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शुक्रवार, 24 दिसंबर को केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) ने रद्द कर दिए गए कृषि कानूनों पर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि "अगर सरकार ने अभी कदम पीछे लिए हैं, तो हम वापस आगे भी बढ़ेंगे. क्योंकि किसान भारत की रीढ़ की हड्डी हैं."
नरेन्द्र सिंह तोमर ने विवादास्पद कानूनों को रद्द करने के पीछे "कुछ लोगों को दोषी ठहराया, जिन्होंने इस कानून का विरोध किया था."
उन्होंने किसानों के एक समूह को कृषि सुधार के रास्ते में रोड़ा बनने के लिए दोषी ठहराया और कहा कि सरकार ने किसानों को कानूनों का महत्व समझाने के लिए कड़ी मेहनत की.
सरकार द्वारा कानूनों को वापस लेने के बाद विपक्ष ने आने वाले चुनावों की ओर इशारा करते हुए प्रधानमंत्री, कृषि मंत्री और सरकार के उन सभी बड़े चेहरों के सामने सवाल खड़ा किया, जो पिछले कई महीनों से कृषि कानूनों का फायदा गिनाने में लगे हुए थे.
सरकार द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाण और राजस्थान के हजारों किसानों के द्वारा पिछले साल नवंबर महीने से दिल्ली की शरहदों पर प्रदर्शन किया गया.
इस दौरान सुरक्षा किसानों ने कई तरह की मुश्किलों का सामना किया. किसानों और सुरक्षा बलों के साथ हिंसक झड़पें हुईं, जिसमें उनके सिर फोड़ने का आदेश दिया गया. इसके अलावा लखीमपुर खीरी जैसी बढ़ी घटना हुई, जहां कथित तौर पर चार किसानों को राज्य मंत्री अयय मिश्रा के बेटे द्वारा कुचला गया था.
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