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MP Election: पर्दे के पीछे कांग्रेस की मेहनत, 'पंजा' होगा मजबूत या खिलेगा 'कमल'?

प्रदेश में सत्ता वापसी कराने में कैसे जुटे हैं दिग्विजय और कमलनाथ मिश्रा?

विष्णुकांत तिवारी
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>MP Election 2023</p></div>
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MP Election 2023

(फोटो- Altered By Quint Hindi)

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मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव जैसे -जैसे नजदीक आ रहे हैं वैसे -वैसे कांग्रेस-BJP मैदान में एक्टिव होती दिख रहीं हैं. जहां एक तरफ BJP फ्रंट फूट पर खेल रही है, प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में रैलियां और कार्यक्रम हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस पर्दे के पीछे से सत्ता तक का रास्ता बनाने में जुटी हुई है.

हम ये आपको इसलिए बता रहे हैं क्योंकि MP Assembly Election 2023 में दोनों ही दलों के लिए चुनौतियों की कमी नहीं है.

बात करें अगर कांग्रेस की तो कांग्रेस के पास इस समय सबसे बड़ी मुसीबत संगठन में सामंजस्य और पुराने कार्यकर्ताओं को एक्टिवेट करने की है.

इसके लिए राजसभा सांसद दिग्गविजय सिंह को कमान सौंपी गई है. दिग्गविजय सिंह प्रदेश भर में दौरा कर कार्यक्रम कर रहे हैं और उनका पूरा ध्यान संगठन में जान फूंकने पर लगा हुआ है.

मंडलम और सेक्टर स्तर पर दिग्गविजय सिंह बैठकें ले रहे हैं और पार्टी का फोकस बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी देने पर है. अब तक जिला और ब्लॉक स्तर की कमेटियां थीं, लेकिन बूथ स्तर पर कई बार पार्टी के आंतरिक सर्वेक्षण में कमियां निकल कर आईं हैं, इसलिए पार्टी ने कार्यकर्ताओं को साधने और गढ़ने के लिए दिग्गविजय सिंह को जिम्मेदारी सौंपी है.

बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं के सोए हुए रवैए को दिग्गविजय सिंह ने मंडलम और सेक्टर कमेटियों की बैठक में कई बार माना है और इस पर काम करने को लेकर बातचीत की है.

सूत्रों की मानें तो बीजेपी का चुनाव लड़ने का तरीका कांग्रेस से इस मायने में बहुत आगे है. बीजेपी के पोलिंग एजेंट और बूथ कार्यकर्ता एक्टिव रहते हैं, लेकिन कांग्रेस इसमें पिछड़ती रही है और उसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा है.

सूत्रों की मानें तो कार्यकर्ताओं के बीच सर्वे भी कराए जा रहे हैं, ताकि उनकी समस्याओं और शिकायतों का तुरंत निवारण किया जा सके.

दिग्गविजय सिंह पार्टी के रूठे हुए नेताओं को मनाने में भी लगे हुए हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पार्टी के पुराने नेताओं के बीच में दिग्विजय सिंह की पैठ बेहतर है और यही कारण है कि पार्टी ने उन्हें इस काम को सौंपा है.

पार्टी के सूत्रों ने भी Quint से बातचीत के दौरान कहा कि पार्टी दिग्गविजय सिंह के मैदानी प्रभाव का फायदा उठाने में लगी हुई है.

"दिग्गविजय सिंह को प्रदेश भर का कार्यकर्ता जानता है और उन्हें मानता भी है. ऐसे में जहां जहां पर हमें ये पता चल रहा है कि हमारे कार्यकर्ता नाराज हैं या उनकी कोई शिकायत है वहां पर दिग्गी राजा स्वयं जाकर समझौता, उपाय और सामंजस्य बैठा रहे हैं. ये शायद उनसे बेहतर कोई और कर भी नहीं सकता है.
पार्टी के सूत्र
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वहीं, दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ भी चुनावी मिशन में हैं. कार्यक्रम और सभाओं में शामिल होने के अलावा अन्य छिटपुट दलों को साधने में विधायकों और उम्मीदवारों की तैयारियों में जुटे हुए हैं.

कमलनाथ के मीडिया सलाहकार पियूष बबेले ने बताया कि कमल नाथ का पहला फोकस उन 60-70 सीटों पर है जहां पर कांग्रेस लंबे से जीत नहीं पा रही है.

"इस समय उन 60- 70 सीटों पर कमलनाथ जी रैलियां कर रहे हैं जहां पर पार्टी लंबे अरसे से जीत नहीं पाई है. इसमें से लगभग आधी सीटों पर रैलियां हो चुकी हैं. इसके अलावा पार्टी में जो अन्य लोग शामिल हो रहे हैं उन के पार्टी में शामिल होने का सारा सामंजस्य भी देख रहें हैं"
पियूष बबेले, मीडिया सलाहकार, कमलनाथ

कमलनाथ इस समय पार्टी और अन्य क्षेत्रीय मगर प्रभावशाली दलों के बीच सामंजस्य बैठाने को लेकर कार्यरत हैं.

आज मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले में आष्टा विधानसभा सीट से प्रजातांत्रिक समाधान पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कमल सिंह चौहान ने कमलनाथ की उपस्थिति में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली. कमल सिंह चौहान जिला पंचायत सदस्य रहे हैं और उनके कांग्रेस में शामिल होने पर बीजेपी को मुख्यमंत्री शिवराज के गृह जिले में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है.

कमल सिंह चौहान ने जिला पंचायत अध्यक्ष चुनने में बीजेपी को समर्थन दिया था लेकिन सरकार और संगठन की बेरुखी के चलते उन्होंने अब कांग्रेस का हाथ थामा है.

वहीं दूसरी ओर जयस (जागृत आदिवासी युवा शक्ति) जो इस समय मध्यप्रदेश में आदिवासी वर्ग का एक बड़ा संगठन बनकर उभरा है उसके भी दो फाड़ होने के बाद कांग्रेस के आला नेताओं की कवायद के बाद दोबारा से संगठन एकजुट हुआ है.

ऐसे में कांग्रेस पर्दे के पीछे से और पर्दे के आगे से दोनों तरह से चुनावी तैयारियों में जुटी हुई है. राज्य के वरिष्ठ पत्रकारों और राजनीतिक विश्लेषकों का यही मानना है कि कांग्रेस अगर इसी तरह पिन पॉइंटेड फोकस पर काम करेगी तो नतीजे कांग्रेस की तरफ झुक सकते हैं.

बीजेपी भी नहीं पीछे, वर्गवार राजनीति, मोदी - शाह की जोड़ी पर जिम्मेदारी बढ़ी

हालांकि प्रदेश में बीजेपी को भी कमतर नहीं आंका जा सकता है. 18 साल से ज्यादा से बीजेपी की सरकार चल रही है और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में इस बार भी पार्टी चुनाव में पूरी ताकत झोंक रही है.

पार्टी इस बार जातिगत और वर्गवार कैटेगरी बांटकर हर वर्ग के लिए अलग से फोकस कर रही है. मुख्यमंत्री लाडली बहना योजना के तहत प्रदेश की लगभग आधी आबादी को 1000/माह देने की घोषणा को पीजेपी के लिए कारगर बताया जा रहा है.

वहीं दूसरी ओर पार्टी आदिवासियों, दलितों और समाज की अन्य जातियों पर अलग से फोकस रखे हुए है. पिछड़ा वर्ग के कई जातियों के बोर्ड और आयोग के गठन की बात मुख्यमंत्री कह चुके हैं वहीं आदिवासियों और दलितों को साधने के लिए भी पार्टी तन मन धन से जुटी हुई है.

अब देखने की बात यह है कि क्या मध्यप्रदेश की जनता आने वाले चुनाव में कांग्रेस पर भरोसा जताएगी या बीजेपी को मिलेगा आशीर्वाद साथ ही यह भी देखने वाली बात होगी कि बीजेपी के चुनावी वादे और स्कीमें कितनी कारगर होती हैं.

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