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बुधवार को नवीन पटनायक ने एक बार फिर ओडिशा के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. पटनायक ऐसे नेता हैं, जो अपनी जिंदगी के शुरुआती 50 सालों में राजनीति से दूर रहे. मगर जब वह राजनीति में उतरे तो इस तरह उतरे कि उन्हें आज तक कोई मात नहीं दे पाया.
पिछली बार से तेज उठी मोदी लहर में भी नवीन ने अपने राजनीतिक किले को बचाकर रखा है. इसी का नतीजा है कि 73 साल के नवीन लगातार पांचवीं बार ओडिशा के मुख्यमंत्री बने हैं.
नवीन पटनायक राजनीति के ऐसे माहिर खिलाड़ी हैं, जो ऊपर से भले ही शांत दिखते हों, मगर उन्हें अपने विरोधियों के हर वार का जवाब देना अच्छी तरह से आता है. एक समय ऐसा भी था, जब नवीन का राजनीति में आने का कोई इरादा नहीं था.
जवानी के दिनों में जब नवीन पटनायक राजनीति से दूर थे, तब वो लुटियन दिल्ली के ‘कॉकटेल सर्किट’ में अपना ज्यादातर वक्त बिताया करते थे.
अप्रैल 1997 में जब नवीन के पिता का निधन हो गया तो उनकी जिंदगी एकदम से बदल गई, इसके बाद पिता की विरासत संभालने के लिए नवीन राजनीति में उतरे. उसी साल वह अपने पिता की लोकसभा सीट अस्का का उपचुनाव जीतकर संसद पहुंचे. उन्होंने दिसंबर 1997 में बीजू जनता दल (बीजेडी) बनाया और वह खुद उसके अध्यक्ष बने.
नवीन पटनायक 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में भी अस्का से सांसद चुने गए. इसके बाद बीजेपी-बीजेडी गठजोड़ ने जब साल 2000 में ओडिशा के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की तो नवीन पटनायक पहली बार वहां के मुख्यमंत्री बने. फिर ओडिशा की राजनीति में नवीन पटनायक ऐसे जमे कि उनका कोई भी विरोधी उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने में सफल नहीं हुआ.
जिस बीजेडी को 2004 के ओडिशा विधानसभा चुनाव में 147 सीटों में सिर्फ 61 सीटें मिली थीं, उसे 2009 में 103 सीटें मिलीं. 2014 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेडी ने दमदार प्रदर्शन किया और उसे ओडिशा की 21 में से 14 मिलीं.
नवीन पटनायक ने कई राजनीतिक तूफान झेले हैं, जिनमें 2012 में उनकी ही पार्टी के नेताओं की तरफ से 'तख्तापलट' की कोशिश भी शामिल थी. उस दौरान नवीन पटनायक देश से बाहर थे.
2014 की मोदी लहर में नवीन पटनायक ना सिर्फ अडिग खड़े रहे, बल्कि उनकी छवि के चलते बीजेडी ने पहले से शानदार प्रदर्शन किया. उस साल बीजेडी ने ओडिशा में 117 विधानसभा सीटें और 20 लोकसभा सीटें जीती थीं.
अक्सर नरम मुस्कान के साथ दिखने वाले नवीन पटनायक राजनीति के सख्त धुरंधर माने जाते हैं. उन्होंने विजय महापात्रा, प्यारे मोहन महापात्रा और अपने करीबी सहयोगी बैजयंत पांडा और दामोदर राउत जैसे बागियों को जरा भी नहीं बख्शा.
नवीन ऐसे राजनेता हैं, जो पिछले कुछ समय में बीजेपी और कांग्रेस दोनों मुख्य राष्ट्रीय पार्टियों से बराबर की दूरी पर दिखे हैं. हालांकि उनकी पार्टी ने हाल ही में कहा था कि ओडिशा को विशेष दर्जा देने सहित जो भी राज्य की परेशानियों को समझेगा, पार्टी उसका समर्थन करेगी. इस दौरान पार्टी ने एनडीए सरकार को समर्थन देने के भी संकेत दिए थे.
कई किताबें लिख चुके नवीन ने इस बार भी विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन करके ओडिशा के राजनीतिक इतिहास का एक नया अध्याय लिख डाला है, जिसके महानायक वह खुद हैं. पटनायक का सामना चिटफंड घोटाले से लेकर खनन घोटाले समेत कई विवादों से हुआ, मगर ओडिशा की जनता के बीच आज भी उनकी छवि साफ मानी जाती है. नवीन की इस छवि का ही असर है कि जब देश के कई हिस्सों में जनता ने नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट दिया, उस वक्त भी ओडिशा की जनता ने नवीन पटनायक को ऊपर रखा. आज नवीन पटनायक देश के उन गिने चुने नेताओं में से एक हैं, जिन्हें रीजनल पावर कहा जाता है.
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Published: 29 May 2019,03:55 PM IST