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बहुजन समाज पार्टी (BSP) और समाजवादी पार्टी (SP) की दोस्ती टूटने के बाद से उत्तर प्रदेश के सियासी समीकरण बदल गए हैं. यह दोस्ती नहीं टूटती तो 11 सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनावों की तस्वीर कुछ और होती. BSP ने लोकसभा चुनाव परिणामों की समीक्षा के बाद उपचुनाव अकेले लड़ने का ऐलान किया है. इससे प्रदेश के राजनीतिक हलकों में उथल-पुथल की संभावना बढ़ती दिख रही है.
2017 में BSP ने अकेले अपने दम पर विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन जिन 11 सीटों पर उपचुनाव होने हैं, वहां BSP कुछ खास नहीं कर पाई थी. हालांकि वर्ष 2017 में SP ने कांग्रेस के साथ मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ा था.
कानपुर की गोविंद नगर विधानसभा सीट पर वर्ष 2017 में सत्यदेव पचौरी 1 लाख 12 हजार वोटों से विजयी हुए थे. SP समर्थित कांग्रेस प्रत्याशी अंबुज शुक्ला 40 हजार 520 वोट लाकर दूसरे नंबर पर रहे थे. उन्हें 22.02 प्रतिशत वोट मिले थे. BSP प्रत्याशी निर्मल तिवारी 28 हजार 795 वोट पाकर तीसरे नंबर पर थे. अब यहां के विधायक सांसद बन गए हैं.
लखनऊ कैंट से BJP की प्रयागराज की वर्तमान सांसद रीता जोशी वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 95 हजार 402 वोट लाकर चुनाव जीती थीं. SP की अपर्णा यादव को 61 हजार 606 वोट मिले थे. BSP प्रत्याशी योगेश दीक्षित को 26 हजार 36 वोट मिले थे और 14 प्रतिशत वोट पाकर वो तीसरे नंबर पर पहुंच गए थे.
विधानसभा 2017 के चुनाव में टूंडला से एस.पी. सिंह बघेल 1 लाख 18 हजार 584 वोट लाकर चुनाव जीते थे. यहां पर BSP के राकेश बाबू 62 हजार 514 वोट लाकर दूसरे नंबर पर रहे, उन्हें 25.81 प्रतिशत वोट मिले, जबकि समाजवादी पार्टी के शिव सिंह चाक को 54 हजार 888 वोट मिले. यह सुरक्षित विधानसभा सीट है.
इसी तरह बहराइच की बलहा सीट से BJP को जीत मिली थी, जबकि सुरक्षित सीट होने के बावजूद BSP यहां 28.1 प्रतिशत मत पाकर दूसरे नंबर पर थी. जबकि SP 14.75 प्रतिशत वोट पाकर तीसरे स्थान पर रही. पश्चिमी यूपी की गंगोह विधानसभा सीट BJP ने जीती थी. दूसरे स्थान पर कांग्रेस रही जिसे 23.95 मत मिला था.
जिन 11 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होने हैं, 2017 विधानसभा चुनावों में उनमें से सात सीटों पर BJP को मिले वोट SP-BSP के वोटों से ज्यादा थे. इन 11 सीटों में से भाजपा के पास 9 सीटें थीं, जबकि एक-एक सीट SP और BSP के खाते में गई थी. SP और BSP की जीती हुई सीट को छोड़ दिया जाए तो जैदपुर और प्रतापगढ़ सीट पर ही गठबंधन के कुल वोट BJP से अधिक हैं. वर्ष 2017 में मायावती ने मुस्लिम दलित एकता का गठजोड़ बनाने का प्रयास किया था, लेकिन वह सफल नहीं हो पाया.
विश्लेषकों की मानें तो उपचुनावों में SP-BSP के अलग-अलग लड़ने से गैर भाजपाई वोटरों में भ्रम पैदा होगा, जिसका फायदा BJP को मिलेगा. दूसरी ओर पिछड़े व दलित वर्ग में BJP के प्रति बढ़ते मोह को कम कर पाना भी BSP के लिए आसान नहीं रहेगा.
उपचुनाव के लिए खाली हुई 11 में से जलालपुर सीट पर 2017 में BSP 37 प्रतिशत मत पाकर विजयी हुई थी। इस बार लोकसभा चुनाव भी वहां से जीत गई है। इस तरह एक सीट पर तो पार्टी की मजबूत नजर आ रही है। इसके अलावा 2017 में तीन सीटों पर BSP दूसरे स्थान पर रही थी। इनमें से बलहा में BSP प्रत्याशी को 57519 (28 प्रतिशत), टूंडला में 62514 (25 प्रतिशत) और इगलास में 53200 (22 प्रतिशत) वोट मिला था। इस प्रतिशत को देखें तो BSP इन चार सीटों पर लड़ाई में है।
राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि का भी कहना है कि अगर यादव वोट नहीं देते तो BSP को चार-पांच सीटों से ज्यादा नहीं मिलती। यादव का समर्थन BSP को और दलितों का समर्थन SP को भविष्य में अब मिलने वाला नहीं है। उपचुनाव में BSP अगर ठीक-ठाक प्रयास करे तो तीन से चार सीटें मिल सकती हैं। अंबेडकर नगर में फिलहाल BSP मजबूत है। इसी प्रकार वर्ष 2017 में जहां पर BSP दूसरे नंबर पर थी, वहां उसे कुछ सफलता मिल सकती है। फिलहाल उपचुनाव में BSP को अकेले बड़ी जीत मिलना मुश्किल दिख रहा है।
लोकसभा चुनावों में BSP-SP के गठबंधन से भी BJP को कोई नुकसान नहीं हुआ. वोट शेयर देखें तो साफ हो जाता है कि कि कांग्रेस भी उनके साथ आ जाती तो भी BJP को बड़ा नुकसान नहीं होता, लेकिन विधानसभा चुनाव का गणित अलग ही है. जाहिर तौर पर SP-BSP के अलग होने से BJP को फायदा होता दिख रहा है.
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Published: 07 Jun 2019,01:34 PM IST