मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Politics Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019यूपी चुनाव 2022: पूर्वांचल जिसका-प्रदेश उसका, समझिए क्या हैं यहां वोट का गणित?

यूपी चुनाव 2022: पूर्वांचल जिसका-प्रदेश उसका, समझिए क्या हैं यहां वोट का गणित?

पूर्वांचल में बीजेपी के उदय और कांग्रेस के पतन की कहानी. यहां एसपी-बीएसपी में से कौन किंग?

विकास कुमार
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>purvanchal&nbsp;election analysis&nbsp;</p></div>
i

purvanchal election analysis 

quint hindi

advertisement

पीएम मोदी वाराणसी से सांसद हैं. सीएम योगी गोरखपुर से आते हैं. दोनों जगहें पूर्वांचल में हैं. ये संयोग नहीं बल्कि एक सधा हुआ प्रयोग है. पूर्वांचल से चुनाव लड़ना और जीतना पिछड़ों और दलितों में पैठ का परसेप्शन बनाता है. साल 2014-2017 और 2019 में बीजेपी को भारी जीत मिली, उसमें इस परसेप्शन का बड़ा खेल था. गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव ने बीजेपी को चुना. ऐसे में समझते हैं कि पूर्वांचल किसका रहा? 3 लोकसभा-2 विधानसभा के नतीजों के जरिए पूर्वांचल से कांग्रेस के गायब होने और बीजेपी के उत्थान की कहानी. एसपी-बीएसपी में किसका दबदबा?

पूर्वांचल के 18 जिलों में 107 विधानसभा सीटें हैं

उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से को पूर्वांचल कहते हैं. इसमें 18 जिले और 107 विधानसभा सीटें हैं. सबसे ज्यादा सीटों वाले जिलों में पहला नाम आजमगढ़ का है, जहां से अखिलेश यादव सांसद हैं. यहां 10 विधानसभा सीटें हैं. फिर पड़ोसी जिला जौनपुर और गोरखपुर है. यहां 9-9 विधानसभा सीटें हैं. पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में 8 विधानसभा सीट है. ग्राफ के जरिए सीटों की संख्या समझिए फिर पूर्वांचल में बीजेपी के उदय और कांग्रेस के पतन की कहानी बताते हैं.

पूर्वांचल में विधानसभा की सीटें

Quint hindi

पूर्वांचल में विधानसभा की सीटों का गणित

Quint hindi

साल 2014 से पहले पूर्वांचल में बीजेपी और कांग्रेस की हालत लगभग एक जैसी थी. लेकिन मोदी लहर के बाद बीजेपी का तेजी से उदय हुआ और कांग्रेस का पतन. वजह थी कि बीजेपी ने अपनी धर्मवादी राजनीति में पिछड़े और दलितों को जोड़ना शुरू किया. पूर्वांचल में पिछड़े-दलितों की ही राजनीति होती है. वहीं एसपी और बीएसपी अपना अस्तित्व बनाए रखने में सफल रहे. 2 विधानसभा चुनाव के नतीजों के जरिए समझिए.

BJP की जो हालत 2012 में थी, SP की वही 2017 में हो गई

पिछले दो विधानसभा चुनावों के नतीजों को देखें तो पूर्वांचल में एसपी की जो ताकत साल 2012 में थी. वह साल 2017 तक आते-आते बीजेपी के पास चली जाती है. इस क्षेत्र में एसपी की वह हालत होती है जो 5 साल पहले साल 2012 में बीजेपी की थी. इसे आंकड़ों से समझते हैं. साल 2012 में एसपी को पूर्वांचल में 107 में से 62 सीटों पर जीत मिली. बीजेपी के पास 12 सीट आई. वहीं साल 2017 में एसपी की सीट घटकर 13 हो गई और बीजेपी 71 सीट जीत गई.

पूर्वांचल में विधानसभा चुनाव 2012 में सीटों पर रिजल्ट

Quint hindi

BSP को ज्यादा फर्क नहीं पड़ा-कांग्रेस खत्म जैसी हो गई

पिछले दो विधानसभा के चुनाव बताते हैं कि पूर्वांचल में मोदी लहर का बीएसपी की सीटों पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ा. साल 2012 में बीएसपी को 16 सीट मिली थी. साल 2017 में 5 सीटों का नुकसान हुआ और 11 सीट मिली. लेकिन कांग्रेस तो खत्म जैसी हो गई. कांग्रेस को पूर्वांचल में साल 2012 में 9 सीट मिली. लेकिन 2017 के चुनाव में सिर्फ 1 सीट.

2014 के बाद कौमी एकता दल और पीस पार्टी जैसी पार्टियों का संकट बढ़ गया. साल 2012 में कौमी एकता दल ने 2, पीस पार्टी ने 2 और 3 निर्दलीय उम्मीदवार जीते. अपना दल को 1 सीट मिली. लेकिन साल 2017 में पूर्वांचल में निर्बल इंडिया से 1 और 1 निर्दलीय उम्मीदवार को जीत मिली.

पूर्वांचल में साल 2017 के विधानसभा चुनाव में कौन पार्टी कितनी सीट जीती.

quint hindi

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

लोकसभा चुनाव: पूर्वांचल में दो बार खाता नहीं खोल पाई कांग्रेस

लोकसभा के आंकड़े बताते हैं कि पूर्वांचल में जो बीएसपी 13 साल पहले सबसे ज्यादा ताकतवर थी. वह मोदी लहर में एक भी सीट नहीं जीत पाई, लेकिन साल 2019 में वापसी की और 18 में से 4 सीटों पर जीत हासिल की. वहीं एसपी जो साल 2009 में 5 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर थी. वह 2014 और 2019 के चुनाव में 1-1 सीट ही जीती.

