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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने संघ की पत्रिकाओं ऑर्गनाइजर (Organiser) और पांचजन्य (Panchjanya) के हालिया अंकों में एक इंटरव्यू दिया है. इसमें उन्होंने कई मुद्दों पर अपनी राय जताई है, जैसे बीजेपी सरकार के साथ आरएसएस के रिश्ते, जनसंख्या नियंत्रण, एलजीबीटीक्यू के अधिकार और मुसलमानों और ईसाइयों को लेकर आरएसएस का नजरिया.
इनमें एलजीबीटीक्यू के हक पर सरसंघचालक का बयान सुर्खियों में रहा क्योंकि इसे होमोसेक्सुएलिटी पर संघ के नरम रवैये के तौर पर देखा गया.
इस आर्टिकल में हम भागवत के बयान की वजह को समझने को कोशिश कर रहे हैं और यह भी कि इनसे संघ के बारे में हम क्या जान सकते हैं.
“अभी छोटे से प्रश्न बीच-बीच में आते हैं, जिसको मीडिया बहुत बड़ा बनाता है, क्योंकि वह तथाकथित नियो-लेफ्ट को पुरोगामी (रास्ता दिखाने वाला) लगता है..जैसे एलजीबीटीक्यू.”
"इन लोगों को भी जीने का अधिकार है. बिना ज्यादा शोर-शराबे के, हमने एक रास्ता खोज लिया है, एक मानवीय दृष्टिकोण के साथ उन्हें सामाजिक स्वीकृति प्रदान करने के लिए, यह ध्यान में रखते हुए कि वे भी जीने के एक अपरिहार्य अधिकार के साथ मनुष्य हैं."
“जरासंध के दो सेनापति थे हंस और डिंभक. दोनों इतने मित्र थे कि कृष्ण ने अफवाह फैलाई कि डिंभक मर गया, तो हंस ने आत्महत्या कर ली. यह क्या था? दोनों सेनापतियों में वैसे ही संबंध थे.”
“मनुष्यों में यह प्रकार पहले से है. जब से मनुष्य आया है, तब से है. मैं जानवरों का डॉक्टर हूं, तो जानता हूं कि जानवरों भी यह प्रकार होता है. यह बाइलॉजिकल है. जीवन जीने का तरीका है.”
"हम चाहते हैं कि उनके पास अपना निजी स्थान हो और महसूस करें कि वे भी समाज का एक हिस्सा हैं. यह इतना आसान मुद्दा है."
वैसे 2014 तक होमोसेक्सुएलिटी पर आरएसएस की सोच एकदम साफ थी. वह सेक्शन 377 के तहत उसे अपराध घोषित करने के पक्ष में था.
उस समय आर्गेनाइजर में छपे एक लेख में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की तारीफ की गई थी जिसमें उसने सेक्शन 377 पर दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया था. दिल्ली हाई कोर्ट ने इस सेक्शन को रद्द करने का फैसला दिया था. इस आर्टिकल में होमोसेक्सुएलिटी को "अप्राकृतिक", "अनैतिक", "मानव अस्तित्व के खिलाफ" और "यहां तक कि जानवर भी ऐसा नहीं करते" कहा गया था.
हालांकि कुछ वर्षों में आरएसएस ने इस मुद्दे पर अपना रुख नरम करना शुरू कर दिया.
जब सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार 2018 में होमोसेक्सुएलिटी को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया, तो आरएसएस ने इस फैसले पर सहमति जताई लेकिन चेतावनी के साथ.
आरएसएस के तत्कालीन प्रचार प्रभारी अरुण कुमार ने कहा कि भले आरएसएस सुप्रीम कोर्ट से सहमत है कि यह एक अपराध नहीं है, लेकिन "गे शादियां और रिश्ते प्रकृति के अनुकूल और सहज नहीं हैं".
हालांकि अक्टूबर 2019 में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि होमोसेक्सुएलिटी के मुद्दे से, टकराव के बिना निपटा जा सकता है.
