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विश्व पर्यावरण दिवस के दिन यानी 5 जून को पीएम मोदी ने क्लामेट चेंज और इथेनॉल पर चर्चा की है. इससे पहले भी मोदी कई बार पर्यावरण को लेकर बहुत कुछ बोले हैं. आइए जानते हैं पिछले सात साल में मोदी सरकार ने पर्यावरण को लेकर किया. उनके वादों में क्या अमल हुआ और कितने जुमले साबित हुए.
2014 में सरकार बनने के बाद पीएम नरेन्द्र मोदी द्वारा जून में ही नमामि गंगे प्रोग्राम की शुरुआत की गई थी. इस प्रोजेक्ट के लिए केंद्र सरकार द्वारा 20 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. इस कार्यक्रम में गंगा किनारे रहने वाले लोगों के अलावा अर्बन लोकल बॉडीज और पंचायती राज संस्थानों को भी शामिल किया गया है.
इसमें मुख्य तौर पर जिन-जिन जगहों से गंगा गुजरती वहां यदि नदी दूषित है तो उसे साफ और स्वच्छ बनाने का काम किया जा रहा है. उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए सीवर मैनेजमेंट प्रोजेक्ट्स तैयार किए जा रहे हैं.
2 अक्टूबर 2014 को देशभर में स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत मोदी सरकार द्वारा की गई थी. खुद पीएम मोदी सड़कों पर झाड़ू लगाते हुए नजर आए थे. इस मिशन का मुख्य उद्देश्य अपने आस-पास सफाई को बनाए रखना है. उसके बाद इस मिशन में ग्रामीण स्वच्छ भारत मिशन और बाल स्वच्छता अभियान जुड़ा.
पीएम बनने से पहले 2013 में गुजरात के सीएम रहते हुए नरेन्द्र मोदी ने एक भाषाण में कहा था कि "पहले शौचालय फिर देवालय" और 2014 में केंद्र की सत्ता संभालने के बाद मोदी सरकार ने शौचालय बनाने का काम तेजी से किया है. सरकार 2030 तक सभी को शौचालय उपलब्ध कराने की दिशा में काम कर रही है.
मोदी सरकार का दावा है उसने 2 अक्टूबर 2014 से 2019 तक 9 करोड़ शौचालयों का निर्माण करवाया है.
जून 2017 में ग्रीन स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम मोदी सरकार द्वारा शुरू किया गया था. इसका लक्ष्य तीन वर्षों में पर्यावरण और वन क्षेत्रों में 5 लाख 50 हजार से अधिक लोगों को प्रशिक्षित करना था. इस कार्यक्रम का उद्देश्य पर्यावरण के संरक्षण के लिए कुशल कार्यबल की बढ़ती मांग को पूरा करना है.
इस बिल को लेकर लंबे समय से बात चल रही थी, लेकिन मई 2016 को इसे मोदी सरकार द्वारा पास करवा लिया गया. इस बिल के जरिए दावा किया गया है कि जंगल की जमीन का सही तरीके से इस्तेमाल किया जाएगा. वहीं इससे आदिवासियों को परेशान करने की रिपोर्ट्स भी सामने आई हैं. आदिवासियों का कहना है कि इससे उन्हें मिले हुए विशेष अधिकार The Scheduled Tribes and Other Traditional Forest Dwellers (Recognition of Forest Rights) Act, 2006 का उल्लंघन हो रहा है. बता दें कि 2006 के इस एक्ट में आदिवासियों को कई तरह के अधिकार दिए गए हैं.
जहां एक ओर मोदी कार्यकाल के कामों को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं वहीं अगर रैंकिंग की बात करें तो स्थिति उलट है.
Environmental Performance Index में दुनियाभर के देशों की पर्यवरणीय रैंकिंग को दर्शाया जाता है.
एयर क्वॉलिटी इंडेक्स की बात करें तों iqair.com के मुताबिक 2020 में सबसे खराब एयर क्वालिटी वाले मुल्कों में भारत तीसरे स्थान पर है. भारत से आगे पाकिस्तान और बांग्लादेश हैं.
Environmental Justice Atlas डेटाबेस के मुताबिक भारत में पर्यावरण संघर्ष के मुद्दे काफी ज्यादा है. आंकड़ों के मुताबिक भारत में सबसे ज्यादा संदिग्ध मामले हैं. 2017 में भारत में रिकॉर्ड 271 मामले दर्ज किए गए थे.
2018 में पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि पीएम नरेन्द्र मोदी सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और खुद को पर्यावरण संरक्षण के चैंपियन के तौर पर पेश करते हैं, लेकिन जब फैसला लेने का वक्त आता है तो कुछ नहीं करते. जयराम रमेश ने यह भी कहा था कि सरकार पर्यावरण से जुड़े कानूनों एवं मंत्रालय को कमजोर करने में लगी है.
उन्होंने दावा किया था कि वन संरक्षण कानून को कमजोर किया जा रहा है. वन का निजीकरण हो रहा है. तटवर्ती इलाकों के लिए तटीय नियमन क्षेत्र का कानून बना, लेकिन इसे भी कमजोर किया जा रहा है. इसके साथ ही संस्थाओं को भी कमजोर किया जा रहा है.
गौरतलब है कि पीएम मोदी को संयुक्त राष्ट्र का चैंपियंस ऑफ द अर्थ अवॉर्ड और एनुअल इंटरनेशनल एनर्जी कॉन्फ्रेंस में CERAWeek ग्लोबल एनर्जी और एनवायरमेंटल लीडरशिप अवॉर्ड दिया गया जा चुका है.
26 जुलाई 2019 को लोकसभा में पर्यावरण राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो ने बताया था कि साल 2014 से 2019 के बीच पर्यावरण मंत्रालय ने विकास कार्यों के लिए 1.09 करोड़ पेड़ काटने की अनुमति दी थी. तब विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने कहा है कि मोदी सरकार पेड़ कटवा कर देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है.
सबसे ज्यादा साल 2018-19 में 26.91 लाख पेड़ काटने की इजाजत दी गई थी. वहीं बाबुल सुप्रियो ने कहा था कि जंगल में आग लगने की वजह से नष्ट हुए पेड़ों की जानकारी मंत्रालय द्वारा नहीं रखी जाती है.
सरकार द्वारा सदन में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक साल 2014-15 में 23.30 लाख, साल 2015-16 में 16.90 लाख, साल 2016-17 में 17.01 लाख और साल 2017-18 में 25.50 लाख पेड़ों को काटने की अनुमति पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दी गई थी.
न्यूज क्लिक की रिपोर्ट के अनुसार 22 मार्च 2021 को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अतिरिक्त चीफ सेक्रेटरी (फॉरेस्ट) / प्रिंसिपल सेक्रेटरी (फॉरेस्ट) को लिखे एक पत्र में, पर्यावरण मंत्रालय ने कहा, "राज्य सरकार/केंद्र शासित प्रदेश का प्रशासन स्वीकृति दिए जाने के बाद किसी तरह अतिरिक्त शर्तें लागू नहीं कर सकते हैं."
न्यूज क्लिक ने लिखा है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार वन संरक्षण अधिनियम, 1980 से छेड़छाड़ कर वन मामलों में राज्य सरकारों के हस्तक्षेप को सीमित करने की तैयारी में लगी है.
विशेषज्ञों का मानना है वन नष्टीकरण को रोकने वाले कानूनों से छेड़छाड़ करने की हालिया घटनाओं की वजह से केंद्र की वन भूमि का निजीकरण करने की मंशा का पर्दाफाश हो गया है.
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