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अखिलेश-मुलायम का कम्‍प्रोमाइज फॉर्मूला, शिवपाल का सरेंडर, अमर आउट

हारकर भी जीत गए मुलायम और परिवार की रार में हाशिए पर पहुंच गए शिवपाल

अंशुल तिवारी
पॉलिटिक्स
Published:
(फोटोः The Quint/Liju Joseph)
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(फोटोः The Quint/Liju Joseph)
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समाजवादी पार्टी का घमासान लगभग थम चुका है. पिता-पुत्र में जारी झगड़े के बीच सुलह का समझौता तैयार हो चुका है. यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुके हैं और पिता मुलायम ने संरक्षक की भूमिका को स्वीकार कर लिया है. वर्चस्व की जंग में अखिलेश को चुनौती देने वाले शिवपाल यादव ने भी फिलहाल सरेंडर कर दिया है. साथ ही 'अंकल' अमर सिंह एक बार फिर सपा से आउट हो चुके हैं.

कुल मिलाकर, अब समाजवादी पार्टी में अखिलेश राज कायम हो चुका है.

पिता हुए 'मुलायम', अखिलेश को सौंपी अपने उम्मीदवारों की लिस्ट

पिता-पुत्र में सुलह के बीच मुलायम ने अपने 38 समर्थकों की लिस्ट अखिलेश को सौंपी. मुलायम ने जिस वक्त ये लिस्ट अखिलेश को सौंपी, तब इस लिस्ट में शिवपाल सिंह यादव का नाम नहीं था. हालांकि शिवपाल के बेटे आदित्य यादव इस लिस्ट में थे. बाद में मुलायम ने इस लिस्ट में तब्दीली करते हुए शिवपाल का नाम भी जोड़ दिया.

शिवपाल इस बार फिर अपनी परंपरागत सीट जसवंतनगर से चुनाव लड़ सकते हैं. वे इस सीट से लगातार पिछले चार बार से विधायक हैं. इससे पहले इस सीट से मुलायम सिंह यादव 7 बार विधायक चुने जा चुके हैं.

मुलायम की लिस्ट में शिवपाल के करीबी अंबिका चौधरी, ओम प्रकाश सिंह, नारद राय, शादाब फातिमा के अलावा मुलायम की छोटी बहू अपर्णा और बेनी प्रसाद वर्मा के बेटे का नाम भी शामिल है. हालांकि मुलायम ने जो लिस्ट सौंपी है, उस पर अखिलेश की मुहर लगना अभी बाकी है. सूत्रों की मानें, तो मुलायम के दिए 38 नामों में से कुछ नामों पर अखिलेश को कड़ी आपत्ति है.

पार्टी में हाशिए पर पहुंचे शिवपाल ने किया सरेंडर!

चुनाव आयोग का फैसला अखिलेश के पक्ष में आने और पिता-पुत्र के बीच समझौता हो जाने के बाद चाचा शिवपाल अब अकेले पड़ते नजर आ रहे हैं. शिवपाल के साथ अब उनके बेहद खास वफादार ही बचे हैं. शिवपाल से टिकट मांगने जाने पर वह कह रहे हैं कि अब टिकट सीएम अखिलेश दे रहे हैं.

शिवपाल की बेबसी का अंदाजा इसी बात से लगाया जाता है, जिसमें उन्होंने संकेत दिया कि अब उनके पास पार्टी का कोई ‘अधिकार’ नहीं रह गया है.

टिकट हम नहीं, मुख्यमंत्री दे रहे हैं. पार्टी जिसको भी टिकट दे, उसको चुनाव लड़ाना और जिताना.
<b>शिवपाल सिंह यादव, नेता, समाजवादी पार्टी</b>
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अमर सिंह हो चुके हैं ‘आउट’

इस पूरे मामले में अखिलेश की सबसे ज्यादा टेढ़ी नजर ‘अंकल’ अमर सिंह पर ही थी. पिता मुलायम सिंह यादव के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के दौरान भी अखिलेश, अमर सिंह को पार्टी से बाहर किए जाने की मांग करते रहे थे.

अखिलेश ने दावा किया था कि अमर सिंह पार्टी को तोड़ना चाहते हैं. इसके अलावा वे इस बात से भी खासे नाराज थे कि अमर सिंह के कहने पर ही उनसे प्रदेश अध्यक्ष का पद लेकर उनके चाचा शिवपाल को दे दिया गया था.

अखिलेश ने सार्वजनिक मंच से कहा था कि अमर सिंह ने ही उनके खिलाफ अगस्त महीने में मुख्यमंत्री पद से हटाने की साजिश रची थी. अखिलेश ने कहा था कि अमर सिंह के कहने पर मुलायम सिंह अखिलेश को हटाने के लिए पत्र टाइप करा रहे थे, लेकिन टाइपराइटर खराब होने की वजह से चिट्ठी टाइप नहीं हो पा रही थी. ऐसे में अमर सिंह ने अपने घर से टाइपराइटर मंगाकर चिट्ठी टाइप कराई थी. अखिलेश को ये बात बहुत बुरी लगी थी.

बहरहाल, अब समाजवादी पार्टी में अमर सिंह का कोई रोल नहीं होगा. भले ही अमर मुलायम को अपना भाई समान और पार्टी का 'पिता' करार दे चुके हैं. लेकिन पार्टी में अखिलेश राज कायम होने के बाद अब ‘अंकल’ के लौटने की संभावना बहुत कम है.

सुलह का एक और संकेत

एक ओर कहा जा रहा है कि शिवपाल के चुनाव में उतरने पर अखिलेश को आपत्ति हो सकती है. ऐसे में शिवपाल लोकदल से चुनाव लड़ सकते हैं. लेकिन दूसरी ओर शिवपाल के बेटे आदित्य ने भी आगे बढ़कर पहल की है. आदित्य ने ट्विटर पर एक तस्वीर पोस्ट की है. इस तस्वीर में मुलायम और शिवपाल के साथ अखिलेश यादव को भी जगह दी गई है. जाहिर है कि सुलह की कोशिश में शिवपाल के बेटे आदित्य ने भी पहल की है

हारकर भी जीत गए मुलायम!

पार्टी और परिवार के बीच कलह को देखें तो पहली नजर में यह मामला जिद्दी बेटे के सामने बेबस पिता की तस्वीर पेश करता है. लेकिन अगर मुलायम के कद और राजनीतिक समझ पर गौर करें, तो वह इस लड़ाई में हारकर भी जीत गए हैं. गौर करें, कुछ ही दिन पहले पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी को लेकर क्या कहा था-

<em>समाजवादी पार्टी संघर्षों से खड़ी हुई है. पार्टी की एकता के लिए हमने हर कदम उठाया है. मुझे कार्यकर्ताओं पर पूरा भरोसा है. मैं पार्टी नहीं टूटने दूंगा. न पार्टी का नाम बदलेगा और न ही निशान बदलेगा.</em>
<b>मुलायम सिंह यादव, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष, समाजवादी पार्टी</b>

मतलब साफ है कि अखिलेश के पिता और समाजवादी पार्टी के संस्थापक होने के नाते मुलायम को दोनों से प्यार है. ऐसे में पार्टी का टूटने से बच जाना और बेटे का कद पिता से बड़ा हो जाना, इन दोनों में भी मुलायम ने बाजी मार ली है.

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