कर्नाटक में कांग्रेस के भीतर और कांग्रेस - जेडीएस के बीच कलह. गुजरात कांग्रेस में टूट. बंगाल में ममता के घर कोहराम. कुल मिलाकर हर जगह चुनाव बाद विपक्ष में बिखराव है. लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है? विचारधारा के नाम पर साथ आए दल इतनी जल्दी क्यों अलग हो रहे हैं? चुनाव में हार के बाद गैर बीजेपी मोर्चे आईसीयू में क्यों पहुंच रहे हैं? गौर करें तो हर जगह एक ही बीमारी है.
मंगलवार को जब मायावती ने ऐलान किया कि बीएसपी 11 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव अकेले लड़ेगी तो उन्होंने क्या कहा? कहा कि चुनाव एसपी के कारण हारे. रिश्ते अपनी जगह हैं लेकिन सियासत अलग. यानी सियासी गठबंधन का आधार हार जीत था और है, न कि एक विचारधारा. मैसेज यही जा रहा है कि साथ सिर्फ सत्ता के लिए आए थे. जब मकसद पूरा नहीं हुआ तो रास्ते जुदा हो गए.
महाराष्ट्र में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विधानसभा में पूर्व नेता विपक्ष राधाकृष्ण विखे पाटिल और कांग्रेस से निकाले गए विधायक अब्दुल सत्तार ने इस्तीफा दे दिया. खबर है कि पाटिल समेत तीन और विधायक बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. अब्दुल सत्तार ने तो कहा -‘’8 से 10 विधायक बीजेपी के संपर्क में हैं. राज्य का नेतृत्व पार्टी को बर्बाद कर रहा है.’’
पाटिल ने इस्तीफा देने के बाद कहा - “हालात ने मुझे इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया है’’ विखे पाटिल अब जो भी दलील दें लेकिन सच्चाई ये है कि लोकसभा चुनावों के दौरान ये चर्चा आम थी कि वो अहमदनगर से अपने बेटे के लिए टिकट मांग रहे थे. लेकिन ये सीट गठबंधन के तहत एनसीपी को चली गई। फिर उनके बेटे बीजेपी में चले गए. चुनाव के दौरान विखे पाटिल ने गठबंधन के लिए प्रचार तक नहीं किया. साफ है कि वो अपने हितों को लेकर ‘मजबूर’ थे.
कर्नाटक में कांग्रेस और गठबंधन में झगड़ा तो चल ही रहा था, मंगलवार को जेडीएस के प्रदेश अध्यक्ष ए.एच विश्वनाथ ने लोकसभा चुनाव में हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया. उन्होंने खुले तौर पर हार के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया. राज्य की सत्ता पर काबिज कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन में खींचतान लोकसभा चुनावों के बाद बेहद तेज हो गई थी, लोकल बॉडी चुनाव में मिली कामयाबी तो सांस को सांस आई. लेकिन तनाव बरकरार है. दोनों सहयोगी एक दूसरे पर लगातार हमले कर रहे हैं.
कांग्रेस के अंदर भी कलह है. लोकसभा चुनाव में हार के बाद रोशन बेग के बागी तेवर हैं. कांग्रेस के नेता और पूर्व विधायक केएन रजन्ना कह चुके हैं कि उनकी पार्टी की सरकार 10 जून तक गिर जाएगी. उधर रमेश जरकीहोली और एक दूसरे विधायक ने बीजेपी नेता एसएम कृष्णा से मुलाकात की और और पार्टी से इस्तीफे की धमकी दी. सारे असंतुष्टों को शांत करने के लिए कर्नाटक मंत्रिमंडल में विस्तार पर बातचीत हो रही है. तो जो दवा दी जा रही है उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बीमारी क्या है?
लोकसभा चुनाव में हार के बाद राजस्थान के कांग्रेसी स्टेट लीडरशिप पर लगातार सवाल उठा रहे हैं. कृषि मंत्री लालचंद कटारिया इस्तीफा दे चुके हैं. हनुमानगढ़ जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष केसी विश्नोई ने सीधे-सीधे गहलोत से इस्तीफा मांग लिया. लेकिन मंगलवार को सीएम अशोक गहलोत ने सीधे प्रदेश अध्यक्ष और डिप्टी सीएम सचिन पायलट पर हमला बोला.
पिछले साल विधानसभा चुनावों के बाद गलहोत और पायलट दोनों को मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था. दोनों अब तक टकराव से इंकार करते आए थे लेकिन अब लड़ाई सतह पर आ गई है. यहां भी झगड़े का मूल सत्ता संघर्ष है.
बिहार में करारी बार के बाद गठबंधन की गांठें जगजाहिर हो गईं. जीतन राम मांझी ने तेजस्वी यादव की लीडरशिप पर सवाल उठाए. तेजस्वी पर आरजेडी के विधायक भी सवाल उठा रहे हैं. कांग्रेस गठबंधन की बैठक में नहीं गई. और इफ्तार के जरिए नई सियासत रफ्तार पकड़ रही है. आरजेडी जेडीयू को न्योता दे रही है. मतलब सत्ता के लिए साथ आईं पार्टियां चुनाव में हार के बाद अलग-अलग रास्ते जाने को आतुर हैं.
कुल मिलाकर विपक्ष में पार्टियों से लेकर नेताओं तक में एक ही पैटर्न दिख रहा है. सत्ता के लिए गठबंधन और बात नहीं बनी तो हम आपके हैं कौन? लोकसभा चुनावों के नतीजे बता चुके हैं कि पब्लिक अब इस खेल को समझ चुकी है. संदेश साफ है कि आप समान विचारधारा का ढोंग कर साथ आएंगे और चाहेंगे कि वोट मिल जाएंगे तो ऐसा अब होने वाला नहीं. जितनी जल्दी इस भ्रम से निकलेंगे, आपके लिए अच्छा रहेगा. अगर बीजेपी का विकल्प देना है तो वाकई विचारधारा के आधार पर साथ आना होगा. सत्ता मिले न मिले, मिलकर संघर्ष जारी रखना होगा.
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Published: 04 Jun 2019,11:24 PM IST