advertisement
फूलपुर लोकसभा उपचुनाव ने पूरे देश की उत्सुकता बढ़ा दी है. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ये योगी और मोदी दोनों सरकारों के लिए सबसे बड़ा टेस्ट हैं.
फूलपुर में 2014 में पहली बार बीजेपी ने जीत हासिल की थी. उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने इस सीट पर जीत हासिल की थी. इसलिए भी बीजेपी ने इस सीट को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है.
कांग्रेस, एसपी और बीएसपी तीनों इस चुनाव के जरिए अपनी मजबूती टेस्ट करना चाहते हैं. ऐसे कहा जा सकता है कि ये उपचुनाव सभी पार्टियों के लिए बड़ी परीक्षा है. एक बार फिर इस चुनाव में मुख्य तौर पर जाति कार्ड पर ही जोर है.
फूलपुर संसदीय क्षेत्र में ओबीसी की तादाद ज्यादा है और इसमें भी कुर्मी वोटरों को निर्णायक माना जाता है. इसलिए अब कुर्मी वोटरों को अपने पाले में करने की लड़ाई तेज हो गई है.
फूलपुर में कुर्मी (पटेल) वोट अगर बंटे, तो मुकाबला काफी दिलचस्प और चौंकाने वाला होगा. फायदा उठाने के लिए बीजेपी और समाजवादी पार्टी दोनों ने ही पटेल उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. लेकिन बीजेपी के लिए इस बार कांटे ज्यादा हैं क्योंकि उम्मीदवार बाहरी है.
इस ऐतिहासिक सीट पर 2014 में मोदी के तूफान में पहली बार बीजेपी कमल खिलाने में सफल रही थी. लेकिन अब इस बात को चार साल बीत चुके हैं. तूफान अब कुछ अंधड़ जैसा हो गया है, जिसमें रफ्तार कम और धूल ज्यादा है.
फूलपुर में बीजेपी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती इसलिए उसने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के उम्मीदवारों के नाम आने के बाद अपना पत्ता खोला और पटेल वोटों को ध्यान में रखते हुए बनारस के कौशलेन्द्र सिंह पटेल को प्रत्याशी बनाया.
कौशलेंद्र पटेल, मिर्जापुर जिले में चुनार के रहने वाले हैं लेकिन रहते वाराणसी में हैं. फूलपुर लोकसभा सीट के लिए बीजेपी के कई नेताओं ने पूरी ताकत लगा रखी थी. खबर है कि बीएसपी से आईं केशरी देवी पटेल को तो चुनाव की तैयारी करने के लिए कह दिया गया था. लेकिन इलाहाबादी भाजपाइयों पर चुनार का चूना लगा दिया गया.
फूलपुर में करीब तीन लाख पटेल वोटर हैं. और बंटने की संभावना सबसे ज्यादा है. कौशलेंद्र को बनारस से इंपोर्टेड कहा जा रहा है.
इलाहाबाद में सिंगरौर कुर्मियों की संख्या ज्यादा है. वो अपने को कुर्मियों को उच्च मानते हैं. ऐसे में बीजेपी उम्मीदवार को बनारस और मिर्जापुर वाले पटेल तो स्वीकार रहे हैं लेकिन इलाहाबादी नहीं.
वहीं, दूसरी तरफ अनुप्रिया पटेल की नजर इसी सीट पर थी. वो अपने पति को लड़ाना चाहती थीं. माना जा रहा है इस नाते अनुप्रिया खेमा भी सुस्त चाल चलेगा. हालांकि, बीजेपी के साथ कोइरी (कुशवाहा, मौर्या, शाक्य) वोट का पूरा साथ है और कांग्रेस के प्रत्याशी मनीष मिश्रा दम नहीं दिखा पाए तो सवर्ण वोट काफी हद तक बीजेपी के साथ ही रह जाएगा. जो फिलहाल बीजेपी से नाराज लग रहा है.
समाजवादी पार्टी के नागेंद्र पटेल जो पेशे से ठेकेदार हैं और उनकी राजनीतिक जमीन बहुत मजबूत नहीं रही है. वो कुछ महीने पहले हुए ब्लॉक प्रमुख का चुनाव तक अपने भाई को नहीं जिता पाए थे. हालांकि, इस चुनाव में हालात अलग हैं. यादव वोट पूरी तरह से साथ है जो करीब ढाई लाख है. साथ ही, समाजवादी पार्टी पटेल वोट को भी अपने खेमे में मान रही है.
वैसे तो उपचुनाव पर पार्टियां ज्यादा फोकस नहीं करती हैं. माना जाता है कि उपचुनाव आमतौर पर सत्ताधारी पार्टियों के पक्ष में ही जाता है. लेकिन फूलपुर सीट समाजवादी पार्टी के लिए अहम होगी. बीजेपी से सीट छीनने के लिए वो अपने सभी दिग्गजों को प्रचार में उतारेगी. तीन दिन पहले स्वामी प्रसाद मौर्या के भतीजे प्रमोद मौर्या को अखिलेश ने पार्टी में शामिल किया है.
प्रमोद फूलपुर से सटे प्रतापगढ़ से जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुके हैं. प्रमोद के जरिए एसपी की कोरी वोट पर नजर है. 2014 मोदी लहर में सपा फूलपुर में दूसरे नम्बर पर थी.
इस सब के बावजूद जेएन मिश्रा इलाहाबाद में कई बार विधायक का चुनाव लड़े, लेकिन कभी जीत नहीं पाए. पटेल के बाद इस सीट में ब्राह्मण वोट सबसे ज्यादा हैं और इस नजरिए से मनीष मिश्रा कुछ सवर्णों और दलितों के वोट की उम्मीद कर सकते हैं.
जातिगत समीकरण देखें तो बीजेपी का पलड़ा भारी है. बीजेपी के साथ पटेल, मौर्या, कायस्थ और कुछ हद तक सवर्ण भी हैं. इधर, अगर मुस्लिमों ने साथ दिया तो समाजवादी पार्टी भी कमजोर नहीं पड़ेगी. ऐसे में दलित वोट जिस तरफ रुख करेगा वो फूलपुर में परचम लहराएगा. हालांकि, दलित समाजवादी पार्टी से परहेज रखता है लेकिन अगर उसके सामने सिर्फ एसपी और कांग्रेस का ही विकल्प हुआ तो वो कांग्रेस पर ही मुहर लगाएगा.
क्विंट और बिटगिविंग ने मिलकर 8 महीने की रेप पीड़ित बच्ची के लिए एक क्राउडफंडिंग कैंपेन लॉन्च किया है. 28 जनवरी 2018 को बच्ची का रेप किया गया था. उसे हमने छुटकी नाम दिया है. जब घर में कोई नहीं था,तब 28 साल के चचेरे भाई ने ही छुटकी के साथ रेप किया. तीन सर्जरी के बाद छुटकी को एम्स से छुट्टी मिल गई है लेकिन उसे अभी और इलाज की जरूरत है ताकि वो पूरी तरह ठीक हो सके. छुटकी के माता-पिता की आमदनी काफी कम है, साथ ही उन्होंने काम पर जाना भी फिलहाल छोड़ रखा है ताकि उसकी देखभाल कर सकें. आप छुटकी के इलाज के खर्च और उसका आने वाला कल संवारने में मदद कर सकते हैं. आपकी छोटी मदद भी बड़ी समझिए. डोनेशन के लिए यहां क्लिक करें.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 20 Feb 2018,04:10 PM IST