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बिहार की राजनीति (Bihar Politics) में कई रोज की गहमागहमी के बाद 28 जनवरी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने महागठबंधन सरकार से इस्तीफा दे दिया. नीतीश कुमार के इस्तीफे से बिहार की राजनीति में सबकुछ बदल गया. कैबिनेट भंग हो गई. आरजेडी, जो सुबह तक सत्ता में थी वो अब सत्ता से बदेखल हो गई. लेकिन इन सबके बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा शख्स नहीं बदला.
राज्यपाल को इस्तीफा सौंपने के साथ ही नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने के दावा कर दिया. इसके बाद शाम में नीतीश कुमार ने 9वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
नीतीश कुमार के साथ बीजेपी के सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा ने डिप्टी सीएम पद की शपथ ली. इसके अलावा 6 और विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली.
कुल मिलाकर बिहार की राजनीति में मौसम कैसा भी हो, नीतीश कुमार हर स्थिति में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रहे हैं.
नीतीश कुमार ने साल 1974 में राजनीति में एंट्री ली थी. उस वक्त उन्होंने जय प्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति आंदोलन में हिस्सा लिया और 1977 तक सक्रिय रूप से जय प्रकाश नारायण की देखरेख में राजनीति के अखाड़े कूद गए.
1951 में नीतीश कुमार का जन्म पटना के बख्तियापुर में हुआ था. उन्होंने बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की है, लेकिन इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने ‘पॉलिटिकल इंजीनियरिंग’ की ओर भी रुख किया.
साल 1985 में वह पहली बार हरनौत विधानसभा सीट से विधायक बने. तब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी. साल 1989 में नीतीश जनता पार्टी से जुड़े और पहली बार सांसद बने.
साल 1996 में नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया और एनडीए का हिस्सा बन गए. 1998 से 2001 तक नीतीश अलग-अलग विभागों में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री भी रहे.
साल 2000 में नीतीश कुमार पहली बार मुख्यमंत्री बने. भले ही नीतीश कुमार को सीएम की कुर्सी सिर्फ सात दिनों के लिए मिली हो, लेकिन राज्य में उन्होंने अपनी छाप छोड़ दी थी.
साल 2003 में नीतीश कुमार केंद्र से राज्य की राजनीति में वापस लौटे. 30 अक्टूबर 2003 को शरद यादव के जनता दल और जॉर्ज फर्नांडीज के नेतृत्व वाली समता पार्टी का विलय हुआ और उसे जनता दल (यूनाइटेड) नाम दिया गया.
अगर पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के दस महीने के कार्यकाल को छोड़ दें तो 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने बिहार के सीएम को कुर्सी पर किसी को बैठने नहीं दिया. नीतीश ने साल 2013 में बीजेपी से किनारा कर लिया.
करीब 17 साल तक गठबंधन में रहने के बाद नीतीश ने ये फैसला इसलिए लिया क्योंकि वे बीजेपी की ओर से नरेंद्र मोदी को पीएम चेहरा बनाए जाने पर नाखुश थे. दरअसल उस वक्त नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार सीमित का अध्यक्ष बना दिया गया जिससे वह नाराज हो गए थे.
लेकिन सीएम नीतीश कुमार के लिए बीजेपी का साथ छोड़ना उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर गया. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश की पार्टी जेडीयू सिर्फ दो सीटों पर सिमट गई. इसमें एक सीट नालंदा की थी और दूसरी पूर्णिया की थी.
महागठबंधन को 178 सीटें मिली जबकि बीजेपी की नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन 58 सीटों पर सिमट गई. जीत के बाद नीतीश कुमार के हाथ फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी लगी और लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने. हालांकि 2 साल में ही नीतीश का 'महागठबंधन' से मोहभंग हो गया. तेजस्वी समेत लालू परिवार पर घोटाले का आरोप लगा और इसी को वजह बताते हुए नीतीश ने गठबंधन तोड़ दिया.
नीतीश ने एक बार फिर बीजेपी का हाथ थामा और 2017 में फिर से एक बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. उनके साथ बीजेपी नेता सुशील मोदी डिप्टी सीएम बने. साल 2020 का विधानसभा चुनाव बीजेपी और जेडीयू ने एक साथ लड़ा.
इस चुनाव में RJD 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जबकि बीजेपी के पास 74 सीट थे और जेडीयू के सिर्फ 43 सीटें जीत पाई थी. लेकिन जैसा कि पहले होता आया था कि नीतीश ही सीएम बनते हैं, इस बार भी आंकड़े कुछ ऐसे थे कि नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल गई.
दो साल तक बीजेपी के साथ सरकार चलाने के बाद नीतीश कुमार ने बीजेपी का एक फिर साथ छोड़ दिया और 2022 के अगस्त में तेजस्वी यादव के साथ सरकार बना ली. अभी सरकार 17 महीने ही चली थी कि एक बार फिर नीतीश कुमार ने तेजस्वी से किनारा करके बीजेपी के साथ सरकार बना ली है. और बताने की जरूरत नहीं कि सीएम की कुर्सी पर नीतीश कुमार ही हैं.
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