advertisement
हाल के कुछ बरसों में राजनीति में विकास का नारा बहुत जोर-शोर से उछाला जाता रहा है. लेकिन बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने जो राह पकड़ी है, उसे आप टिकाऊ विकास (Sustainable Development) की राजनीति कह सकते हैं. शराबबंदी इसी राजनीति की एक मजबूत कड़ी साबित हो सकती है.
रोड रोलर के नीचे चकनाचूर होती हजारों-हजार शराब की बोतलें कभी गुजरात में खूब देखी जाती थीं, पर अब बिहार में भी ऐसा हो रहा है. साफ-सुथरी सियासत के जरिए अपनी इमेज चमकाने में जुटे सीएम नीतीश ने सड़क और बिजली से आगे बढ़कर अब बिहार को सामाजिक बदलाव की राह पर ला खड़ा किया है.
इस मसले पर विस्तार से चर्चा करने से पहले शराबबंदी से प्रदेश को होने वाले राजस्व में नुकसान पर एक नजर डालते हैं:
पिछले साल 1 अप्रैल से पूर्ण शराबबंदी लागू करते वक्त नीतीश के मन में इस बात को लेकर आशंका जरूर रही होगी कि इससे रेवेन्यू में कितनी बड़ी कमी आएगी. फिर भी अपने निर्णय पर टिके रहकर उन्होंने जता दिया कि अब पीछे मुड़कर देखने का वक्त नहीं.
एक तथ्य यह है कि पहले शराब पर वैट और एक्साइज ड्यूटी से प्रदेश को करीब 5000 करोड़ मिलते थे. हालांकि मुख्यमंत्री का दावा है कि 2016-17 के दौरान का राजस्व करीब-करीब इसके पिछले वित्त वर्ष के समान ही रहा.
सरकार का दावा है कि शराब की बिक्री बंद होने के बाद दूध और इससे बने प्रोडक्ट की खपत कई गुना बढ़ गई है. इनमें लस्सी, मट्ठा, रसगुल्ला, गुलाब जामुन, पेड़ा आदि शामिल हैं. और जिन-जिन चीजों की बिक्री बढ़ने का दावा किया जा रहा है, उनकी लिस्ट काफी लंबी है:
शहद, बिस्किट, मेवा, फर्नीचर, होजियरी, रेडीमेड गारमेंट, सिलाई मशीन, हैंडीक्राफ्ट, महंगी साड़ियां, ट्रैक्टर, बाइक, ऑटो, कारें आदि
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, प्रदेश में पिछले साल अप्रैल में लागू पूर्ण शराबबंदी के बाद से अब तक:
एक रोचक तथ्य यह है कि राज्य में जब्त और पुलिस मालखाना में रखे करीब 9 लाख लीटर से अधिक शराब के चूहों द्वारा गटकने की खबरें सामने आईं. इस बारे में मुख्यमंत्री ने कहा:
तथ्य बताते हैं कि शराबबंदी से बाद से प्रदेश में हत्या, डकैती जैसे अपराधों में कमी आई है. हालांकि अपहरण के मामले कुछ बढ़े हैं.
खुद सीएम नीतीश कुमार का मानना है कि मानसिक, वैचारिक और सामाजिक परिवर्तन से बड़ी कोई चीज नहीं है. उनका कहना है कि बिहार राजनीतिक परिवर्तन का केंद्र तो पहले से रहा है, पर यहां सामाजिक आंदोलनों की कमी रही है. उन्होंने ये भी साफ जता दिया है कि प्रदेश में दहेज प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ भी जोरदार अभियान चलाया जाएगा. गंगा की सफाई भी उनके एजेंडे में टॉप पर है.
याद कीजिए, नीतीश ने कुछ अन्य पार्टियों के रुख के उलट मोदी सरकार की नोटबंदी का जोरदार समर्थन किया था. उन्होंने केंद्र पर बेनामी संपत्ति पर चोट करने के लिए दबाव भी बनाया है. जब विपक्ष के कई नेता पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांग रहे थे, तो नीतीश सेना की पीठ थपथपा रहे थे.
ऐसे में ये माना जा सकता है कि बिहार अब आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति को विराम देकर खुद को बदलने को तैयार है. भले ही भौगोलिक और आर्थिक स्थिति की वजह से वह गुजरात जैसा न बन सके, लेकिन उस जैसा बनने का इरादा तो अब साफ झलकने लगा है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 31 May 2017,04:50 PM IST