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यूपी के जालौन जिले के गड़हर गांव में घुसते ही एक घर से आती रोने-बिलखने की दर्दनाक आवाजें कान में सीसे की तरह घुलती हैं. ये किसान वीरेंद्र सिंह घर है, जहां 1 सितंबर, 2016 को उठी आग की लपटों ने पूरे परिवार का सुख-चैन जला डाला.
इसी दिन वीरेंद्र की सत्रह साल की बेटी शालिनी ने खुद को आग लगाकर आत्महत्या की थी. वजह ये कि वीरेंद्र पर सत्तर हजार रुपये का कर्ज है और शालिनी को लगता था कि उसकी शादी पहले से उधार में फंसे माता-पिता का बोझ और बढ़ा देगी.
हम थोड़ा और आगे बढ़े, तो एक घर के दरवाजे पर सूखे मटर बीनती सरोज देवी नजर आईं. घर में पसरा मातम खुद-ब-खुद किसी त्रासदी की कहानी बयान कर रहा था. पूछने पर पता लगा कि सरोज देवी के पति छक्की लाल ने करीब छह महीने पहले अपनी जान दे दी थी.
महज साढ़े चार बीघे जमीन पर मटर और गेहूं की खेती रहे छक्की लाल की रबी की पूरी फसल सूखे ने बर्बाद कर दी. छक्की लाल पर एक लाख रुपये का कर्ज था. इसी साल मार्च महीने में उन्होंने अपने ही खेत में लगे एक पेड़ से लटककर जान दे दी.
ये दर्दनाक कहानियां हैं उस बुंदेलखंड के गांवों की, जहां की उबड़-खाबड़ सड़कों से हाल में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की किसान यात्रा निकली.
देवरिया से दिल्ली की तरफ बढ़ती राहुल गांधी की किसान यात्रा ने 20 सितंबर को बुंदेलखंड का हिस्सा पार कर लिया. बुंदेलखंड में कांग्रेस उपाध्यक्ष ने 5 दिन बिताए और 6 जिलों में करीब 600 किलोमीटर की यात्रा की. इस दौरान ‘कर्ज माफ, बिजली बिल हाफ’ और ‘समर्थन मूल्य का करो हिसाब’ का नारा दिया और किसानों से चुनाव में समर्थन मांगा.
बुंदेलखंड खेती के नजरिये से देश के सबसे बदहाल इलाकों में से एक है. एक अनुमान के मुताबिक, पिछले एक दशक में कर्ज या फसल बर्बादी के चलते यहां ढाई हजार से ज्यादा किसान अपनी जान गंवा चुके हैं.
रोजगार के कोई साधन न होने की वजह से सैकड़ों लोग हर रोज बुंदेलखंड के अलग-अलग इलाकों से पलायन करते हैं. लेकिन सरकार हो या प्रशासन किसी के पास इन सुलगती समस्याओं का समाधान नहीं दिखता. शायद राहुल गांधी के पास भी नहीं, जो 2008 के बाद से सात बार बुंदेलखंड आकर बेबस किसानों की उम्मीदें जगा चुके हैं.
एक बुंदेलखंडी कहावत है- गगरी ना छूटे, चाहे खसम मर जाए. यानी पति भले ही मर जाए लेकिन पानी की गगरी हाथ से न गिरे.
भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश उपाध्यक्ष राजबीर सिंह जादौन के मुताबिक, पानी बुंदेलखंड की बुनियादी समस्या है. लेकिन कोई प्राकृतिक आपदा आने पर सरकारें फैशन के तौर पर काम करती हैं. जैसे पानी की ट्रेन भिजवा देना या तालाब वगैरह बनवाने की घोषणाएं कर देना. लेकिन भविष्य को ध्यान में रखकर कभी कोई ठोस काम नहीं हुआ.
दिलचस्प बात ये है कि बुंदेलखंड के पास निर्माण में काम आने वाले बालू और पत्थर जैसे प्राकृतिक स्रोतों की कमी नहीं है. बेतवा और केन नदी से निकलने वाला बालू ‘लाल सोना’ कहलाता है, जो निर्माण के लिहाज से देश की सबसे बेहतरीन बालू है. लेकिन ये लाल सोना अवैध खनन का शिकार है, जिस पर सरकार और समाज से जुड़े रसूखदार लोगों का कब्जा है.
अवैध खनन पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के कड़े रुख के बाद सीबीआई जांच चल रही है. जानकारों के मुताबिक, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के परिवार में मचे घमासान के तार कहीं न कहीं इस अवैध खनन से भी जुड़े हैं.
ये इलाका दलहन और तिल की खेती के लिए भी जाना जाता है. लेकिन कभी सूखा, तो कभी जरूरत से ज्यादा बारिश ने यहां के किसानों की कमर तोड़ रखी है. साल 1987 के बाद से बुंदेलखंड 19 सूखे झेल चुका है. ये वो मोर्चा है, जिसके खिलाफ तमाम सरकारी नीतियां, परियोजनाएं और राहत पैकेज फेल हो जाते हैं.
नवंबर 2009 में राहुल गांधी की कोशिशों के बाद केंद्र सरकार ने बुंदेलखंड के लिए 7,266 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी. राहुल अपनी खाट सभाओं में उसका जिक्र करते हुए आरोप लगाते हैं कि यूपीए सरकार ने तो पैसा भेजा, लेकिन राज्य सरकारें उस पैसे को खा गईं. लेकिन सियासी कबड्डी के इस मैच में बुंदेलों को लुत्फ नहीं आता.
साफ है कि नेताओं की यात्राओं और घोषणाओं से बुंदेलखंड के लोग तंग आ चुके हैं. 2008 के बाद से राहुल गांधी के सात दौरों और 2009 के राहत पैकेज के बावजूद बुंदेलखंड की 19 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस के पाले में सिर्फ 4 हैं.
ऐसे में सवाल यही है कि 2017 के विधानसभा चुनावों के लिए हो रही राहुल गांधी के वायदों की बारिश क्या बुंदेलखंड में कांग्रेस का सियासी सूखा दूर कर पाएगी?
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Published: 20 Sep 2016,05:33 PM IST