लोकसभा के नतीजे बताते हैं कि पूर्वांचल में जो कांग्रेस साल 2009 में बीजेपी के बराबर थी. वह साल 2014 और 2019 में खाता भी नहीं खोल पाई. बीजेपी की बात करें तो साल 2014 में सबसे ज्यादा 16 सीटों पर जीत हासिल किया, लेकिन 2019 में मोदी का प्रभाव कम हुआ और 18 में से 11 सीट ही जीत पाई.

पूर्वांचल में लोकसभा चुनाव 2009, 2014 और 2019 का रिजल्ट

quint hindi

ऊपर दिए गए आंकड़ों से तीन बातें साफ हो जाती हैं. पहली, पूर्वांचल में 2014 के बाद बीजेपी का प्रभाव कम हुआ. दूसरा, विधानसभा चुनावों में मायावती का वोटर उन्हीं के पास रहा. बहुत ज्यादा इधर-उधर नहीं हुआ. तीसरा, अखिलेश की एसपी से गैर यादव ओबीसी छिटका.

सवाल उठता है कि आखिर एसपी से गैर यादव ओबीसी और बीएसपी से गैर जाटव दूर क्यों हुआ? वजह साफ है. 2014 के चुनाव में बीजेपी ने दो बातें प्रचारित की. पहली एसपी यादवों की पार्टी है. एक बिरादरी का ही प्रभुत्व है. आयोग में यादवों की भर्ती का मुद्दा भी उठाया गया. इससे एक मैसेज गया कि अखिलेश की सरकार होने के बाद भी गैर यादव ओबीसी का भला नहीं हो रहा.इसी का फायदा उठाकर बीजेपी ने उन्हें राजनीतिक संरक्षण दिया.

मायावती की पार्टी बीएसपी को लेकर परसेप्शन बनाया गया कि इसमें गैर जाटव की सुनवाई नहीं होती. उनकी पूछ नहीं है. मायावती भी एक्टिव नहीं दिखीं. मायावती का जाटव वोट तो उनके साथ रहा, लेकिन गैर जाटव वोटों को स्थानीय पार्टियों और कुछ नेताओं को बीजेपी में शामिल कराकर उन वोटों में सेंधमारी की गई. इन्हीं की बदौलत बीजेपी का पूर्वांचल में उदय हुआ.

सीएसडीएस के मुताबिक, 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को ब्राह्मण के 82%, राजपूत के 89%, वैश्य के 70%, जाट के 91%, अन्य अपर कास्ट का 84%, कुर्मी-कोइरी का 80%, अन्य ओबीसी का 72%, अन्य एससी का 48% वोट मिला. सिर्फ जाटव और मुस्लिम वोट कम मिले थे. 17% जाटव और 8% मुस्लिम वोट मिले.

अब बात कर लेते हैं अबकी बार के चुनाव की. पूर्वांचल में यादव वोटर के अलावा कुर्मी, कोइरी, राजभर, कुशवाहा और निषाद संख्या ज्यादा है. ये चुनाव को प्रभावित करने की ताकत रखते हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य बीजेपी से एसपी में आ चुके हैं. पिछले चुनावों में केशव प्रसाद मौर्य और स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे ओबीसी चेहरों की वजह से बीजेपी गैर यादव ओबीसी को अपने साथ जोड़ पाई. अबकी बार मामला उलट है. स्वामी प्रसाद मौर्य का पूर्वांचल के कई जिलों में प्रभाव है. ओपी राजभर भी बीजेपी से एसपी में आ चुके हैं. ऐसे में पूर्वांचल में गैर यादव वोटर बीजेपी से टूट सकता है. पूर्वांचल में ये जातीय समीकरण विकास की राजनीति पर हावी पड़ता है. इसे एक उदाहरण से समझिए.

पूर्वांचल एक्सप्रेसवे जैसे विकास के मुद्दे चुनाव से गायब क्यों हैं?

चुनाव की तारीखों के ऐलान से कुछ दिनों पहले पीएम मोदी ने पूर्वांचल एक्सप्रेसवे का उद्घाटन किया. एक इवेंट की तरह कवरेज हुई. पूर्वांचल एक्सप्रेस 341 किमी. लंबा है. ये 9 जिलों लखनऊ, बाराबंकी, अमेठी, अयोध्या, आंबेडकर नगर, सुल्तानपुर, मऊ, आजमगढ़ और गाजीपुर से गुजरता है. शुरू में तो बीजेपी ने इसे खूब प्रचारित किया, लेकिन जैसे ही स्वामी प्रसाद जैसे नेता उनसे टूटने लगे, तब से उनके भाषणों में पूर्वांचल एक्सप्रेस का जिक्र कम ही मिलेगा. उनकी भाषा बदल गई और एसपी को गुंडों की पार्टी, अखिलेश के परिवार में टूट जैसे मुद्दों सुनाई देने लगे. आरपीएन सिंह जैसे ओबीसी चेहरे को भी पार्टी ज्वाइन कराई. शायद ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि पूर्वांचल में चुनाव लड़ने वाली पार्टियों को पता है कि यहां विकास की रफ्तार से ज्यादा जातियों का जाल मायने रखता है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT