असहिष्णुता हमारी राष्ट्रीय पहचान धूमिल कर देगी : प्रणब
भारतीय समाज में काफी विविधता. इसका राष्ट्रवाद किसी एक भाषा, धर्म या क्षेत्र तक सीमित नहीं
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आरएसएस के कार्यक्रम में प्रणब मुखर्जी ने विविधता और राष्ट्रीयता पर जोर दिया
फोटो - ट्विटर
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पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आरएसएस को उसके मंच से देशभक्ति, विविधता और सेक्यूलिरज्म का पाठ पढ़ाया. पूर्व राष्ट्रपति ने अपने इस भाषण में संघ को देश में बढ़ती असहिष्णुता से आगाह किया और कहा कि देश में सार्वजनिक विमर्श को डर और हिंसा से मुक्त होना चाहिए.
उन्होंने कहा कि भारत एक महान परंपरा वाला उदार और सहिष्णु देश और हमें कोशिश करनी होगी कि इसकी यह पहचान बनी रहे. प्रणब का संघ के मंच पर जाना भारी राजनीतिक बहस का विषय बन गया था. लेकिन उन्होंने अपने संतुलित भाषण में एक देश के तौर पर भारत की धर्मनरपेक्ष संस्कृति और विरासत की याद दिलाई. यहां पेश है उनके भाषण की दस बड़ी बातें.
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मैं इस कार्यक्रम में देशभक्ति की बात करने आया हूं. भारत के बारे में बात करने आया हूं. देश के प्रति निष्ठा ही देशभक्ति है. भारत के दरवाजे सभी के लिए खुले हुए हैं. भारत यूरोप और अन्य दुनिया से पहले ही एक देश था. विविधता ही भारत की ताकत है. असहिष्णुता से हमारी राष्ट्रीय पहचान धूमिल होती है.
धर्म, क्षेत्र नफरत और अहिष्णुता से हमारी पहचान कमजोर पड़ने का खतरा है. विविधता हमारे समाज की पहचान है. राष्ट्रीय पहचान और भारतीय राष्ट्रवाद सार्वभौमिकता और सह-अस्तित्व से पैदा हुआ है. एकतरफा सोच से हम ज्यादा आगे नहीं बढ़ सकते.
भारत में हमें सार्वजनिक विमर्श को सभी तरह के डर और हिंसा से मुक्त रखना होगा. भारतीय समाज में काफी विविधता रही है और इसका राष्ट्रवाद किसी एक भाषा, धर्म या क्षेत्र तक सीमित नहीं है. हम बहस करते हैं, संवाद जरूरी है. समस्याओं के समाधान की समझ बातचीत से ही विकसित होगी.
गांधी जी ने कहा था कि भारत का राष्ट्रवाद न तो विशिष्ट है और न ही आक्रामक और विनाशक. नेहरू जी ने अपनी किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया में इसी राष्ट्रवाद का जिक्र किया है. उन्होंने भारत केसंदर्भ में सेक्यूरलिज्म के महत्व के बारे में लिखा है.
इस देश में एक अरब 30 करोड़ लोग रहते हैं और 122 भाषाओं और 1600 बोलियों में बात करते हैं.सात प्रमुख धर्मों का पालन करते हैं और तीन एथनिक समूहों से हैं. वह एक सिस्टम, एक झंडे तले और एक पहचान यानी भारतीयता के साथ रहते हैं. विविधता भारतीय समाज में ही निहित.
हमें गरीबी, बीमारी और वंचना के खिलाफ लड़ाई लड़ने की जरूरत है ताकि हमारा राष्ट्रवाद बरकरार रहे. राष्ट्र का लक्ष्य लोगों को बीमारी, गरीबी और वंचना से लड़ने केलिए प्रेरित करना है. एक समृद्ध देश के लिए हमें अपनी कमजोरियों से लड़ना होगा.
हमारा समाज शुरू से खुला रहा है. सिल्क और स्पाइस रूट जैसे माध्यमों से संस्कृति, विचारों सबका आदान-प्रदान हुआ. हिंदुत्व के प्रभाव वाला बौध धर्म सेंट्रल एशिया, चीन तक पहुंचा. मेगस्थनीज, फाहयान जैसे विदेशी यात्री ने भारत का वर्णन किया है. प्राचीन भारत के प्रशासन और बढ़िया इन्फ्रास्ट्रक्चर की तारीफ की. एजुकेशन सिस्टम मजबूत था. तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय थे, जहां दुनिया भर से लोग ज्ञान अर्जित करने आते थे.
देश में हर दिन हिंसा बढ़ रही है. हिंसा अंधकार का रूप है. हमारी मातृमूभि शांति, एकता, और खुशहाली की मांग कर रही है. आधुनिक भारत का निर्माण अलग-अलग भारतीय नेताओं के विचारों की बुनियाद पर हुआ है. यह किसी नस्ल या धर्म से बंधे नहीं हैं.
देश की अर्थव्यवस्था तो तेजी से बढ़ रही है लेकिन नागरिकों को खुशी नहीं मिल रही है. हम हैपीनेस रैंकिंग में 133वें नंबर पर हैं. हमे देश में समृद्धि के लिए नए विचारों के साथ काम करना होगा. भारतीय खुशहाल और समृद्ध बनें यह कोशिश करनी होगी.
17वीं सदी में वेस्टफेलिया के समझौते के बाद अस्तित्व में आए यूरोपीय राज्यों से भी प्राचीन हमारा राष्ट्रवाद है. यूरोपीय विचारों से अलग भारत का राष्ट्रवाद वसुधैव कुटुंबकम पर आधारित है. हम पूरी दुनिया को एक परिवार की तरह देखते हैं.