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याद कीजिए थ्री इडियट्स फिल्म का वो डॉयलाग, जब दोस्त फेल हो जाए तो दुख होता है, लेकिन अगर टॉप कर जाए, तो ज्यादा दुख होता है. कुछ ऐसा ही रवैया इस समय एसपी-बीएसपी का कांग्रेस के साथ है.
2014 लोकसभा के बाद हाशिये पर आई एसपी-बीएसपी और कांग्रेस पूरी तरह गठबंधन के मूड में थे. इसे बनाने के लिए अखिलेश ने सबसे ज्यादा सक्रियता दिखाई, लेकिन समझौते की धुरी कांग्रेस को ज्यादा ही 'दीन-हीन' समझा गया.
हालांकि तीनों राज्यों में कांग्रेस को अगर जीत न मिलती, तो शायद पुराने समझौते में जो भी मिल रहा था, वहीं ज्यादा होता. लेकिन अब सूरत पूरी तरह बदल गई है.
कांग्रेस की जीत पर मायावती ने जो कहा, उस पर गौर कीजिए:
मायावती का ये बयान हालिया विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के तुरंत बाद आया था. इससे आंदाजा लगाया जा सकता है कि बीजेपी को हराने वाली कांग्रेस की जीत से बीएसपी कितनी खुश है.
गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा उपचुनावों में बीजेपी की हार के बाद एसपी-बीएसपी अप्रत्याशित तरीके से नजदीक आई. वैसे जीत भी चमत्कारी थी. लिहाजा एसपी-बीएसपी के टूट रहे मनोबल को मजबूती मिली और एक-दूसरे के जानी दुश्मन, बीजेपी को खदेड़ने के लिए साथ लड़ने का संकेत देने लगे.
मायावती ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अजित जोगी से गठबंधन कर कांग्रेस को नजरअंदाज किया, लेकिन इन सबकी परवाह किये बगैर राहुल गांधी ने राजनीतिक परिपक्वता दिखायी और शान्त रहे. नतीजा सामने है.
तीनों राज्यों में कांग्रेस की जीत ने उसकी बारगेनिंग पावर बढ़ा दी है. यह समझना होगा कि 2014 आम चुनाव में 44 सीटों में सिमटने के बाद भी बीजेपी के खिलाफ तैयार हो रहे गठबंधन की धुरी के तौर पर कांग्रेस के अलावा दूसरा कोई विकल्प सामने नहीं आया था. अब माहौल कांग्रेस के पक्ष में रुख करता दिख भी रहा है. लिहाजा कांग्रेस सीटों के बटवारे में पिछलग्गू बनने वाली नहीं है.
ऐसे में महागठबंधन में एसपी-बीएसपी कैसे फिट बैठेगी, जिसे लीड अब कांग्रेस, यानी राहुल गांधी करेंगे. गठबंधन की गांठें किसके लिए, कितनी खोलनी और किसके लिए कितनी बंद करनी है, ये भी कांग्रेस के ही हाथ में ही होगा.
फ्लैश बैक में चलते हैं. याद कीजिए 2009 का आम चुनाव:
आपको यह भी याद होगा कि ये वही राहुल गांधी हैं, जिन्होंने बिहार में लालू का साथ इसलिए छोड़ दिया था, क्योंकि गठबंधन में लालू कांग्रेस को कुछ इसी तरह, गिनती की 5-6 सीटें दे रहे थे. लालू भी कांग्रेस को 2004 के चश्मे से देख रहे थे. तब कांग्रेस ने 145 और बीजेपी ने 138 सीटें पाई थीं. बीजेपी से महज सात सीटें ज्यादा पाने के बाद भी यूपीए की सरकार मजबूती से चली.
कांग्रेस के एक सीनियर लीडर ने बताया, ''यूपी में एसपी-बीएसपी ने हमें काफी कम सीटें ऑफर की थीं. जितनी सीटें वो दे रहे रहे थे, उतनी तो हम जीतते आ रहे हैं. सहयोगी दल हमारा आकलन 2014 की सीटों से कर रहे हैं. ऐसे में बीएसपी को तो एक भी सीट नहीं मिली है और एसपी भी सिर्फ पांच सीट पा सकी है. गठबंधन में हमारी उपेक्षा की जा रही है.''
उम्मीद तो न के बराबर है, फिर भी मान लीजिये कि कांग्रेस के बढ़ते कद को देखते हुए एसपी-बीएसपी सीटों को बराबरी में भी बांटें, तो कांग्रेस को लड़ने के लिए 25-26 सीटें मिलेंगी. लेकिन यह जरूरी नहीं कि वो सभी सीटें जीत ही जाये. यूपी में कांग्रेस का आधार पिछले तीन दशकों से डावांडोल है. फिर भी 2014 को छोड़ दें, तो कांग्रेस 9 सीटों से नीचे कभी नहीं गई है.
हालांकि कांग्रेस को राजनीति तो पूरे देश की करनी है, लिहाजा स्थानीय वर्चस्व वाली पार्टियों से तोल-मोल तो होगा ही. उसका फोकस बीजेपी को हराना है, न कि क्षेत्रीय पार्टियों से लड़ाई मोल लेना. साथ ही कांग्रेस यह भी जानती है कि यूपी में अगर कांग्रेस और एसपी-बीएसपी दोनों अलग-अलग लड़ते हैं, तो भी इसका बीजेपी को कोई फायदा नहीं होने वाला है.
दूसरी बड़ी बात, एसपी-बीएसपी दोनों को अगर यूपी में राजनीति में बने रहना है, तो वे मुसलमानों को नाराज नहीं करेंगे. लिहाजा सीटें ये कितनी भी पा जाएं, समर्थन तो गैर बीजेपी गठबंधन को ही देना है. ऐसे में अब यूपी में प्री-पोल एलांयस से ज्यादा पोस्ट-पोल एलांयस के आसार भी बन सकते हैं.
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