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नोटबंदी पर कमेटियों की भरमार, लेकिन मुश्किलें बरकरार

विपक्षी दलों के विरोध से निपटने के लिए सरकार हर दिन नए नियम और कमेटियों की घोषणा कर रही है. 

नीरज गुप्ता
पॉलिटिक्स
Published:
(फोटो: PTI)
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(फोटो: PTI)
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8 नवंबर को हुई नोटबंदी के बाद देशभर में फैली अफरातफरी और विपक्षी दलों के विरोध से निपटने के लिए सरकार हर दिन नए नियम और कमेटियों की घोषणा कर रही है. लेकिन बैंकों के बाहर लगी लंबी कतारें कम होती और सुनसान पड़े बाजारों में रौनक लौटती नजर नहीं आ रही.

मसले पर राजनीतिक सहमति बनाने के लिए अब केंद्र सरकार मुख्यमंत्रियों की एक सब-कमेटी बनाने की कोशिश में है. इसमें पांच राज्यों के सीएम शामिल होंगे. सूत्रों के मुताबिक, कमेटी नोटबंदी पर केंद्र के फैसले का आकलन करेगी और अपने सुझाव देगी.

देशभर की नुमाइंदगी दिखाने के लिए हिंदी हार्टलैंड के अलावा दक्षिण और पूर्वोत्तर के सीएम भी कमेटी में होंगे. इसके अलावा एनडीए के साथ विपक्षी पार्टियों को भी कमेटी में जगह दी जाएगी. लेकिन असल मामला सुविधा का है.

केंद्र चाहता है कि आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू कमेटी की अध्यक्षता करें. नायडू की पार्टी टीडीपी एनडीए का हिस्सा है. सोमवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस सिलसिले में नायडू से खुद बात की.

कमेटी में शामिल गैर एनडीए मुख्यमंत्रियों की बात करें, तो वो हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक. खास बात यह है कि दोनों ही नोटबंदी के फैसले का समर्थन कर चुके हैं. सूत्रों के मुताबिक, जेटली इस सिलसिले में दोनों से बात भी कर चुके हैं. वैसे भी नीतीश की बीजेपी से बढ़ती नजदीकियों की चर्चा आजकल सियासी गलियारों में आम है.

सरकार पुदुचेरी के मुख्यमंत्री वी नारायणसामी को भी कमेटी का हिस्‍सा बनाना चाहती है. सामी कांग्रेस पार्टी से हैं. सूत्रों के मुताबिक, सामी से संपर्क साधा जा चुका है, लेकिन फिलहाल उन्होंने और नवीन पटनायक ने पक्की रजामंदी नहीं दी है. इसके अलावा त्रिपुरा के सीएम माणिक सरकार या फिर केरल के सीएम पिनारायी विजयन की शक्ल में लेफ्ट को कमेटी में जगह मिल सकती है. बीजेपी से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम चर्चा में हैं.

वैसे तजुर्बा बताता है कि इस तरह की कमेटियां अपने नतीजों तक कम ही पहुंच पाती हैं. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि नोटबंदी और डिजिटल भुगतान के मुद्दे पर सरकार कई कमेटियां बना चुकी है.

आइए आपको बताते हैं कि आनन-फानन में बनी इन कमेटियों को आखिर करना क्या है.

अमिताभ कांत कमेटी

बदलते भारत को नगदी मुक्त बनाने के रास्ते तलाशने के लिए 25 नवंबर को नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत की अगुवाई में एक कमेटी का गठन किया गया. ये कमेटी हर तरह के लेनदेन में डिजिटल भुगतान के आसान तरीके तैयार करेगी.

सीधे प्रधानमंत्री दफ्तर से आए आदेश के बाद केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और पीयूष गोयल ने इसका खाका तैयार किया. कमेटी में इलेक्ट्राॅनिक्स और सूचना प्रद्यौगिकी सचिव अरुणा सुंदराराजन और विनिवेश सचिव नीरज गुप्ता शामिल हैं. खास बात है कि कमेटी की रिपोर्ट के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है.

अनिल काछी कमेटी

इससे एक दिन पहले 24 नवंबर को वित्तमंत्री अरुण जेटली ने तमाम बैंकों के सीईओ के साथ एक बैठक की. बैठक में जेटली ने डिजिटल पेमेंट को 'मिशन' की तर्ज पर बढ़ावा देने की बात कही. डिजिटल इकोनॉमी को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने एक टास्क फोर्स का भी गठन किया, जिसकी अगुवाई फाइनेंशियल सर्विस डिपार्टमेंट के एडिशनल सेक्रेटरी अनिल काछी करेंगे. टास्क फोर्स के जरिए ट्रेड और रिटेल को पूरी तरह डिजिटल मोड में ले जाने के रास्ते तलाशे जाएंगे.

रतन वतल कमेटी

26 अगस्त को सरकार ने नीति आयोग के प्रमुख सलाहकार और पूर्व वित्त सचिव रतन वतल की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया. 11 सदस्यों वाली ये कमेटी कार्ड और डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के रास्ते तलाशेगी और सरकार को सुझाव देगी. इन रास्तों में टैक्स में छूट या लुभावने कैश बैक शामिल हो सकते हैं. कमेटी केवाईसी के लिए एक केंद्रीय एजेंसी बनाने के मसले पर भी राय देगी. हालांकि इस कमेटी का गठन 8 नवंबर से पहले किया गया था, लेकिन इसका काम भी नोटबंदी के मकसद से ही जुड़ा है. पिछले सोमवार को ही इस कमेटी ने एक अंतरिम रिपोर्ट सरकार को सौंपी है.

विपक्ष मांगे जेपीसी

वैसे दिलचस्प बात है कि नाराज विपक्ष नोटबंदी के पीछे किसी बड़े घोटाले का आरोप लगा रहा है] जिसकी जांच के लिए संयुक्त संसदीय कमेटी (जेपीसी) की मांग की जा रही है. विपक्ष के एक नेता ने चुटकी लेते हुए कहा कि जब सरकार इतनी कमेटियां बना ही रही है, तो लगे हाथ जांच के लिए संयुक्त संसदीय कमेटी भी बना ही दे. हो सकता है कि दो हफ्ते से ठप पड़ी संसद में कुछ कामकाज हो पाए.

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