हालांकि भागवत ने इस पर तफसील से कोई बात नहीं की, लेकिन ऐसा लगता है कि गे शादियों पर संघ की राय, जस की तस होगी, जिसकी वजह उसका यह विश्वास है कि शादी एक पवित्र रिश्ता होता है.
कुल मिलाकर, भागवत ने होमोसेक्सुएलिटी पर जो चर्चा की है, कि वह प्रकृति में भी मौजूद है, एलजीटीबीक्यू पर उनकी पिछली राय से एकदम अलग है. और इसे इस तरह देखना चाहिए कि संघ परिवार इस मुद्दे पर धीरे-धीरे नरम हो रहा है. वह इसे अपराध बनाने के पक्ष में रहा, फिर अपराध बनाए जाने का विरोध करता रहा, जबकि सेम सेक्स रिश्तों की आलोचना करता रहा, इसके बाद इसे व्यक्तिगत पसंद कहने लगा, और अब आखिर में कह रहा है कि यह प्रकृति में भी मौजूद है.
ऐसा लग रहा है कि आरएसएस उन मुद्दों पर नरमी दिखा रहा है जो उसकी वृहद विचारधारा के केंद्र में नहीं थे- होमोसेक्सुएलिटी पर उनके रुख का नरम होना भी ऐसा ही एक मुद्दा है.
संगठन भारत और विदेशों में पनप रहा है, और शायद नहीं चाहता कि गे अधिकारों जैसे मुद्दों पर उसे ‘रिग्रेसिव’ माना जाए. हालांकि उसने होमोसेक्सुएलिटी का विरोध किया लेकिन फिर भी यह उसके लिए बड़ी चिंता कभी नहीं थी.
आरएसएस प्रमुख का बयान ऐसे समय में खास तौर से मायने रखता है, जब पश्चिम में आरएसएस की गतिविधियों पर पैनी निगाह रखी जा रही है. अगर वह होमोसेक्सुएलिटी का विरोध करेगा तो लोगों के बीच उसके लिए बुरी राय कायम हो सकती है.
आरएसएस प्रमुख ने अपने इंटरव्यू में शाखा में औरतों की भागीदारी पर भी बातचीत की. उस मुद्दे को इसके साथ भी जोड़कर देखा जा सकता है. भागवत ने कहा है कि हम ऐसी व्यवस्था कायम करने की कोशिश कर रहे हैं जिसके जरिए औरतों की भागीदारी बढ़ाई जा सके.
ऐसा लगता है कि आरएसएस हिंदू समाज को एक करने, और उसकी लामबंदी के बड़े अभियान के रास्ते में छोटी-छोटी रुकावटों को हटाना चाहता है.
"हमें परिस्थितियों के हिसाब से अपनी बोलचाल और भाषा को बदलना चाहिए. दिशा वही रहती है. हिंदुस्तान एक हिंदू राष्ट्र है".
एमएस गोलवलकर ने हिंदुओं के लिए तीन सबसे बड़े खतरे बताए थे- मुसलमान, ईसाई और कम्युनिस्ट- इस पर आरएसएस की सोच बदस्तूर है. जैसा कि भागवत ने अपने इंटरव्यू में तीनों का जिक्र किया है.
हालांकि, ऐसा लगता है कि यह थोड़ा संतुलित हो गया है.
इस बात पर कोई समझौता नहीं है कि "भारत एक हिंदू राष्ट्र है". सरसंघचालक ने ऑर्गनाइजर और पांचजन्य के इंटरव्यू में साफ शब्दों में भारत के हिंदू राष्ट्र होने की बात कही है.
यानी भागवत के बयान को कुछ ऐसे समझा जा सकता है कि आरएसएस विचारधारा के स्तर पर कुछ समझौते करने को तैयार है, कुछ ढिलाई भी बरत सकता है, जब तक कि हिंदुओं की श्रेष्ठता मानी जाती रहे और हिंदू राष्ट्र के मुद्दे पर कोई सवाल न किए जाएं.
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