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तिनका-तिनका जोड़कर मुलायम की बनाई सपा पर संकट बना हुआ है. नेताजी को खुद उनका बेटा ही चुनौती दे रहा है. पार्टी टूटने की स्थिति देखकर नेताजी ‘मुलायम’ हो गए हैं. यही वजह है कि नेताजी ने हाल ही में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि अगले चुनाव में पार्टी की ओर से अखिलेश ही सीएम कैंडिडेट होंगे.
अब संकट पार्टी सिंबल ‘साइकिल’ पर बना हुआ है. बेटा अखिलेश झुकने के मूड में नहीं है. अगर मुलायम और अखिलेश दोनों ने साइकिल पर दावा ठोंका, तो संभव है कि चुनाव आयोग ‘साइकिल’ को फ्रीज कर दे. ऐसे में संभव है कि नेताजी एक बार फिर पलटी मारेंगे और मुलायम को पार्टी सिंबल बचाने के लिए बेटे के सामने झुकना पड़ेगा.
यूपी की राजनीति में मुलायम पहली बार साल 1977 में चमके. प्रदेश में जनता पार्टी और समाजवादियों की मिली-जुली सरकार थी. रामनरेश यादव सरकार में मुलायम पहली बार राज्य मंत्री बने. हालांकि यह सरकार ज्यादा दिन तक नहीं चली.
इसके कुछ ही दिन बाद मुलायम की राजनीतिक उठापटक का पहला नमूना देखने को मिला. मुलायम सिंह यादव ने 1980 में उस दौर के समाजवादी नेता राजनारायण का साथ छोड़कर चौधरी चरण सिंह का हाथ थाम लिया.
जनता दल (नेशनल फ्रंट) के नेता वीपी सिंह 2 दिसंबर 1989 को देश के प्रधानमंत्री बने और ठीक तीन दिन बाद 5 दिसंबर 1989 को मुलायम पहली बार यूपी के सीएम चुने गए. बाद में जनता दल के समर्थन वापस लेने की वजह से केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिर गई.
लेकिन यूपी में जनता दल का साथ छूटने के बावजूद मुलायम की गद्दी सुरक्षित रही, क्योंकि मुलायम ने मौका देखते ही पैंतरा बदला और चंद्रशेखर की समाजवादी जनता पार्टी के साथ हो लिए. लिहाजा मुलायम एक साल 181 दिनों तक कांग्रेस के समर्थन से यूपी के सीएम बने रहे. वहीं दिल्ली में समाजवादी जनता पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई और चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने.
साल 1999 में तमिलनाडु की सीएम रही जयललिता ने कांग्रेस चीफ सोनिया गांधी के कहने पर बीजेपी से समर्थन वापस ले लिया. लिहाजा, केंद्र में तेरह महीने पुरानी अटल बिहारी वाजेपयी सरकार गिर गई.
साल 1989 और 1996 में मुलायम ने लेफ्ट के साथ मिलकर केंद्र में सरकार बनवाई और साल 2008 में परमाणु करार के मुद्दे पर मुलायम ने लेफ्ट का ही विरोध कर कांग्रेस सरकार का साथ दिया. इससे पहले तक मुलायम खुद भी परमाणु करार का जमकर विरोध कर रहे थे.
साल 2009 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मुलायम ने बाबरी मस्जिद विवाद के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले बीजेपी नेता कल्याण सिंह को सपा में शामिल कर लिया. चुनाव में पार्टी को इसका खमियाजा चुकाना पड़ा और सपा 39 से 22 सीटों पर आ गई. सपा के सारे मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव हार गए.
मुलायम को जब मुस्लिम-यादव समीकरण पर संकट नजर आया, तो उन्होंने बिना देर के किए हिंदू नेता की छवि रखने वाले कल्याण सिंह को अलविदा कहकर आजम खां को गले लगा लिया.
साल 2012 में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ममता बनर्जी ने कांग्रेस कैंडिडेट प्रणब मुखर्जी का विरोध किया. ममता चाहती थी कि डॉ. एपीजे कलाम निर्विरोध राष्ट्रपति बनें. मुलायम ने भी इस मुद्दे पर ममता का साथ दिया और फिर अगले ही दिन वह पलट गए.
मुलायम ने ममता के विरोध के बावजूद प्रणब मुखर्जी को अपना समर्थन दे दिया. ममता ने इसे राजनीतिक धोखा माना और तब से ही वह मुलायम से नाराज हैं.
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Published: 12 Jan 2017,02:54 PM IST